जिनमंदिर के बाहर का दृश्य है, ४-५ महिलाएँ बाहर निकलते-निकलते आपस में वार्तालाप कर रही हैं-
महिला १-बहन! एक बात है दशलक्षण पर्व के दिनों में मन बड़ा प्रसन्न रहता है।
महिला २-हाँ बहन! यह बात तो मैं भी महसूस करती हूँ कि अन्य दिनों की अपेक्षा इन दस दिनों में मन बड़ा शान्त रहता है।
महिला ३-मुझे तो दशलक्षण पर्व की पूजा करने में बड़ा ही आनंद आता है।
महिला ४–बहन! तुम दशलक्षण पर्व की कौन सी पूजा करती हो ?
महिला ३–मैं तो पूज्य ज्ञानमती माताजी द्वारा रचित पूजा ही करती हूँ दस दिन।
महिला ४–लेकिन बहन! वह पूजा तो बहुत बड़ी है, उसमें समय ज्यादा लग जाता है।
महिला ५-बहन! पूजा तो मैं भी वही करती हूँ। यह पूजा थोड़ी बड़ी जरूर है, लेकिन इस पूजा के माध्यम से शास्त्रों की अनेक बातें भी ज्ञात हो जाती हैं। (सब महिलाएँ वहीं चबूतरे पर बैठ जाती हैं)
महिला ३-हाँ! जैसे आज उत्तम तप का दिन है तो इस पूजा में पूज्य माताजी ने तप की महिमा बताते हुए लिखा है कि- दशलक्षणमय सार्वधर्म को, नितप्रति शीश नमाते हैं। उत्तम बारह तप प्रगटित हों, यही भावना भाते हैं। अनशन आदि बाह्य तप षट्, अन्तरंग तप भी हैं षट्। ये कर्मेंधन भस्म करें, स्वर्ग-मोक्ष के सौख्य भरें।। सुरगण नरभव को तरसें, तप को चाहें शिवरुचि से। नरक-स्वर्ग तिर्यग्गति में, तप नहिं यह तप नरभव में।
महिला १-(बीच में ही) अरे वाह! लगता है तुमको यह पूजा बहुत अच्छी तरह से याद है!
महिला ३-हाँ बहन! मैं साल में तीनों बार के दशलक्षण पर्व में यही पूजा करती हूँ न! इसलिए मुझे यह पूजा याद हो गई है।
महिला २-बहन! इसका थोड़ा अर्थ भी बताओ न! तुमको तो मालूम होगा।
महिला ३-हाँ सुनो बहन! पूज्य माताजी ने इसमें बताया है कि तप के १२ भेद होते हैं-६ बाह्य तप और ६ अन्तरंग तप।
महिला ४-क्या हम लोग भी इनमें से कोई तप कर सकते हैं ?
महिला ३-हाँ हाँ क्यों नहीं! जैसे महीने में एक बार उपवास या एकाशन करना, भूख से थोड़ा कम खाना, दूध-नमक, घी आदि में से किसी भी एक रस का त्याग करके भोजन करना आदि के द्वारा हम भी बाह्य तप कर सकते हैं।
महिला ५–अच्छा! यह तो मैं बहुत आराम से कर सकती हूँ।
महिला २-और बहन! इस पूजा में और क्या लिखा है ?
महिला ३-देखो बहन! पूज्य माताजी ने इसमें लिखा है कि स्वर्ग के देवता लोग हमारी इस मनुष्यपर्याय को पाने के लिए तरसते हैं।
महिला १–ऐसा क्यों बहन!
महिला ३-ऐसा इसलिए कि तप के द्वारा ही मोक्षपद को प्राप्त किया जा सकता है लेकिन देवताओं को यह सौभाग्य नहीं प्राप्त हो पाता है।
महिला ४-तो क्या बहन! देवता लोग तपस्या नहीं कर सकते हैं ?
महिला ३-नहीं बहन! देवताओं के पास अनेक प्रकार का वैभव है उसी में वे रमे रहते हैं लेकिन उनमें संयम धारण करने की, तपस्या करने की योग्यता नहीं होती है।
महिला १–हाँ, मैंने एक बार पंचकल्याणक में सुना था कि देवता संयम धारण नहीं कर सकते हैं इसलिए भगवान की पालकी को उठाने का सर्वप्रथम अधिकार मनुष्यों को मिलता है।
महिला ३–हाँ बहन! मनुष्यगति के सिवाय शेष तीन गतियों में यह तप धर्म पालने की सामथ्र्य नहीं है।
महिला ५–बहन! एक बात मेरी समझ में नहीं आई कि तीर्थंकर भगवान क्यों तपस्या करते हैं ? जबकि वे तो भगवान बनने ही वाले हैं ?
महिला ३-हाँ बहन! यही तो विशेष बात है कि तीर्थंकर भगवान भी तप करते हैं, इस तप की इतनी महिमा है। (उसी समय एक और महिला मंदिर से निकलती है और वहीं खड़ी हो जाती है)
महिला ६-बहन! आज अवश्य ही तुम लोग उत्तम तप के बारे में बात कर रही होंगी।
महिला १-हाँ बहन आओ! तुम भी बैठो।
महिला ६–बहन! वास्तव में तप की कितनी महिमा है। एक बार मैंने सुना था कि णमोकार व्रत, चौंसठ ऋद्धि व्रत, रविव्रत आदि व्रत करना भी तप की श्रेणी में आता है।
महिला ३–हाँ बहन! इन व्रतों की तो इतनी महिमा है कि पूछो मत।
महिला ४-रविव्रत करने से दरिद्री की गरीबी दूर हो जाती है, चौंसठ ऋद्धि व्रत के प्रभाव से स्वस्थ शरीर की प्राप्ति होती है और……………………….
महिला ६-(बीच में) बहन! याद आया, रोहिणी व्रत करने से रानी रोहिणी यह नहीं जानती थी कि रोना क्या होता है ?
महिला ५–अच्छा! बहन! जल्दी बताओ, मैं भी यह व्रत करूँगी क्योंकि मुझे तो जरा-जरा सी बात पर बहुत जल्दी रोना आ जाता है। (सभी महिलाएँ हँसने लगती हैं)
महिला ६-हाँ सुनो! बहन! रोहिणी नाम की एक रानी थी, उसने अपने पूर्वभव में एक बार मुनिराज से रोहिणी व्रत लिया।
महिला १–यह व्रत कौन सी तिथि को करते हैं ?
महिला ६–प्रत्येक महीने में सत्ताइस दिन में ‘रोहिणी’ नक्षत्र आने पर यह व्रत किया जाता है।
महिला ५–अच्छा बहन! फिर क्या हुआ?
महिला ६-इस व्रत के प्रभाव से वह हस्तिनापुर के राजा अशोक की रानी रोहिणी बनी। एक बार वह महल की छत पर बैठी थी, नीचे देखा तो कुछ महिलाएँ रोती हुई जा रही थीं। रोहिणी ने अपने पति से पूछा-यह क्या कर रही हैं? राजा ने कहा कि ये महिलाएँ रो रही हैं ?
रानी ने पूछा–ये रोना क्या होता है ? तब राजा को थोड़ा गुस्सा आया और उन्होंने अपने छोटे से पुत्र को महल की छत से नीचे फैक दिया।
महिला ५-तब तो रानी खूब रोई होगी ?
महिला ६-नहीं बहन! यही तो बात है, उसके पुत्र को देवों ने नीचे नहीं गिरने दिया, बल्कि मार्ग में ही एक सिंहासन पर बिठा दिया।
महिला २–अरे वाह! फिर क्या हुआ ?
महिला ६-फिर राजा ने एक मुनि से पूछा कि महाराज! मेरी पत्नी रोहिणी ने ऐसा कौन सा पुण्य किया है कि उसको ‘रोना क्या होता है’ यह नहीं ज्ञात है। तब महाराज जी ने बताया कि इसने पूर्व जन्म में रोहिणी व्रत किया है उसी की महिमा है यह! अच्छा बहन! मैं तो यह व्रत जरूर लूँगी।
महिला २-एक बात पूछूँ बहन!
महिला ५-हाँ हाँ पूछो बहन!
महिला २-मैंने एक बार कहीं पढ़ा था कि ‘‘स्वाध्याय: परमं तप:’’ तो इसका क्या मतलब है ?
महिला ५-इसका मतलब यही है कि प्रतिदिन शास्त्र का विधिपूर्वक/आदरपूर्वक स्वाध्याय करना भी एक प्रकार का तप है।
महिला २–मुझे तो ये ही समझ में नहीं आता है कि कौन से शास्त्र का स्वाध्याय करूँ ? अलमारी में इतने सारे शास्त्र रहते हैं उनमें से किसी एक शास्त्र का चयन करना बड़ा कठिन काम है।
महिला ३–बहन! मैंने एक बार पारस चैनल पर पूज्य गणिनी ज्ञानमती माताजी के प्रवचन में सुना था कि श्रावकों को क्रम-क्रम से एक-एक अनुयोग का स्वाध्याय करना चाहिए अर्थात् पहले प्रथमानुयोग, फिर करणानुयोग, इसके बाद चरणानुयोग पुन: सबसे अन्त में द्रव्यानुयोग पढ़ना चाहिए।
महिला १–इन प्रथमानुयोग आदि में क्या-क्या पढ़ने योग्य है ?
महिला ३-देखो! महान पुरुषों, सती नारियों के चरित्र का वर्णन करने वाले ग्रंथ प्रथमानुयोग हैं। लोक-अलोक का वर्णन जिसमें है, वे करणानुयोग ग्रंथ हैं, मुनियों एवं श्रावकों के चारित्र का वर्णन चरणानुयोग ग्रंथों में है तथा आत्मा की बात बताने वाले ग्रंथ द्रव्यानुयोग कहलाते हैं।
महिला १-अच्छा! तो इसका मतलब यह है कि हमें सबसे पहले प्रथमानुयोग के ग्रंथ पढ़ना है।
महिला ३–हाँ बहन! जैसे-आदिपुराण, महापुराण, पद्मपुराण, जीवन्धरचरित्र, पाण्डवपुराण इनमें से कोई एक शास्त्र थोड़ा-थोड़ा रोज पढ़ो पुन: एक ग्रंथ पूरा हो जाने पर ही दूसरा ग्रंथ प्रारंभ करना चाहिए।
महिला ४–हाँ बहन! तुम ठीक कह रही हो, पूरा ग्रंथ पढ़ने के बाद ही तो उसका विषय पूरी तरह समझ में आ सकेगा।
महिला २-अच्छा बहन! मुझे लगता है कि अब हमें घर चलना चाहिए, काफी देर हो गई है।
महिला ५–हाँ बहन! चलते हैं।
महिला ३–आज तो मुझे बहुत सारी नई-नई बातें जानने का अवसर मिला, बहुत अच्छा लगा।
महिला २–हाँ! अब जल्दी घर के काम निपटाकर पुन: दोपहर में मंदिर आना है पण्डित जी तत्त्वार्थसूत्र की पूजा कराएँगे तथा तत्त्वार्थसूत्र का वाचन भी होगा। सभी एक साथ-हाँ हाँ चलो।