प्रात:काल पूर्व दिशा में आकाश हुआ
लाल सूरज की किरणों ने बिछाया
अपना जाल अन्धेरा भयभीत होकर भाग गया
अपने घर प्रकाश तब फैल गया
सारी धरती पर पुन: आ गया
सायंकाल पश्चिम दिशा का तब आकाश हुआ
लाल सूरज की किरणों ने उठा लिया अपना जाल
प्रकाश तब अंधेरे से हारकर भाग गया
अपने घर अन्धकार फैल गया
सारी धरती पर सुबह और शाम के आकाश में लालिमा एक सी होने पर भी अंतर है जैसे सुबह की लाली है प्रकाश का कारण शाम की वही अन्धकार का कारण सुनो,
मेरे बन्धू! यही हाल है जीवन के राग का प्रशस्त एवं अप्रशस्त राग दोनों होते हैं लेकिन, अन्तर दोनो में उतना ही है देव शास्त्र गुरु में किया गया प्रशस्त राग आत्मा में भरता है प्रकाश तथा संसार के विषय भोगों का राग कहलाता है अप्रशस्त राग भगवान् आत्मा में उससे बढ़ जाता है अंधकार तब, नहीं सूझता मोक्षमार्ग अत: यदि तुम राग करो तो सच्चे गुरुओं से राग करो द्वेष करो तो ।
इन्द्रिय विषयों से द्वेष करो तिर जाओगे भवसागर से।
तिनके का सहारा काफी है, सुख पाओगे निज के घर में।
बस यही सार है आगम का समझो व सभी को समझाओ।
एकान्त दुराग्रह तज दो अब, परिभाषा सत्य ही बतलाओ।
पत्थर नौका के सदृश नहीं, खुद डूब के पर को भी डुबाओ।
खुद पुण्य करो यदि सुख चाहो, मत बनो विरागी जिनवर से।
नहिं वीतरागता कलियुग में, वह तो केवल रटना भर है।
बस पुण्य में ही वह शक्ती है, जो देता क्रम से शिवपुर है।