किसी समय मुनिदत्त योगिराज महल के पास एक गड्ढे में ध्यान में लीन थे। नौकरानी ने उन्हें हटाना चाहा। जब वे नहीं उठे, तब उसने सारा कचरा इकट्ठा करके मुनि पर डाल दिया। प्रात: राजा ने वहाँ से मुनि को निकालकर विनय से सेवा की। उस समय नौकरानी नागश्री ने भी पश्चात्ताप करके मुनि के कष्ट को दूर करने हेतु उनकी औषधि की और मुनि की भरपूर सेवा की। अंत में मरकर यह वृषभसेना हुई। जिसके स्नान के जल से सभी प्रकार के रोग-विष नष्ट हो जाते थे। आगे चलकर वह राजा उग्रसेन की पट्टरानी हो गई। किसी समय रानी के शील में आशंका होने से राजा ने उसे समुद्र में गिरवा दिया किन्तु रानी के शील के माहात्म्य से देवों ने सिंहासन पर बैठाकर उसकी पूजा की। देखो! नौकरानी ने जो मुनि पर उपसर्ग किये थे उसके फलस्वरूप उसे रानी अवस्था में भी कलंकित होना पड़ा और जो उसने मुनि की सेवा करके औषधिदान दिया था उसके प्रभाव से उसे ऐसे सर्वोषधि ऋद्धि प्राप्त हुई कि जिसके प्रभाव से उसके स्नान के जल से सभी के कुष्ट आदि भयंकर रोग और विष आदि दूर हो जाते थे। इसलिए औषधिदान अवश्य देना चाहिए।