हे मेरे मन! तूने मेरे अहं को कितनी चोटें पहुँचाई हैं।
लेकिन वह भी तो एक है जिसने तेरे संग सदा नेकी ही अपनाई है।
अब तो वह अहं आकर स्वयं में स्व को पहचान कर हो गया मगन है।
इसीलिए उसको अब तेरी न चाह है दुनिया के रिश्तों की कोई न परवाह है।