एक फिल्म में आया ऐसा सीन, जिसे देख हुआ नहीं अच्छे—अच्छों को यकीन। फिल्म की तारिका गर्भवती होने पर जब कभी भ्रूण परीक्षण के बारे में सोचती है, तो कोख में पल रही कन्या अपने नन्हे हाथों से उसके पेट की आंतडियां नौचती है। इसके विपरीत जब बदलती है गर्भवती की विचारधारा, तो यही सीन बन जाता है बहुत प्यारा। माँ के पेट की आंत को नौंचने वाले वही हाथ व्रूर से कोमल बन जाते हैं, माँ को निश्छल प्यार से आनंद का स्पर्श दे जाते हैं। काश! यह फिल्मी कहानी जीवन की हकीकत बन जाती, फिर शायद ही कोई माँ अपनी कोख के साथ खिलवाड़ कर पाती।