ओह! कितना सुन्दर स्वप्न! प्रातःकाल की मधुरिम बेला में स्वप्निल निद्रा से उठककर भाग्यवती ने प्रभु का स्मरण किया।
रात्रि के पिछले प्रहर में देखा हुआ स्वप्न तो शायद सत्य होता है, यही सोचती हुई भाग्यवती मन में उस स्वप्न के बारे में चिन्तन करती हैं कि मैंने आज सफेद बैल देखा है। हो सकता है कोई होनहार बालक मेरे गर्भ में आने वाला हो। हर्ष से पुलकित होकर भाग्यवती अपने दैनिक कार्यों में लग जाती हैं।
महाराष्ट्र प्रान्त के औरंगाबाद जिले में एक छोटे से कस्बे ईर नामक ग्राम में रामसुख नाम के एक योग्य चिकित्सक श्रेष्ठी रहा करते थे। उन्होंने भाग्यवती धर्मपत्नी को पाकर मानो सचमुच ही राम जैसे सुख को प्राप्त कर लिया था। गंगवाल गोत्रीय ये दम्पत्ति श्रावक कुल के शिरोमणि थे। प्रतिदिन मंदिर में जाकर देवदर्शन करना, भक्ति-पूजा आदि उनके जीवन के आवश्यक अंग थे। माता-पिता के संस्कार बालक पर पड़ना अवश्यंभावी है।पत्नी के सुखद स्वप्न को सुनकर रामसुख भी बड़े हषित हुए, उन्होंने स्नेह से पत्नी की ओर देखते हुए कहा-
भागू! ऐसा लगता है तुम एक होनहार महापुरुष बालक की माँ बनने वाली हो। हो सकता है संसार में तेरे मातृत्व की ख्याति पैâलाकर यह बालक श्वेत वृषभ के सदृश कीर्ति वाला बन जावे।
भाग्यवती लज्जापूर्वक सिर झुकाकर पति के चरण स्पर्श करती है और अपने प्रथम पुत्र तीन वर्षीय बालक गुलाबचंद को साथ लेकर मंदिर में भगवान की पूजन करने चली जाती है। खुशियों के आवेग में भाग्यवती अपनी सारा