(गणिनी ज्ञानमती कृत-पद्यानुवाद)
जिनवर की प्रथम दिव्य देशना, नंतर सुरपति अति भक्ती से ।
निज विकसित नेत्र हजार बना, प्रभु को अवलोके विक्रिय से ।।
प्रभु एक हजार आठ लक्षण—धारी सब भाषा के स्वामी ।
शुभ एक हजार आठ नामों, से स्तुति करता वह शिवगामी ।।१।।
एक हजार सु आठ ये, श्रीजिननाम महान् ।
उनका मैं वंदन करूँ, कर कर के गुणगान ।।२।।
नाम असंख्यों धारते, गुण अनंत भंडार ।
नमूं नमूं नित भक्ति से, स्वात्म सौख्य कर्तार ।।३।।