एक बार भगवान महावीर बालक अवस्था में कुण्डलपुर के उद्यान में अपने मित्रों के साथ एवं इन्द्र बालकों के साथ बालक्रीडा कर रहे थे ।
वहाँ एक संगम नामक देव ने आकर भयंकर सर्प का रूप धारण कर हलचल मचा दी । सर्प को देखकर सभी बालक डर के मारे इधर-उधर भागने लगे ।
किन्तु महावीर उस सर्प के फण पर चढ़ कर माता की गोदी के समान क्रीड़ा करने लगे ।वे साँप से बिलकुल डरे नहीं, और उसको अपने वश में कर लिया ।
संगम देव उनकी निडरता एवं वीरता देखकर बहुत प्रभावित हुआ । उसने अपना असली रूप प्रकट कर महावीरके चरणों में नमन किया तथा बड़ी भक्ति के साथ उनका नाम रखा महावीर
इस प्रकार महावीर के जीवन में जब भी कोई परीक्षा के क्षण आए, वे हमेशा मेरु पर्वत के समान अचल रहे ।
उन महावीर स्वामी का जीवनवृत्त महावीर चरित-उत्तरपुराण आदि ग्रन्थों से पढ़कर हमें भी सदैव महावीर स्वामी की भक्ति करना चाहिए ।