मैं तो आरती उतारूँ रे, कैलाश गिरिवर की।
जय जय कैलाशगिरि, जय जय जय-२।।टेक.।।
युग की आदी में प्रभु ऋषभदेव, इस गिरि पर पहुँचे।
इस गिरि… अपने योगों का करके निरोध, मुक्तिपुरी पहुँचे।। मुक्तिपुरी……
इन्द्रों ने झूम-झूम, नृत्य किया धूम-धूम,
उत्सव मनाया रे, हो निर्वाण उत्सव मनाया रे।मैं तो…………..।।१।।
चक्रवर्ती भरत ने वहाँ, मंदिर बनवाए। मंदिर………..
उनके अंदर रतन प्रतिमा, उन्होंने पधरारई।।
उन्होंने……. भक्ती का रंग था, वैभव के संग था,
खुशियाँ मनाई थीं, उन्होंने खुशियाँ मनाई थीं।।मैं तो ………….।।२।।
वैसी प्रतिमा गिरी पर आज, दिखती हैं कलियुग में। दिखती….
आरती का करो खूब ठाठ, मानो है सतयुग यह।।
मानो है….. चंदना मैं भक्ति करूँ, आतम में शक्ति भरूँ,
इनको निहारूँ रे, हो प्यारा-प्यारा पर्वत निहारूँ रे।।मैं तो………।।३।।