गणिनीप्रमुख आर्यिका-शिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी जैनधर्म की दिगम्बर परम्परा में दीक्षित वर्तमान काल की वरिष्ठतम सर्वोच्च साध्वी हैं। आपने अपने दीर्घकालीन दीक्षित जीवन में सम्पूर्ण भारत वर्ष में सहस्रों किलोमीटर की पदयात्राएँ कर नैतिक मूल्यों, साम्प्रदायिक सहिष्णुता, शाकाहार एवं जैन संस्कृति का व्यापक प्रचार-प्रसार किया है।
अध्यात्म, साहित्य, व्याकरण, न्याय, भूगोल, खगोल एवं अन्य विविध विषयक ३७५ ग्रंथों की सृजनकत्र्री पूज्य माताजी को डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, फैजाबाद द्वारा फरवरी १९९५ में तथा तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय मुरादाबाद द्वारा अप्रैल २०१२ में डी.लिट्. की मानद उपाधि प्रदान कर कृतज्ञता ज्ञापित की गई।
पूज्य माताजी की प्रेरणा से सन् १९७२ में स्थापित दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान नाम की संस्था ने जम्बूद्वीप रचना आदि के निर्माण, वीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला के अन्तर्गत सैकड़ों ग्रंथों का लाखों की संख्या में प्रकाशन एवं अनेकों अन्य अकादमिक, साहित्यिक/सांस्कृतिक गतिविधियों को सफलतापूर्वक संचालित कर अंतर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित की है।
सन् १९९५ में प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चन्दनामती माताजी की प्रेरणा से संस्थान द्वारा ‘‘गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती पुरस्कार’’ की स्थापना की गई। इस पुरस्कार के अन्तर्गत चयनित व्यक्तित्व को १,००,०००/-(एक लाख) रुपये की नगद राशि, शॉल, श्रीफल, प्रशस्ति आदि भेंटकर सम्मानित किया जाता है।
यह पुरस्कार जैन धर्म/साहित्य/संस्कृति/ कला/समाजसेवा अथवा किसी भी विशिष्ट विधा के विद्वान/साहित्यकार/समाजसेवी अथवा समर्पित सामाजिक व्यक्तित्व या संस्था को प्रदान किया जाता है। वर्ष १९९५ में यह प्रथम पुरस्कार जैन गणित के क्षेत्र में उत्कृष्ट शोध कार्य करने हेतु युवा विद्वान डॉ. अनुपम जैन, इंदौर को प्रदान किया गया, वर्ष २००१ में जैन दर्शन के उद्भट विद्वान पं. शिवचरनलाल जैन, मैनपुरी को प्रदान किया गया तथा वर्ष २००५ में डॉ. शेखरचंद जैन, अहमदाबाद को दिया गया।
सन् २००५ तक यह पुरस्कार प्रति पाँच वर्ष में एक-एक विद्वान को प्रदान किया गया है, किन्तु अप्रैल २००६ में पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की आर्यिका दीक्षा स्वर्ण जयंती महोत्सव के अवसर पर संस्थान ने इस पंचवर्षीय पुरस्कार को वार्षिक पुरस्कार के रूप में घोषित किया तब वर्ष २००६ का पुरस्कार दिगम्बर जैन समाज के वरिष्ठतम विद्वान् प्राचार्य श्री नरेन्द्र प्रकाश जैन, फिरोजाबाद को प्रदान किया गया पुन: वर्ष २००७ का पुरस्कार मांगीतुंगी में निर्माणाधीन १०८ फुट उत्तुंग भगवान ऋषभदेव प्रतिमा निर्माण के विशिष्ट सहयोगी
इंजीनियर श्री सी.आर.पाटिल-पुणे (महा.) को, वर्ष २००८ का पुरस्कार श्री जे.के. जैन, दिल्ली (पूर्व सांसद) को, वर्ष २००९ का पुरस्कार श्री जे.सी. जैन-हरिद्वार (उत्तराखंड) को, २०१० का पुरस्कार संगीत सम्राट श्री रवीन्द्र जैन-मुम्बई (महा.) को एवं वर्ष २०११ का पुरस्कार मांगीतुंंगी मूर्ति निर्माण के विशेष सहयोगी
इंजी. श्री हीरालाल तात्या जैन मेंढेगिरी, मुम्बई को, वर्ष २०१२ का वरिष्ठ विद्वान् डॉ. श्रेयांस कुमार जैन-बड़ौत (उ.प्र.) को एवं वर्ष २०१३ का यह पुरस्कार दक्षिण भारत जैन सभा-महाराष्ट्र को प्रदान किया गया। पुन: अब वर्ष २०१४ में संस्थान का यह सर्वोच्च पुरस्कार ‘‘वीरा फाउण्डेशन ट्रस्ट, दिल्ली’’ के सौजन्य से भगवान ऋषभदेव १०८ फुट मूर्ति निर्माण कमेटी मांगीतुंगी के महामंत्री डॉ. पन्नालाल बालचंद पापड़ीवाल-पैठण (महा.) को प्रदान किया जा रहा है। इस अवसर पर बहुत सारी बधाई के साथ हम उनके दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन की मंगल कामनाएं करते हैं।