टाइम्स ऑफ इंडिया नागपुर से यह समाचार प्रकाशित हुआ कि बोर वन्य अभयारण्य में पूर्ण विकसित नर बाघ को भोजन के लिये उसके बाड़े में एक जीवित बकरी छोड़ी गई। अभयारण्य के अधिकारियों को यह विश्वास था कि बाघ बकरी को मारकर तुरन्त खा जायेगा, किन्तु उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि बाघ ने बकरी को अपना मित्र बना लिया और उसके साथ खेलने लगा। दो दिन तक भूखे रहते हुए भी उसने बकरी का शिकार नहीं किया। परिणामत: उसके बाड़े से बकरी को बाहर निकालकर उसे अन्य भोजन दिया गया। बाघ के ऐसे व्यवहार से पशु व्यवहार के विशेषज्ञों को आश्चर्य हुआ और उन्होंने बाघ के व्यवहार का अध्ययन किया। विशेषज्ञों के बीच यह प्रश्न उदित हुआ कि बाघ की हिंसक और शिकारी प्रवृत्तियाँ अहिंसक कैसे हो गई। क्या बाड़े में पाले जाने के कारण वह अहिंसक बन गया ? बाघ ने अपना शिकार कौशल कैसे खो दिया ? क्या उस युवा बाघ की माँ ने उसे शिकार करने का कौशल नहीं सिखाया ? विशेषज्ञों ने बाघ के परिवार की जानकारी एकत्रित कर पाया कि इस बाघ की दो बहनें और हैं। इन तीनों को वर्ष २००९ में ढाबा क्षेत्र से उनकी माँ की मृत्यु होने पर बचा लिया गया था। तीनों शिशुओं का पालन पोषण माँस का भोजन देकर किया गया। जब उसी बकरी को उसकी दोनों बहनों के बाड़े में प्रवेश कराया गया तो दोनों बाघनें बकरी को मारकर खा गईं। अब वन विभाग के अधिकारियों को इस युवा बाघ का विनम्र और अहिंसक व्यवहार चिंता का विषय बन गया। बाघ के हिंसक कौशल के अभाव एवं अहिंसक प्रवृत्ति का विशेष अध्ययन किया जा रहा है। जैन धर्म का आधारभूत सिद्धान्त है कि आचार्यों से प्रेरणा लेकर अनेक हिंसक पशु सफलता पूर्वक अहिंसक बन सकते हैं। जैन साहित्य में ऐसे अनेक उदाहरण उपलब्ध हैं। अत: जैन समाज के आचार्यों से विनम्र आग्रह है कि वे भगवान महावीर के चिह्न इस अहिंसक बाघ का विशेष अध्ययन करायें और अपने शोध आलेख अंतराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित करायें। यह उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश सरकार के वन विभाग के वरिष्ठ एवं अनुभवी अधिकारी श्री विनोद कुमार जैन, जैन धर्म द्वारा प्रतिपादित अहिंसा के सिद्धान्तों के संदर्भ में बाघ और बकरी की ऐसी प्रवत्तियों का अध्ययन कर रहे हैं। हमें विश्वास है कि ऐसी प्रवृत्तियों के विशेष अध्ययन से अहिंसा के व्यावहारिक पक्षों का उद्घाटन होगा और प्रत्येक व्यक्ति अपनी रुचि एवं इच्छा से इन सिद्धान्तों को अपने जीवन में अपना सकेगा।