आरति करो रे, श्री चन्द्रपुरी शुभ तीर्थक्षेत्र की आरति करो रे।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, श्री चन्द्रपुरी………।।टेक.।।
अष्टम तीर्थंकर चन्द्रप्रभु, चन्द्रपुरी में जन्मे थे।
गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान चार, कल्याणक प्रभु के यहीं हुए ।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, लक्ष्मणा मात के प्रिय नन्दन की आरति करो रे।।श्री….।।१।।
गर्भ चैत्र वदि पंचमि तिथि में, पौष कृष्ण ग्यारस जन्मे।
इस ही तिथि वैराग्य हुआ, निज राज्य विभव तज विरत हुए।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, दीक्षाभूमी श्री चन्द्रपुरी की आरति करो रे।।श्री….।।२।।
फाल्गुन कृष्णा सप्तमि तिथि में, केवलज्ञान हुआ प्रभु को।
फाल्गुन शुक्ला सप्तमि को, सम्मेदशिखर से मुक्त प्रभो।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, चन्दा सम शीतल चन्द्रप्रभू की आरति करो रे।।श्री….।।३।।
गंगा नदि के तट पर स्थित, यह तीरथ मंगलकारी।
दृश्य विहंगम प्यारा लगता, प्रभु की प्रतिमा मनहारी।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, शांतीदायक पावन तीरथ की, आरति करो रे।।श्री….।।४।।
इस तीरथ की आरति करके, भाव यही मन में आता।
मेरी आत्मा तीर्थ बने, मुक्तीपथ से जोडूं नाता।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, चंदनामती निजसिद्धी हेतू, आरति करो रे।।श्री….।।५।।