रागी बहुत हैं वैरागी भी कुछ हैं जग के इस समन्दर में देखो तो सब तुच्छ हैं।
भावों का खेल है जड़-चेतन का मेल है दिख रहा दुनिया में सब कुछ अनमेल है।