आज हम ब्रह्मचर्य के स्वरूप पर विचार करेंगे। जो व्यक्ति आजीवन समय के लिए ब्रह्मचर्य को धारण करता है उसने जान लिया है ईश्वर कोई नहीं है हम ही ईश्वर है हमारे अन्दर ही ईश्वर है। ब्रह्मचर्य के अनेक अर्थ हैं: प्रणव(जो मनुष्य को सदैव तरोताजा रखता है), ओंकार(जो पंच परमेष्ठी की उपासना का मूल आधार है) तथा शुचिता(जो पवित्रता की खान है)। ब्रह्म अर्थात निज शुद्धात्मा में रमण करना ही ब्रह्मचर्य है। अकेले होकर अपने आप में रम कर अपने अन्दर की ऊर्जा को प्रकट करना ही ब्रह्मचर्य है,पंचेन्द्रिय विषयों को त्याग कर आत्मालीन होना ही ब्रह्मचर्य है। आत्मा अतिदिव्य पदार्थ है, वह इंद्रियों के माध्यम से नहीं जाना जा सकता। पूज्य गुरु माँ ज्ञेयश्री ने कहा जिस प्रकार सूरज को कहीं से ऊर्जा लेने की आवश्यकता नही होती है, बिजली को कहीं से भी ऊर्जा लाने की जरूरत नहीं है वो स्वयं ही ऊर्जा है ठीक इसी प्रकार हमारे अन्दर कुछ खाने-पीने से ऊर्जा नहीं आती ऊर्जा तो हमारे अन्दर है बस उसे प्रकट करने की देर है। आत्मा को जानने के लिए अंतर में लीन होना पङता है। आज ब्रह्मचर्य शब्द का जो अर्थ प्रचलित है वह स्थूल अर्थ है। आज मात्र स्पर्शन इंद्रिय के विषय सेवन के त्याग रूप व्यवहार ब्रह्मचर्य को ही उत्तम ब्रह्मचर्य मान लिया जाता है। हम ग्रहस्थ जीवन में उत्तम ब्रह्मचर्य का पालन नहीं कर सकते, किंतु व्यवहार में खाम-विकार को जीतने का प्रयास करना चाहिये, सद् ग्रहस्थ बनना चाहिये, स्वपति व स्वपत्नी में संतोष धारण करना चाहिये और उत्तम ब्रह्मचर्य को लक्ष्य रखकर उसकी अभिव्यक्ति हेतु प्रयास करना चाहिये। ब्रह्मचर्य का मतलब है अपनी ऊर्जा बढ़ाना है। जैसे-जैसे ही हमारी ऊर्जा बढ़ती जाती है वैसे ही हमारे अन्दर 23 अरब शेल्स चार्ज होते जाते है, और जब ये ऊर्जा बढ़ते-बढ़ते ब्रह्म में पहुचती है तो ये ज्ञान पैदा कर देती है। बस इसी ऊर्जा को प्राप्त करने के लिए हमने ये बाहरी ब्रह्मचर्य व्रत को धारण किया था अन्तरंग में तो अपने आप में रमना है। अपने आप में रमने पर एक दिन वो आएगा कि हमें केवलज्ञान प्रकट हो जायेगा। इसलिए हम अन्तरंग ब्रह्मचर्य को धारण करें जो हमारे ज्ञान में वृद्धि करता है। आज देश में, समाज में नैतिकता का ह्रास होता जा रहा है। हम व्यवहार ब्रह्मचर्य को भी भूलते जा रहे हैं। आज का इंसान वासना की दृष्टी से पशु से भी हीन होता जा रहा है, जिसे उचित-अनुचित का, मर्यादा का ध्यान ही नहीं है। नित्य समाचार पत्रों में बलात्कार, अपहरण आदि के समाचार प्रकाशित होते हैं। एक धर्मपरायण देश में, समाज में ऐसा अनाचार देखकर ग्लानि होने लगती है। इसलिए विषयों की आशा दूर कर ब्रह्मचर्य को अवश्य धारण करना चाहिये। “उत्तम ब्रह्मचर्य मन लावे, नरसुर सहित मुक्ति फल पावे”- उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म पालने वाले को मोक्ष लक्ष्मी की प्राप्ति अवश्य ही होती है। पर्युषण पर्व के महान अवसर पर मनुष्य दस धर्मों को अपनाकर, उनका पालन करके अपने जीवन का उद्धार करता है तथा अपने आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त करके अजर अमर पद निर्वाण की प्राप्ति कर सकता है। मैंने इस पर्युषण पर्व के दौरान दस धर्मों का संक्षिप्त अर्थ एवं महत्व आपके समक्ष रखने का जो प्रयास किया, उसमें अगर किसी प्रकार की लिखने में त्रुटी हो गई हो अथवा पूर्ण रूप से समझा न पाया हो तो मैं आप सभी का क्षमाप्रार्थी हूं।