जो भवसमुद्र से तिरवाता, वह तीर्थ कहा जाता जग में।
वह द्रव्य तीर्थ औ भावतीर्थ, दो रूप कहा जिन आगम में।।
तीर्थंकर के जन्मादिक से, पावन हैं द्रव्यतीर्थ सच में।
हर प्राणी की आत्मा परमात्मा भावतीर्थ मानी जग में।।१।।
सतयुग में चौबिस तीर्थंकर, जन्में जब इस पृथिवी तल पर।
इन्द्राज्ञा से तब धनकुबेर ने, रत्नवृष्टि कर दिया सुखद।।
उन सब तीर्थंकर भगवन्तों की, जन्मभूमि को नमन करूँ।
फिर महावीर की जन्मभूमि, कुण्डलपुर तीरथ को प्रणमूँ।।२।।
धवला तिलोयपण्णत्ति आदि, प्राचीन गंथ अध्ययन किया।
उनमें कुण्डलपुर के राजा, सिद्धार्थ का शासन कथन मिला।।
वे नंद्यावर्त महल में रानी, त्रिशला के संग रहते थे।
छब्बिस सौ वर्षों पूर्व जहाँ पर, रत्न असंख्य बरसते थे।।३।।
तिथि चैत्र सुदी तेरस के दिन, वहाँ महावीर का जन्म हुआ।
माता त्रिशला के साथ-साथ, पूरा कुण्डलपुर धन्य हुआ।।
वह नगरी काल थपेड़ो से, वीरान हुई थी कलियुग में।
लेकिन फिर से आ गया समय, छब्बीससौंवें जन्मोत्सव में।।४।।
श्री गणिनीप्रमुख ज्ञानमति माताजी ‘की सम्प्रेरणा मिली।
प्रभु महावीर की जन्मभूमि, कुण्डलपुर में नव ज्योति जली।।
कुण्डलपुर के प्राचीन जिनालय, का कुछ जीर्णोद्धार हुआ।
कीर्तिस्तंभ के निर्माण से प्रभु-इतिहास वहाँ साकार हुआ।।५।।
इक नंद्यावर्त महल परिसर में, स्वर्ग उतर आया मानो।
प्रभु वीर का युग स्मरण हुआ, अतिशय साक्षात् इसे जानो।।
यहाँ मुख्य द्वार से विश्वशांति, महावीर जिनालय दिखता है।
अतएव सभी भक्तों का मन, ऊपर जाने को करता है।।६।।
महावीर प्रभू की जय बोलो, फिर चालिस सीढ़ी पार करो।
अंतर का दीप जलाकर प्रभु, चालीसा का फल प्राप्त करो।।
यहाँ प्रतिमा अवगाहन प्रमाण, महावीर प्रभू की खड्गासन।
उस दुग्ध सदृश उज्ज्वल प्रतिमा के, दर्शन से हो मन प्रसन्न।।७।।
इक शतक आठ फुट ऊँचे इस, मंदिर का है अतिशय भारी।
उत्तुंग शिखर में भी जिनवर, प्रतिमाएँ शोभ रहीं प्यारी।।
प्रभु की प्रदक्षिणा कर उनका, अभिषेक व पूजन पाठ करो।
कुण्डलपुर अवतारी त्रिशलानंदन, आरति का ठाठ करो।।८।।
प्रभु नाम मंत्र जपते-जपते, सीढ़ी उतरो आगे को चलो।
फिर प्रदक्षिणा क्रम से तीर्थंकर, ऋषभदेव के द्वार चलो।।
इस मंदिर में वृषभेश्वर की, चौदह फुट पद्मासन प्रतिमा।
इनका दर्शन करके जानो, जिनधर्म की है शाश्वत महिमा।।९।।
आगे चलकर नवग्रह शांती, जिनमंदिर के दर्शन कर लो।
नव कमलों पर वहाँ राज रहे, नव जिनवर को वंदन कर लो।।
जिस ग्रह का हो तुम पर प्रकोप, उस ग्रहनाशक प्रभु को भज लो।
पूजन विधान औ जाप्य आदि के, द्वारा ग्रह शांती कर लो।।१०।।
इस मंदिर के ही निकट विशाल, जिनालय तीन मंजिला है।
त्रैकालिक चौबीसी मंदिर के, नाम से इसकी गरिमा है।।
सबसे नीचे इस मंदिर में हैं, भूतकाल की प्रतिमाएँ।
फिर वर्तमान व भविष्यत् की, क्रमश: ऊपर जिनप्रतिमाएँ।।११।।
तीनों मंजिल में चौबिस चौबिस, प्रतिमाओं को नमन करो।
आगे खुद भी तीर्थंकर बनने, हेतु पुण्य को ग्रहण करो।।
देखो इस मंदिर के समक्ष है, नंद्यावर्त महल सुन्दर।
छब्बिस सौ वर्षों बाद पुन:, इतिहास दिखाया है अन्दर।।१२।।
कैसे-प्रभु वीर जन्म से पहले, इन्द्र यहाँ पर आते थे।
तब माता त्रिशला के आंगन में, धनद रत्न बरसाते थे।।
इन्द्रों ने आकर इसी महल में, प्रभु का जन्म कल्याण किया।
अन्दर जाकर देखो इन दृश्यों, का कैसा निर्माण हुआ।।१३।।
इस महल के अन्दर महावीर के, जीवन के कुछ दृश्य दिखे।
सिद्धार्थ राज का सिंहासन, रानी त्रिशला का पलंग दिखे।।
देखो जो दो चारण मुनिवर, निःशंक हुए थे प्रभु ढिग आ।
दोनों ने अतिशय खुश होकर, जिनशिशु को सन्मति नाम दिया।।१४।।
इन मुनियों को कर नमन महल के, सभी दृश्य देखो रुचि से।
फिर सबसे ऊपर शांतिनाथ, चैत्यालय दर्श करो मन से।।
है तीन लोक आकार एक, वहाँ ऊपर सिद्धशिला देखो।
हैं सिद्ध अनंतानंत जहाँ उस, सिद्धलोक को नमन करो।।१५।।
इस तरह तीर्थ कुण्डलपुर के, दर्शन कर मन संतुष्ट हुआ।
अतिशायी नंद्यावर्त महल, देखा तो हृदय प्रफुल्ल हुआ।।
जिस नगरी का कण-कण मस्तक पर, धारण करने योग्य कहा।
वह जन्म सफल करने वाला, तीरथ जन-जन से पूज्य महा।।१६।।
निज जन्म सफल करना हो तो, प्रभु जन्मभूमि को नमन करो।
यदि कर्म सुखद करना हो तो, तीर्थंकर को स्मरण करो।।
ऐसी ही पावन धरती पर, प्रभुवर! हो कभी जनम मेरा।
बन संकू अजन्मा कभी अगर, तो समझूँ पूर्ण भ्रमण मेरा।।१७।।
तीर्थंकर श्री महावीर प्रभू, मंगलकारी हों जगभर में।
उनकी अतिशायी जन्मभूमि, कुण्डलपुर को हर भक्त नमे।।
नवनिर्मित सभी जिनालय, कुण्डलपुर के मंगलमय होेवें।
‘‘चंदनामती’’ प्रभु दर्शन से, मेरा भी जन्म सफल होवे।।१८।।