-गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी
कमल कुमार – गुरुजी! भगवान महावीर का आजकल २५५०वाँ निर्वाण महोत्सव चल रहा है। इसलिए इस समय हमारे गाँव में जितने भी साधु-संत आते हैं, सभी लोग भगवान महावीर की अनेक कहाँनिया सुनाते हैं।
सुनने वाले अनेक भक्तों में से आज कुछ लोग कह रहे थे कि भगवान महावीर भी तो बचपन में हम जैसे ही साधारण मनुष्य थे। अनंतर उन्होंने सभी जनों का उपकार किया, इसीलिए वे भगवान महावीर बन गये।
गुरूजी – नहीं बेटा! वे प्रारम्भ से ही अलौकिक महापुरुष थे। हाँ, पूर्व जन्म में वे अवश्य ही हम-आप जैसे साधारण मानव थे।
उनके गर्भ में आने के छह महीने पहले से ही नगरी में माता के आँगन में रत्नों की वर्षा का होना, श्री, ह्री आदि देवियों द्वारा जिनमाता की सेवा करना, सौधर्म इन्द्र आदि देवों द्वारा जिन बालक का गर्भ महोत्सव और जन्मोत्सव आदि मनाया जाना, यह सब अलौकिक अभ्युदय हैं।
वैसे ही जिन बालक माता का दूध नहीं पीते हैं। इन्द्र के द्वारा अपने अँगूठे में स्थापित अमृत को पीते हैं। जिन बालक के लिये दिव्य वस्त्र, अलंकार और भोजन देवों द्वारा स्वर्ग से ही लाया जाता है। दीक्षा लेने के पहले तक भगवान स्वर्ग के ही दिव्य भोजन-पान को करते हैं।
भगवान के जन्म के दस अतिशय होते हैं-शरीर का अतिशय सुगन्धित होना, पसीना रहित होना, मल-मूत्रादि से रहित होना, अतिशय सुन्दर होना, दूध के समान उज्जवल रक्त का होना, समचतुरस्त्र संस्थान का होना, वङ्कावृषभनाराच संहनन का होना, एक हजार आठ लक्षणों का होना, अतुल्य बल का होना और प्रियहित वचन का होना। तीर्थंकर बालक में जन्म से ही ये दस विशेषताएँ पायी जाती हैं। इन्हें ही दस अतिशय कहते हैं।
वे गर्भ में भी मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान से सहित होते हैं। वे किसी को विद्यागुरू अथवा दीक्षागुरू नहीं बनाते हैं। स्वयं ही स्वयंबुद्ध, स्वयंभू होते हैं। हाँ, पूर्व जन्म में उनके दीक्षागुरू अवश्य ही होते हैं।
इससे यह भी स्पष्ट है कि तीर्थंकर के सिवाय किसी को भी स्वयं दीक्षा लेने का अधिकार नहीं है। समंतभद्र स्वामी ने भी कहा है कि-
मानुषीं प्रकृतिमभ्यतीतवान् देवतास्वपि च देवता यत:।
तेन नाथ! परमासि देवता श्रेयसे जिन वृष! प्रसीद न:।।
हे नाथ! आपने मनुष्य रूप लेकर भी मानुषी प्रकृति का उल्लंघन कर दिया है। इसीलिए आप देवताओं से पूज्य होने से देवताओं में भी देवता हैं।
अत: आप परम देवता हैं। जिनदेव! मोक्ष के लिये मुझ पर प्रसन्न होइये। अच्छा कमल! और विशेषताएँ अन्य किसी दिन सुनाएँगे।
कमल कुमार- अच्छा गुरूजी! प्रणाम।