-शंभु छंद-
जय जय आदीश्वर ऋषभदेव, पुरुदेव प्रथम तीर्थंकर हो।
जय जय कर्मारिजयी जिनवर, तुम परमपिता परमेश्वर हो।।
जय युगस्रष्टा असि मषि आदिक, किरिया उपदेशी जनता को।
त्रय वर्ण व्यवस्था राजनीति, गृहिधर्म बताया परजा को।।१।।
निज पुत्र पुत्रियों को विद्या-अध्ययन करा निष्पन्न किया।
भरतेश्वर को साम्राज्य सौंप, शिवपथ मुनिधर्म प्रशस्त किया।।
इक सहस वर्ष तप करके प्रभु, कैवल्यज्ञान को प्रकट किया।
अठरह कोड़ाकोड़ी सागर के, बाद मुक्ति पथ प्रकट किया।।२।।
तुम ऋषभ पुत्र भरतेश प्रथम, चक्रेश्वर हो षट्खंडजयी।
जिन भक्तों में थे प्रथम तथा, अध्यात्म शिरोमणि गुणमणि ही।।
सब जन मन प्रिय थे सार्वभौम, यह भारतवर्ष सनाथ किया।
दीक्षा लेते ही क्षण भर में, निज केवलज्ञान प्रकाश किया।।३।।
हे ऋषभदेव सुत बाहुबली, तुम कामदेव होकर प्रगटे।
सुत थे द्वितीय पर अद्वितीय, चक्रेश्वर को भी जीत सके।।
तुमने दीक्षा ले एक वर्ष का, योग लिया ध्यानस्थ हुए।
वन लता भुजाओं तक फैली, सर्पों ने वामी बना लिये।।४।।
इक वर्ष पूर्ण होते ही तो, भरतेश्वर ने आ पूजा की।
उस ही क्षण तुम हुए निर्विकल्प, तब केवलज्ञान की प्राप्ती की।।
कैलाशगिरी से मुक्ति वरी, ऋषभेश भरत बाहूबलि ने।
उस मुक्तिथान को मैं प्रणमूँ, मेरे मनवांछित कार्य बनें।।५।।
जय जय हे आदिनाथ स्वामिन्! जय जय भरतेश्वर मुक्तिनाथ।
जय जय योगेश्वर बाहुबली! मुझ को भी निज सम करो नाथ।।
तुम भक्ती भववारिधि नौका, जो भव्य इसे पा लेते हैं।
वे ‘ज्ञानमती’ कैवल्य करें, अर्हंतश्री वर लेते हैं।।६।।
परम चिदंबर चित्पुरुष, चिच्चिंतामणि देव।
नमूँ नमूँ अंजलि किये, करूँ सतत तुम सेव।।७।।
ग्रन्थ