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अथ श्रीचक्रेश्वरी देवीमन्त्रस्तोत्रम्
June 5, 2020
स्तोत्र
jambudweep
अथ श्रीचक्रेश्वरी देवीमन्त्रस्तोत्रम्
ॐ नमो धर्मचक्राधिपतये सौभाग्यमस्तु संसारचक्रशान्तिरस्तु।।
श्री चक्रे! चक्रभीमे! ललितवरभुजे! लीलया दोलयन्ती।
चक्रं विद्युत्प्रकाशं ज्वलितशतमखे खेखगेन्द्राधिरूढ़े!।।
तत्त्वैरुद्भूतभावे सकलगुणनिधे! त्वं महामन्त्रमूर्त्ते!
कोट्यादित्यप्रकाशे त्रिभुवनमहिते! त्राहि मां देवि! चक्रे! ।।१।।
क्लीं क्लीं क्लींकारचित्ते! किलकिलवदने! दुंदुभिभीमनादे!।
ह्रां ह्रीं ह्रः शंख बीजे! खगपतिगमने! रोहिणि शोषिणि त्वम् !।।
क्षां आं ॐ भासयन्ती त्रिभुवनमपि तच्चक्रचक्रान्तकीर्ते।।
क्षां क्षीं क्षूं विस्फ़ुरन्ती प्रबलबलयुते! त्राहि मां देवि! चक्रे।।२।।
श्रां श्रीं श्रूं श्रः प्रसिद्धे! स्वजनजनपदप्रीतिसन्तोषलक्ष्मीः।
श्रीवृद्धे! कीर्तिबुद्धी प्रथयसिवरदे! त्वं महामंत्रमूर्ते!।।
त्रैलोक्यं क्षोभयंती ह्यसुरभिदुरहुंकारभीमैकनादे!।
क्लीं क्लीं क्लीं द्रावयन्ती धृतकनकनिभे! त्राहि मां देवि! चक्रे।।३।।
ॐ क्षूं ह्रां ह्रीं सबीजैः प्रवरगणधरैर्मोहिनि शोषिणि त्वम् !।
शैले शैले नटन्ति विजयजयकरी रौद्रमूूर्ते! त्रिनेत्रे!।।
आं ईं ॐ भासयन्ती त्रिभुवनमखिलं तत्त्वतेजः प्रकाशे!।
रूं रूं रों हः कराले! भगवति! वरदे! त्राहि मां देवि! चक्रे।।४।।
ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं सुहर्षे! हहहहहसिते! चक्रसंकाशबीजे!।
ह्रां ह्रीं ह्रूं क्षस्सुवर्णें! कुवलयनयनैर्विद्रवं द्रावयन्ती!।।
ह्रीं ह्रें ह्रः क्षस्त्रिलोकीममृतजलधरैर्वारुणैः प्लावयन्ती!।
झ्रां झ्रीं ह्रूं सः सुबीजैः प्रबलबलभयात् त्राहि मां देवि! चक्रे।।५।।
आं क्रों ह्रीं संयुतांगे प्रलयदिनकरे! तस्यकोटि प्रकाशे!।
अष्टौचक्राणि धृत्वा विमलवरभुजे! पद्ममेकं फलं च!।।
सच्चक्रे कुंकुमांगे! विधृतवतिरुहे! तीक्ष्णरौद्रे! प्रचण्डे!।
ह्रां ह्रीं ह्रूंकारकारी रररररमणि! त्राहि मां देवि! चक्रे!।।६।।
श्रां श्रीं श्रूं श्रः सुवन्तेस्त्रिभुवनमहिते! नादविन्दूग्रनेत्रे!।
वं वं वं वज्रहस्ते! ललललललिते! नीलकेशालिकेशे!।।
चं चं चं चक्रहस्ते! चलचलचलिते! नूपुरैर्लोललीले!।
त्वं लक्ष्मीः श्रीः सुकीर्तिः सुरवरनमिते! त्राहि मां देवि! चक्रे।।७।।
ॐ ह्रीं फट्कारमंत्रैर्हृदयमुपगते ऋद्धिवश्याधिकारे!।
ह्रां ह्रीं क्लां क्लीं प्रघोषैः प्रलयघनघटाटोपशंखप्रणादे!।।
वां फां ह्रीं क्रोधमूर्ते! धगधगितशिखे! ज्वालिनि! ज्वालमाले!।
आं द्रां द्रीं आप्रघोषे प्रकटितदशने त्राहि मां देवि! चक्रे!।।८।।
यः स्तोत्रं मंत्ररूपं पठति जनमनोभक्तिपूर्वं त्रिसन्ध्यम् ।
त्रैलोक्यं तस्य वश्यं भवति बुधजनो वाक्यतत्त्वैश्चदिव्यैः।।
सौभाग्यं स्त्रीषु मध्ये खगपतिगमने गौरवं त्वत्प्रसादात् ।
डाकिन्यो गुह्यकाश्च विदधति न भयं चक्रदेव्याः स्तवेन।।९।।
इत्यार्षे यज्ञकल्पे श्रीचक्रेश्वरीदेवीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।
अथ जयमाला यक्षिण्यादिजिनेश्वरस्यमहिता चक्रेश्वरी सर्वदा।
ह्रीं बीजं प्रणवेन फट् परियुतं ह्यादित्यहस्तान्वितम् ।।
भत्तेभ्यः प्रददाति ऋद्धिमतुलां वश्याश्च सर्वेजनाः।
हे! मातर्मम दुःखनाशनपरे तुभ्यं नमः सर्वदा।।१ ।।
आदीश्वरवरसेवित चरणा, चक्रेश्वरी जनभवभयहरणा।
गोमुखरक्षणदक्षिणसहिता, भवजलतारणआमयरहिता।।२।।
वामभागविष्टपगणरक्षा? दैत्यदनुजभयनाशनदक्षा।
पद्मासीना खगपतिवाही, गमनधुरंधर जगत्त्रयमोही।।३।।
द्वादश भुजपरिशोभिविराजं, तेषामायुध विविधसुप्राज्यं।
दक्षिणदिशिभुजषट्कसुयुक्ते, चक्रवज्रवरदे शुभशक्ते।।४।।
वामेदिशिऋतुभुजविख्याता, चक्रवज्रफल जनमनत्राता।
सर्वायुधगणगहनगरिष्ठं, दुर्जनजनबलनाशनदुष्टं।।५।।
कामीजनमनफलदमभीष्टं, पूजित चक्रेश्वरी देवीष्टं।
षोडशभरणालंकृतगात्रां, कमलाकरवरशोभितनेत्रां।।६।।
चन्द्राननमुखसंभृततेजं, पीताम्बर सुदयारसभाजं।
अप्रतिचक्रा चरण पवित्रं, अष्टविधार्चनहेमसुपात्रं।।७।।
भावसहितपूजितनरनारी, तेषांधनकनसंपत्तिसारी।
कनकवर्णतनुकान्तिसुयुक्तं, सुरनरकिन्नरगुणानुरक्तं।।८।।
तवनामद्वयमेतत्मुख्यं, चक्रेश्वर्यप्रतिचक्रार्ख्यं।
युगसहस्र सामानिकदेवा, बावनवीर सुसाधित सेवा।।९।।
वादविवाद बौद्धसंग जाता, अकलंकदेवं त्वं जयदाता।
मानतुंगमुनि बंधनमोचनि, भक्ति परायणसम्यक्लोचनि।।१०।।
जिनधर्माभ्युत्थानसुकुशलां, मिथ्यामोहनिवारणनिपुणाम् ।
रत्नत्रयनिधि जगविख्याता, सेवकजनमन शिवसुखदाता।।११।।
घत्ता विविधदुरितवारी दुष्टदारिर्द्यहारी, कलिमलपरिहारी सज्जनानंदकारी।
असुरमदनिवारी गोमुखप्रीतिकारी, जिनमुनिपदसेवी पातु मां चक्रदेवी।।
ॐ आं कों ह्रीं मंत्ररूपायै विश्वविघ्नहरणायै सकलजनहितकारिकायै श्रीचक्रेश्वरीदेव्यै अर्घ्यं समर्पयामीति स्वाहा।।
अथाशीर्वाद
त्वां कामितार्थ फलदां सुरधेनरूपां।
चिंतामणिं मनसिचिंतितदानरूपां।।
सच्चित्तवांछित मनोरथ कल्पवल्ली।
सद्रत्रधान्य वसुदा सुतदा कृपाली।।१।।
इत्याशीर्वाद
अथविसर्जनम्- क्षीराब्धिफ़ेनधवलेन सुतण्ड्डलेन।
दीपेन धूपतमसा कुसुमोच्चयेन।।
श्रीनाभिनंदन पदाब्जयुगस्थभृंगे।
नीराजनं तव सुदत्यवतारयामि।।१।।
।।इति मंगलारार्तिकोद्धारणं करोमि स्वाहा।।
मत्प्रार्थनां शृणु कृपां कुरु चक्रदेवी, विघ्नौघपापपरिदुष्टमिदं च देहं।
आह्वानकं तव मयाकृतमात्मशांत्यै, पुण्येन विघ्ननिवहा त्वरितं प्रयान्तु।।१।।
त्वद्दयया चक्रेश्वरि प्राप्तं धनसुतदारसौभाग्यम् ।
धन्यस्त्वत्कृपयाऽहं धन्योजातोस्मिलोकेस्मिन् ।।२।।
मातर्ममसर्वेष्टान् परिपूरय चात्र संस्थितेकृपया।
मम सर्वानपराधान् क्षमस्व जगदम्ब मां रक्ष।।३।।
सूचना
विशेष पूजा के लिए श्री
पद्मावती देवी
की पूजा के अष्टक के बाद में पाद्य, आचमन, छत्र, पताका, दर्पण, षोडशाभरणार्चन आदि के श्लोकों को नीचे लिखे अनुसार नाम बदलकर पढ़कर समर्पण करें तथा अन्यान्य देवियों की पूजा में भी ऐसे ही प्रयोग करें।
उदाहरणार्थ-
सुगन्धिनीरैस्त्वत्पादौ प्रक्षाल्यपरिपूजये। चक्रेश्वरीं जगत्पूज्यां विश्वविघ्नोपशान्तये।।
श्रीज्वालिनीं जगत्०। कूष्माण्डिनीं जगत्०इत्यादि। शेषपूर्ववत् ।
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