महान ऋषि—मुनियों एवं स्वयं सृष्टि नियामक राम, कृष्ण, महावीर एवं बुद्ध की चरण रज से युक्त पावन भूमि पर विकसित अहिंसा , प्रेम एवं सह— अस्तित्व से परिपूरित ‘‘ईश्वर अंश जीव अविनाशी’’ की पोषक, भारतीय संस्कृति की विभिन्न आक्रान्तित संस्कृतियों के साथ सानिध्यता के फलस्वरूप पारम्परिक मूल्यों एवं धार्मिक अवधारणाओं में अध: पतन जैसी दृष्प्रवृत्ति का प्रभाव हमारी संस्कृति पर परिलक्षित एवं प्रतिबिम्बित हो रहा है। अगणित अनुपमेय वीरों की प्रसूता ‘‘ वीर भोग्या वसुन्धरा’ के रूप में ख्याति अर्जित कर चुकी इस भारत भूमि के बदलते सांस्कृतिक परिदृश्य का अनुमान इस बात से सहज ही लगाया जा सकता है कि वर्तमान समय में हमारे राष्ट्र में असंख्य कत्लगृहों (बूचड़खानों) में प्रतिदिन लाखों निरीह पशुओं का निर्मम वध किया जा रहा है। ।
इतनी अधिक संख्या में इन असहाय एवं बेबस पशुओं का वध कारुणिक एवं हृदय विदारक दृश्य आत्मा को इतना द्रवित करता है कि इस दुखद स्थिति को वर्णित करने के लिए मर्माहित मन, हृदय कोष से उचित शब्दों की तलाश करने में अपने को पूर्णत: असमर्थ पा रहा है। ऋषि—मुनियों की इस तपोभूमि पर बढ़ती इस हिंसक ताण्डवीय दुष्प्रवृत्ति का शिकार हो रहा गोवंश एवं जैव विविधता, अपने पीछे छोड़ जाते हैं एक दु:खद स्मृति एवं यक्ष प्रश्नों की एक लम्बी शृ्खला……? प्रकृति की सभी कृति, स्वयं में अनुपमेय है और मानव इन सबमें , सबसे उत्कृष्ट कृति है। प्रकृति ने मानव में विलक्षण चिंतन क्षमता विकसित कर, स्वयं मानव की अपनी एवं वसुधा पर विचरित समस्त जैव तथा वनस्पति जगत की सुरक्षा का भार मानव पर छोड़ दिया। जिसका उसने सफलतापूर्वक निर्वहन भी किया, लेकिन वर्तमान परिवेश में शोषण का प्रतिरूप एवं पर्याय बन चुके अतिवादी मानव द्वारा पारम्परिक सांस्कृतिक मूल्यों को तिलांजलि देकर गोवंश को नष्ट करने की जो कुचेष्टा की जा रही है, वह अत्यंत चिन्ताजनक एवं खेद का विषय है।