१३-१४ साल की एक बालिका जिसका नाम देशना है वह स्कूल से आती है और अपने बैग को एक कोने में रखती हुई चिल्लाते हुए माँ से कहती है।
देशना-माँ, मुझे बहुत तेज से भूख लगी है, मुझे जल्दी से खाना दो।
माँ-(अंदर से आती है और प्रेम से कहती है)-बेटी देशना! अपनी माँ से चिल्लाते नहीं है, बेटा।
देशना-माँ, मुझे आपका भाषण नहीं सुनना है, खाना दो वरना मैं होटल में जाकर खा लूँगी। अब तो दशलक्षण पर्व भी पूर्ण हो गया है। तभी माँ शीघ्र खाना लाकर देती है।
खाना खाने के बाद-
देशना-माँ मैं अपनी सहेली के साथ पिक्चर देखने जा रही हूँ।
माँ-बेटी देशना! तू तो पढ़ी-लिखी है और समझदार भी है। तू तो जानती है आज कितना अच्छा पर्व है और तू जा रही पिक्चर देखने।
देशना-माँ, मुझे पता है आज क्षमावणी पर्व है उसमें क्या देखना और सुनना है। यह तो हर साल आता है और पिक्चर में नई-नई चीजें देखने को मिलेंगी।
माँ-(थोड़ा गुस्सा होते हुए) नहीं बेटी! आज तुझे मैं शाम को मंदिर अवश्य ले जाऊँगी।
फिर समझाते हुए-बेटा मंदिर जाने से पुण्य बंध होता है और पिक्चर देखने से पाप का बंध होता है।
देशना-माँ, कर्म बंधते कैसे हैं, हमें तो दिखाई नहीं देते।
माँ-बेटी! हमारे साथ कर्म हमेशा लगे रहते हैं। वह किसी को भी दिखते नहीं है। जो अच्छे कार्य करते हैं, उनके अच्छे कर्म बंधते हैं और खराब कार्य करते हैं तो खराब कर्म बंधते हैं।
देशना-तब तो प्रतिसमय मेरे भी अच्छे और खराब कर्म बंधते हैं। माँ, मुझे माफ कर दीजिए, मैंने आपसे ऐसी बातें करीं।
माँ-ठीक है बेटी, मैंने तुझे माफ कर दिया।
देशना-माँ, आज मंदिर में क्षमावणी पर्व पर क्या होता है।
माँ-बेटी! आज के दिन सभी लोग एक-दूसरे से साल भर में जाने या अनजाने में गलती हुई है या फिर किसी से शत्रुता है, उसके लिए क्षमायाचना करते हैं।
देशना-माँ! मेरी और पायल की लड़ाई स्कूल में काफी दिनों से चल रही है। न मैं उससे बोलती हूँ और न वह भी मुझसे बात करती है।
माँ-बेटी! ऐसा नहीं करते हैं। जाओ तुम पायल के घर जाकर उससे क्षमायाचना कर लो।
देशना-ठीक है माँ! मैं पायल के घर जाती हूँ। (देशना पायल के घर पहुँचती है)
पायल-अरे देशना! तुम मेरे घर आज कैसे आ गई ?
देशना-आज क्षमावणी का पर्व है। मैं तुमसे क्षमाभाव करने आई हूँ।
शत्रु-मित्र सबमें समता का भाव रखना ही यह जैनधर्म हमें सिखाता है। तभी तो इन पर्वों को मनाने की सार्थकता है।
पायल-मैं अपने मन से शत्रुता को हटाकर मित्रता का भाव रखती हूँ।
देशना-तभी मेरी माँ ने आज इस पर्व का महत्त्व बताया है।
पायल-मैं भी तुमसे क्षमाभाव करती हूँ। आगे ऐसी गलती कभी नहीं करूँगी। (देशना पायल को लेकर अपने घर जाती है। देशना की माँ और सभी लोग मंदिर में जाते हैंं। मंदिर में सभी लोग एक-दूसरे से क्षमायाचना धारण कर रहे हैं। छोटे-छोटे बच्चे भी एक-दूसरे से क्षमाभाव कर रहे हैं। मंदिर में धर्मसभा लगी हुई है। वहाँ पर पंडित जी सभी को क्षमावणी पर्व का महत्त्व बता रहे हैं।)
पंडित जी-‘‘क्षमा वीरस्य भूषणम्’’ क्षमा वीरों का आभूषण है, चाहे शत्रु हो या मित्र, सबमें समता का भाव रखना चाहिए और क्षमागुण को मन में धारण करना चाहिए। गुणी जनों को देख हृदय में मेरे प्रेम उमड़ आवे। बने जहाँ तक उनकी सेवा करके यह मन सुख पावे। गुणी जनों को देखकर हृदय आल्हादित होना चाहिए। मनुष्य को क्रोध, वैर, भाव को छोड़कर अपना मन पावन करना चाहिए। यदि किसी से बहुत पुरानी शत्रुता भी हो तो उसे भूल जाना चाहिए और मित्रता की भावना रखनी चाहिए। अपनी वाणी को हमेशा शीतल और मधुर रखना चाहिए। अपनी भावना सदा सरल रखनी चाहिए।
वर्षा-पंडित जी! मेरी माँ आज कह रही थी कि जब पशु भी वैर को छोड़कर क्षमाभाव धारण कर लेते हैं, तो क्या हम लोग भी क्षमाभाव धारण नहीं कर सकते हैं।
पंडित जी-वाह बेटी वर्षा! तुमने बहुत बढ़िया बात कही। हम लोग क्यों नहीं धारण कर सकते, जब पशु भी क्षमाभाव धारण कर सकते हैं। देखो-सिंह और गाय जन्मजात बैर को छोड़कर एक घाट पानी पीते हैं, तो क्या हम जैसे मनुष्य क्षमाभाव को धारण नहीं कर सकते हैं, अवश्य धारण कर सकते हैं।
देशना-पंडित जी! कुछ माह पूर्व यहाँ एक मुनि महाराज जी आये थे, उन्होंने उपदेश में कहा था कि भव्यप्राणियों! क्रोध को त्याग करके क्षमाभाव धारण करो।
रीता-हाँ पंडित जी! मैंने भी नियम लिया था कि मैं किसी पर भी ज्यादा क्रोध नहीं करूँगी, मैं बहुत शान्त रहती हूँ, मुझे बहुत ही सुख का अनुभव होता है।
पंडित जी-तुम लोगों ने महाराज जी का प्रवचन सुन करके बहुत ही अच्छे भाव ग्रहण किये हैंं। ‘क्रोध मनुष्य को अंधा बना देता है।’ देखो-तुंकारी ने अत्यधिक क्रोध करके अपने जीवन में अनेक कष्ट उठाएं। तत्पश्चात् उसने मुनि के धर्मोपदेश सुनकर के क्षमाभाव को धारण करके बहुत ही शान्त परिणामी हो गयी। वाह भाई वाह! आज तो मजा आ गया, आज हम सभी लोग नियम लेते हैं कि हम लोग भी किसी के ऊपर अधिक क्रोध नहीं करेंगे और क्षमाभाव को धारण करेंगे। जय हो क्षमागुण की जय। सभी लोग सामूहिक स्वर में भजन की पंक्तियाँ गुनगुनाते हुए- क्षमा गुण को मन में धर लो, क्षमा को वाणी में धर लो। शत्रु मित्र सबमें समता का, भाव हृदय धर लो। क्षमागुण को मन में धर लो।।