वर्धा में गोरक्षा सम्मेलन के आयोजन हेतु संयोजक बापू के पास सम्मेलन की अध्यक्षता का निमन्त्रण स्वीकारने हेतु गये। बापू उस नियत तिथि पर अन्यत्र व्यस्त थे इसलिये उन्होंने संयोजक को डां. राजेन्द्र प्रसाद के पास भेज दिया। कार्यक्रम के संयोजक डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के पास गये और अध्यक्षता का निवेदन किया। डा. राजेन्द्र प्रसाद ने कार्यक्रम के संयोजक को दो दिन बाद मिलने को कहा। बापू ने डॉ. राजेन्द्र प्रसाद से इसके लिए पूछा कि दो दिन का समय क्यों मांगा ? डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने कहा कि मैं मन और आत्मा से ‘‘गाय’’ सम्मेलन की अध्यक्षता करने पर गहन मंथन करना चाहता हूँ सर्वप्रथम मैं आज से ही संकल्प लेता हूँ कि मैं चमड़े के जूते या अन्य परिधान धारण नहीं करुँगा। इसलिये मैंने अपने जूते सेवक को दे दिये हैं तथा अपने लिये कपड़े के जूते बाजार से खरीदे हैं। दूसरा संकल्प है कि मैं केवल गाय के दूध का ही सेवन करूँगा। आयोजक डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के इन संकल्पों के प्रति श्रद्धा से नतमस्तक हो गये। यह उल्लेखनीय है कि डॉ. राजेन्द्र प्रसाद राष्ट्रपति पद पर आसीन होने के बावजूद भी केवल कपड़े के जूते ही धारण करते थे। विदेशों की यात्रा में भी उनके कपड़े के जूते ही साथ रहते थे। राष्ट्रपति भवन में उन्होंने गाय को पाल रखा था और दैनिक क्रियाओं में गाय की सेवा करना उनका अति आवश्यक कार्य था। प्राय: जो मेहमान आते थे, उनका स्वागत वह गाय के दूध से ही करते थे। जीवन पर्यन्त डा. राजेन्द्र प्रसाद ने कपड़े के जूते ही धारण किये और गाय के दूध का सेवन किया। धन्य है ऐसे गौ भक्त। शत—शत नमन:
‘गोधन’ मासिक पत्रिका जुलाई ,२०१४
गौ माता की करुण पुकार
राधे श्याम शास्त्री
सुनो! सुनो ! ए ? भारतवासी, गौ माता की करुण पुकार।
देखो मेरी दशा, दुर्दशा, होते अगणित अत्याचार।।
कृषक जनों ने मुझको त्यागा, करते नहि वे मुझसे प्यार।
मारी, मारी, मैं फिरती हूँ, सड़कों पर, मैं सरे बाजार।।सुनो!सुनो! ए ?….
चारा, बांटा नहीं खिलाते, नहीं पिलाते मुझको नीर।
देखों मेरी ममता फिर भी, उन्हें पिलाती मीठा क्षीर।।
कितने निर्मम बने स्वार्थी, गौ पालक प्रिय पुत्र किसान।
बूढ़ी जब मैं हो जाती हूँ, तब करते मेरा बलिदान।।सुनो!सुनो!ए ?….
मेरी व्यथा की करुण कहानी, आओ ! तुम्हें सुनाती हूँ।
वधशाला में वध करने का, हाल तुम्हें बतलाती हूँ।।
कैसे कत्लगृहों में मुझको , मारा काटा जाता है। क्या ?
मेरी निर्मम हत्या पर, आक्रोश तुम्हें नहीं आता है।। सुनो!सुनो!ए ?….
आंध्रप्रान्त में अति विशाल है, अल कबीर वधशाला।
ले जाकर के वहां काटते मुझे वृद्धा अरु बाला।।
वहां बने इक मौत के कुएं में, हम सबको डाला जाता।
चार दिनों तक भूखे रखकर, कमजोर बनाया जाता।।सुनो!सुनो!ए ?…..
होकर अशक्त गिरने पर हमको, खड़ी पीटकर करते।
पैर हमारे बांध पुली से, आधा मृत हमको करते।।
पांच मिनट तक उबला पानी, हम पर डाला जाता।
आधी गर्दन काट हमारी, खून निकाला जाता।।सुनो!सुनो!ए ?….
तत्काल पेट में एक छेदकर, हवा भरी उसमें जाती।
आधी जीवित मेरे तन से, चमड़ी उतारी जाती।।
चमड़ी उतार कर मेरे तन के , टुकड़े चार किये जाते ।
गर्दन, पैर, हड्डी अरु धड़ का, भाग अलग वे करते।।सुनो!सुनो!ए …..
सबसे विशाल एशिया प्रांत की, है महाराष्ट्र में वधशाला।
काटे जाते मेरे वंशज, बहता खून का परनाला।।
मेरी माता, बहिनें, बेटे , भाई हजारों कटते।
पाकर ताजा मांस विदेशी, पेट स्वयं का भरते ।।सुनो!सुनो!ए …..
मेरे! पुत्रों सुनी आपने, हृदय विदारक अन्तर्कथा।
निश्चित मन में जागी होगी, मर्मान्तक मेरी व्यथा कथा।।
बहती थी जिस देश में पावन दूध, दही की निर्मल धारा।
बहती आज उसी भारत में, गौ माता के खून की धारा।।सुनो!सुनो!ए …..
हे! संतजनों ? माँ भक्तों जागों? सर कफन बांध संघर्ष करो।
मेरे दूध की लाज बचाने, केहरि बल हुंकार भरो।।
गूंगे, बहरे, लोलुप, निष्ठुर, शासन से दो हाथ करो ?
गौ हत्या प्रतिबंधित करने, सत्याग्रह कर जेल भरो।।सुनो!सुनो!ए …..
राम, कृष्ण, शिव, राणा, शिवा, के, वंशज सुनो पुकार।
मुझ निरीह के प्राण बचाओ ? मैं करती यही पुकार।।
‘शास्त्री’ करता विनय आपसे, हो जाओ तैयार।
गौ संस्कृति रक्षार्थ उठो ? तुम लेकर जौहर ज्वार।।सुनो!सुनो!ए … .राधे श्याम शास्त्री