प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति तथा पुरातत्व विभाग-
डाॅ० हरिसिंह ग़ौर विश्वविद्यालय,सागर- म० प्र०)
सारांश
बुन्देलखण्ड क्षेत्र जैन कला की दृष्टि से भारत में सबसे अधिक समृद्ध है।बुन्देलखण्ड का ही छतरपुर जिला (म.प्र) कला के क्षेत्र में विश्व प्रसिद्ध है। जिसमें जैन कला का भी समानुपातिक योगदान है। छतरपुर जिलें में खजुराहो, द्रोणगिरि, महू-सहानिया, महेवा, नौगाँव एवं नैनागिरि के अतिरिक्त अनेक ऐसे भी स्थान हैं जहाँ का जैन पुरा वैभव अप्रकाशित है। उन्हीं अप्रकाशित स्थानों में उर्दमऊ, छपरा एवं मातगुवाँ हैं।यहाँ चंदेलकालीन जैन शिल्प मौजूद है। जिसका वर्णन यहाँ किया जा रहा है। नैर्सिगक सुषमा और भूगर्भ सम्पदा से समृद्ध छतरपुर जिला विन्ध्याचल की श्रेणियों में समाया हुआ केन, धसान नदियों के मध्य स्थित है। भौगालिक संरचना के अनुसार छतरपुर जिला २४०६’ और २५०२०’ उत्तरी अक्षांश और ७८०५९ और ८००२६’पूर्वी देशान्तर तक विस्तृत है। इस जिले का कुल क्षेत्रफल ८६८७ वर्ग कि.मी.है। यह नगर महाराजा छत्रसाल बुन्देला के द्वारा १७०७ ई. में स्थापित हुआ। महाराजा छत्रसाल के नाम पर ही इस नगर का नाम छतरपुर हुआ माना जाता है।मध्यप्रदेश जिला गजेटियर, छतरपुर १९९४, पृ.१विवेच्य काल में यह चेदि, दशार्ण , जैजाकभुक्तिआर्वियालॉजिकल सर्वे रिपोर्ट, अंक १०,पृ.३२ या जेजाहुतिसचाऊ द्वारा अनुदित,भाग-१पृ.१२७ के नाम से जाना जाता था। ईसा पूर्व छठी शती में यह भू-भाग चेदि महाजनपद के अंतर्गत था। चेदि उत्तर भारत के सोलह महाजनपदोंडॉ. एस.डी. त्रिवेदी, बुन्देलखण्ड का,पुरातत्व,राजकीय संग्रहालय, झाँसी, १९८४, पृ.१३ में से एक था। कालान्तर में शिशुपाल,नन्द, मौर्य, शुंग, सातवाहन, गुप्त कलचुरी, प्रतीहार तथा चंदेलों ने इस क्षेत्र में शासन किया। प्रारम्भिक चंदेल शासक गुर्जर-प्रतीहारों के सामन्त थे। चन्देल वंश की स्थापना ८३१ ई. के लगभग नन्नुक ने की थी।रतिभानु सिंह नाहर, प्राचीन भारत का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास, १९९०, पृ.५७७ नन् नुक के बाद वाक्पति, जयशक्ति विजयशक्ति तथा राहिल ने शासन किया। राहिल के पुत्र हर्ष ने प्रतीहारों की दासता की जुआ उतार पेंकी। खजुराहो लेखकृष्णचंद्र श्रीवास्तव, प्राचीन भारत का इतिहास, यूनाइटेड बुक डिपो, इलाहाबाद, पृ. ६२५ में उसे ‘परमभट्टारक’ की उपाधि दी गई है। हर्ष के बाद यशोवर्मन, धंग, गंड,हरिदत्त विद्यालंकार, प्राचीन भारत का राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास, आत्माराम एण्ड सन्स, लखनऊ, १९७२, पृ.५२५विद्याधर, कीर्तिवर्मन सल्लक्षणवर्मन, जयवर्मन, पृथ्वीवर्मन, मदनवर्मन शासक हुए। चंदेलवंश का अंतिम महान शासक परमर्दिदेव हुआ जिसने १२०३ ई. तक शासन किया। धार्मिक दृष्टि से छतरपुर जिले में वैष्णव, शैव, शाक, जैन सभी प्रकार के मन्दिर हैं। जैन मंदिरों का अपना कुछ अलग क्षेत्र है। छतरपुर जिले के विभिन्न स्थलों से प्राप्त जैन कला केन्द्र चंदेल कालीन हैं। जिले के विभिन्न स्थलों से प्राप्त जैन कला केन्द्र एवं केन्द्रों प्राप्त शिल्प का विवेचन इस प्रकार है
(१) उर्दमऊ:-
उर्दमऊ जैन अतिशय क्षेत्र है। उर्दमऊ ग्राम छतरपुर महोबा मार्ग के दायीं ओर स्थित है। छतरपुर से इसकी दूसरी लगभग २३ कि.मी. है। उर्दमऊ ग्राम में ग्यारहवीं शती ईसवी का एक भव्य जैन मंदिर है। जैन मंदिर पूर्वाभिमुख है। मंदिर का अधिकांश भाग सुरक्षित है। तल विन्यास की दृष्टि से अद्र्धमण्डप, गर्भगृह मंदिर के प्रमुख अंग है। जैन मंदिर का अर्द्धमण्डप ३.६० ² ४.१० मीटर आयताकार है। इसकी छत १६ स्तम्भों पर आधारित है। अर्धमण्डप के १६ स्तम्भों में से १४ स्तंभ घट पल्लवों से अलंकृत हैं। ये स्तम्भ सादे हैं। मण्डप के प्रवेश द्वार पर दो अलंकृत स्तम्भ हैं। दोनों स्तम्भ घट पल्लवों से अलंकृत हैं जिनके मध्य भाग पर जंजीर और घंटा का अलंकरण है शीर्ष में पर भारवाहक और दो उपासक अंजुलिबद्ध मुद्रा में हें एवं उसके ऊपर घट एवं पुष्पलताओं का अंकन है। गर्भगृह की प्रवेश द्वार की ऊँचाई १.४१ मीटर है। प्रवेश द्वार की देहली सादी है । सिरदल खंड के मध्य में आयताकार हीरक का अंकन है। प्रवेश द्वार के द्वार स्तम्भ में ज्यामितीय रेखाओं का अलंकरण है। गर्भगृह मे जाने के लिए सोपानपथ बने हैं। सोपानों की संख्या पाँच है। सौपान पथ से उतरकर गर्भगृह में प्रवेश करते हैं। गर्भगृह का तल पाषाणों से निर्मित। वर्तमान में तल का एक पाषाण अनुपलब्ध है। गर्भगृह में भगवान शान्तिनाथ की लगभग १३ फुट ऊँची एक विशलकाय प्रतिमा सथापित हे। प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में है। प्रतिमा के शीर्ष भाग पर त्रिछत्र का अंकन है। शांतिनाथ के शीर्ष में दो जैन तीर्थंकर कुलिका में कायोत्सर्ग मुद्रा में है। भगवान शांतिनाथ का पृष्ठभाग प्रभामण्डल युक्त है। जैन प्रतिमा कुंचित केश, अर्द्धउन्मीलित आँखे एवं श्रीवत्स चिन्ह से युक्त है। प्रतिमा के मुख पर चमकदार ओप है। जैन मुनि के दायीं और बायीं भुजा की दो-दो अँगुलियाँ भग्न हैं। प्रतिमा के दोनों पार्श्वों में चामरधारी का अंकन है जिसके सिर का भाग खण्डित है। चामरधारी किरीट, कुण्डल, ग्रेवेयक, हार, श्रीवत्स चिन्ह, केयूर, मेखला, पट्ट वस्त्राभूषण आदि से अलंकृत है। जैन प्रतिमा के पाश्र्व में नीचे दायीं मृग का अंकन है जो शांतिनाथ का लांछन हैं, बांयी और त्रिछत्र युक्त तीर्थंकर प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में है। पाद भाग में कमलासन है जिसके पार्श्व में उपासिका अंजुलिबद्ध मुद्रा में है। प्रतिमा की चरण चौकी पर संवत् ११४९ (१०९२ ई.) का लेख उत्कीर्ण है। चरण चौकी के नीचे पाश्र्व में चतुर्भुजी देवी का अंकन है। मध्य में शार्दूल है।
(२) छपरा:-
छपरा ग्राम छतरपुर-लौंड़ी-चंदला मार्ग पर स्थित गौरिहार तिराहा से लगभग २.५ कि.मी दूर है। तिराहा से कच्ची सड़क गौरिहार के लिए गई है। गौरिहार मार्ग पर तिराहा से१.५ कि.मी.की दूरी पर सड़क के दाँयीं ओर एक कच्ची सड़क छपरा के लिए गयी हैं। यहाँ से छपरा ग्राम की दूरी १ कि.मी.है। छपरा ग्राम की दूरी १ कि.मी. है। छपरा ग्राम के मढ़ तालाब की बंधान पर एक पेड़ के नीचे सिरविहीन तीर्थंकर प्रतिमा रखी है। प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में है। प्रतिमा श्रीवत्स चिन्ह से अलंकृत है। प्रतिमा की स्कन्ध, केहुनी एवं सीने के नजदीक दरारें हैं। प्रतिमा की दायीं भुजा की तीन अंगुलियाँ एवं बायीं भुजा की चार अंगुलियाँ भग्न हैं। प्रतिमा की पादपीठ पर दो पंक्तियों में नागरी लिपि में लेख उत्कीर्ण है जिसमें संवत १२२९ (११७२ ई.) एवं चंदेल शासक श्रीमद परमददीदेव का नाम उत्कीर्ण है इसका पाठ इस प्रकार है— संवत् १२२९ षष्ठ सुदि १३ शुव्रे विलासपुरो श्रीमद परमद्र्दीदेवराजे श्रवनपुरान्वे साधु श्री माधुना नित्यम् तस्य पुत्रे साधु जिणचन्द, उदयचंद, परमचंद देव वंश । वर्तमान में मूर्ति उपेक्षित अवस्था में हैं।
(३) मातगुवाँ:-
मातगुवाँ ग्राम छतरपुर-सागर मार्ग पर छतरपुर से १८ कि.मी. दूर स्थित है। मातगुवाँ तिराहा से ग्राम की दूरी लगभग १ कि.मी. है। मातगुवाँ ग्राम पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल है। ग्राम में स्थित तालाब के बंधान पर नवनिर्मित अंजनी माता के मंदिर में कतिपय जैन प्रतिमाएँ संग्रहीत हैं।
जैन तीर्थंकर:-
एक साथ तीन जैन मुनि कायोत्सर्ग मुद्रा में हैं। जैन प्रतिमा कुंचित केश,श्रीवत्स चिन्ह आदि से अलंकृत हैं। प्रतिमा के शीर्ष पर त्रिछत्र हैं। जैन प्रतिमाओं की लम्बी भुजा घुटने को छू रही हैं। प्रतिमा के पाश्र्व में चार देवी हैं जो किरीट, ग्रेवेयक, स्तन हार आदि से अलंकृत हैं। प्रतिमा की पाद पीठिका पर काई जमी है जिससे पादपीठ पर लिखे अस्पष्ट हैं।
जैन तीर्थंकर
प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में है। इनके कुंचित केश, कान लम्बे तथा छाती में श्रीवत्स का चिन्ह अंकित है। प्रतिमा के दोनों पाश्र्वों में चामरधारी तथा पाद भाग में उपासक उपासिका अंजुलिबद्ध मुद्रा में प्रदर्शित हैं। प्रतिमा पर जल चढ़ाने से काई जमी हैं। छतरपुर जिला क्षेत्र में जैन कला से सम्बन्धी साक्ष्य मुख्यत: चंदेलकालीन हैं। इस जिले में स्थित बड़ी संख्या में जैन मंदिरों , मूर्तियों से स्पष्ट होता है कि चंदेलकाल में जैन धर्म उन्नत अवस्था में था।