चौबीस तीर्थंकर नमूँ, नमूँ सिद्ध भगवान|
जहां-जहां से मुक्त हो,पाया सिद्धस्थान ||१||
चालीसा निर्वाणथल , का कहकर ये चाह |
शीघ्र मिले निर्वाणश्री,आत्मा सिद्ध कहाय ||२||
तीर्थ अयोध्या जन्मभूमि है, जन्में वहाँ अनंतों जिन हैं ||१||
गिरि सम्मेदशिखर मनभावन, तीर्थंकर का मोक्ष सुपावन ||२||
वर्तमान हुण्डावसर्पिणी, साकेता में पांच प्रभू ही ||३||
जन्में शेष तीर्थंकर जिनवर ,अलग-अलग ही पावन भू पर ||४||
इसी भांति से चौबिस जिनवर, में से मात्र बीस तीर्थंकर ||५||
श्री सम्मेदशिखर पर्वत से, मोक्षधाम पाया प्रभुवर ने ||६||
शेष चार तीर्थंकर जिनवर, चार जगह से सिद्धशिला पर ||७||
पूज्य धाम चारों स्थल वे, अष्टापद, चम्पापुर कहते ||८||
ऊर्जयंत पावापुर नामी, जहां से मोक्ष गए हैं स्वामी ||९||
अष्टापद से आदिप्रभू जी, चम्पापुर से वासुपूज्य जी ||१०||
ऊर्जयंत से नेमी जिन जी , वीरप्रभू पावापुर से ही ||११||
संभव अजित और अभिनन्दन, सुमति सुपार्श्व पद्म चन्द्रप्रभ ||१२||
पुष्पदंत शीतल श्रेयांस जी, विमलनाथ अरु प्रभु अनंत जी ||१३||
धर्म शान्ति कुन्थू अर जिनवर,मल्ली मुनिसुव्रत नमि प्रभुवर ||१४||
पार्श्वनाथ ये बीस तीर्थंकर,गिरि सम्मेद से मोक्ष परम पद ||१५||
जिनने निज को निज में ध्याया, तीर्थंकर पद उनने पाया ||१६||
सोलह भावन उनने भाई, तीर्थंकर प्रकृती प्रगटाई ||१७||
पञ्चकल्याणक के वे स्वामी, पूज्य बने वे अंतर्यामी ||१८||
गणधर मुनिगण सुर नर ध्याते, सब निर्वाण भूमि शिर नाते ||१९||
श्री बलभद्र आदि यादवगण ,साधु बने गजपंथ मोक्षथल ||२०||
सागरदत्त आदि सब मुनिवर, नगर तारवर से श्री वर कर ||२१||
श्री प्रद्युम्न शम्भु मुनि आदी, श्री गिरनार से वरी शिवांगी ||२२||
रामचन्द्र और लाडनृपादी , पावागिरी से मुक्ती पा ली ||२३||
पाण्डुपुत्र और द्रविण नृपति ने, मुक्ति वरी शत्रुन्जय गिरि से ||२४||
राम हनू सुग्रीव मुनी सब, तुन्गीगिरि से शिवलक्ष्मी पद ||२५||
नंग अनंग आदि मुनिगण थे, सोनागिरि से सिद्ध हुए थे ||२६||
पांच कोटि सुत दशमुख नृप के,रेवा नदि तट से सिद्धी लें ||२७||
दो चक्री दश कामदेव मुनि,कूट सिद्धवर से हुई मुक्ती ||२८||
बडवानी से मोक्ष पधारे, इन्द्रजीत मुनि आदिक सारे ||२९||
स्वर्णभद्र आदिक सब मुनिगण, पवागिरिवर से सिद्धी पद ||३०||
गुरुदत्तादि मुनी शिव पाए, उस द्रोणागिरि को हम ध्याएं ||३१||
बालि महाबाली आदिक मुनि, मुक्ती पाई अष्टापद गिरि ||३२||
साढ़े तीन कोटि मुनिवर थे, मुक्तागिरि से सिद्ध हुए थे ||३३||
कुलभूषण मुनि कुन्थलगिरि से, जशरथ आदि कलिंग देश से ||३४||
वरदत्तादि गिरी रेसिंदी , जम्बूस्वामी जम्बुविपिन ही ||३५||
आर्यखंड में जितने मुनिवर, मोक्ष गए वह परम पूज्य थल ||३६||
वर्तमान के सिद्धक्षेत्र ये, शिवपद हेतु प्रेरणा देते ||३७||
भक्तिभाव से उनको ध्याओ , क्षेत्र वन्दना कर हरषाओ ||३८||
तीर्थक्षेत्र की यात्रा करना, भाव सदा अपने मन धरना ||३९||
भव-भव की मम यात्रा विनशे , तीर्थ मेरी आत्मा में प्रगटे ||४०||