हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पाँचों पापों के अणु अर्थात् एकदेश त्याग को अणुव्रत कहते हैं। अहिंसा अणुव्रत-मन, वचन, काय और कृत, कारित, अनुमोदना से संकल्पपूर्वक (इरादापूर्वक) किसी त्रस जीव को नहीं मारना अहिंसा अणुव्रत है। जीव दया का फल चिंतामणि रत्न की तरह है, जो चाहो सो मिलता है। काशी के राजा पाक शासन ने एक समय अपनी प्रजा को महामारी कष्ट से पीड़ित देखकर ढिंढोरा पिटवा दिया कि नंदीश्वरपर्व में आठ दिन पर्यंत किसी जीव का वध न हो। इस राजाज्ञा का उल्लंघन करने वाला प्राणदण्ड का भागी होगा। वहीं का धर्म नाम का एक सेठपुत्र राजा के बगीचे में जाकर राजा के खास मेढ़े को मारकर खा गया। जब राजा को इस घटना का पता चला, तब उन्होंने उसे शूली पर चढ़ाने का आदेश दिया। शूली पर चढ़ाने हेतु कोतवाल ने यमपाल चांडाल को बुलाने के लिए सिपाही भेजे। सिपाहियों को आते देखकर चांडाल ने अपनी स्त्री से कहा कि प्रिये! मैंने सर्वौषधि ऋद्धिधारी दिगम्बर मुनिराज से जिनधर्म का पवित्र उपदेश सुनकर यह प्रतिज्ञा ली है कि ‘मैं चतुर्दशी के दिन कभी जीव हिंसा नहीं करूँगा।’ अत: तुम इन नौकरों को कह देना कि मेरे पति दूसरे ग्राम गये हुए हैं। ऐसा कहकर वह एक तरफ छिप गया किन्तु स्त्री ने लोभ में आकर हाथ से उस तरफ इशारा करते हुए ही कहा कि वे बाहर गये हैं। स्त्री के हाथ का इशारा पाकर सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया और राजा के पास ले गये। राजा के सामने भी यमपाल ने दृढ़तापूर्वक सेठपुत्र को मारने से इंकार कर दिया। राजा ने क्रोध में आकर हिंसक सेठपुत्र और यमपाल चांडाल इन दोनों को ही मगरमच्छ से भरे हुए तालाब में डलवा दिया। उस समय पापी सेठपुत्र को तो जलचर जीवों ने खा लिया और यमपाल के व्रत के प्रभाव से देवों ने आकर उसकी रक्षा की। उसको सिंहासन पर बिठाया एवं उसका अभिषेक करके स्वर्ग के दिव्य वस्त्र अलंकारों से उसे सम्मानित किया। राजा भी इस बात को सुनते ही वहाँ पर आये और यमपाल चांडाल का खूब सम्मान किया। देखो बालकों! अहिंसाव्रत के प्रभाव से चांडाल भी देवों के द्वारा सम्मान को प्राप्त हुआ है तो भला हम लोग क्यों नहीं सुख को प्राप्त करेंंगे?