रुपया-पैसा-कौड़ी वगैरह से हार-जीत की शर्त लगाकर ताश आदि खेलना जुआ खेलना कहलाता है अत: जुआ खेलना सब अनर्थों की खान है। इसी पर एक कथा है-हस्तिनापुर के राजा धृतराज के धृतराष्ट्र, पाण्डु, विदुर, ये ३ पुत्र थे। धृतराष्ट्र के दुर्योधन आदि १०० पुत्र हुए और पांडु के कुन्ती रानी से युधिष्ठिर आदि पाँचों पांडव कहलाते थे। ये सब एक जगह राज्य करते थे। कुछ दिन बाद कौरवों की पांडव के प्रति ईष्र्या देखकर भीष्म पितामह ने दोनों में आधा-आधा राज्य बांट दिया। फिर भी दुर्योधन आदि को शांति नहीं थी। अपनी कूटनीति से पांडव को फसा लिया। एक समय युधिष्ठिर दुर्योधन के साथ जुआ खेलने लगे। खेल में सारी सम्पत्ति हार गये। अन्त में युधिष्ठिर ने द्रौपदी आदि को भी दांव पर रख दिया। दुर्योधन उन्हें भी जीत गये। इस हार से द्रौपदी, कुन्ती सबको अपमानित होना पड़ा। यहाँ तक दु:शासन ने कुन्ती का बीच सभा में अपमान किया। कुन्ती द्रौपदी के साथ पाँचों पाण्डवों को बारह वर्षों तक वनवास भी करना पड़ा। इस प्रकार जुआ बहुत बुरा व्यसन है। जो खेलता है उसका धन, सम्पत्ति, स्त्री आदि सब बिछुड़ जाते हैं और चारों तरफ अपमानित होना पड़ता है। बुद्धिमानों को कभी भी जुआ नहीं खेलना चाहिए और भी अनेक बुरी आदतें जुआ व्यसन के अन्तर्गत आती हैं। कई ऐसी प्रतिदिन की आदतें हैं जो जुआ व्यसन के ही अन्तर्गत आती हैं जैसे-सट्टा करना, हारजीत लगाना, लाटरी के टिकट खरीदना, हंसी मजाक में शर्तादि लगाना, चौपड़, ताश के पत्ते शतरंज आदि खेल जिनमें पैसे लगाकर हार-जीत लगाई जाती है, सब ही जुआ के अन्तर्गत हैं। इस प्रकार जुआ से दोनों लोकों में दु:ख उठाना पड़ता है अत: जुआ को सर्वथा त्याग कर देना चाहिए। इसी पर एक लौकिक कथा है- एक सेठ जी के चार लड़के थे जिसमें तीन तो कमाऊ थे पर एक जुआरी था जिससे सब लोग बहुत परेशान थे। एक दिन तीनों भाइयों ने मिलकर कहा-पिताजी! ये कोई काम नहीं करता, जुआ खेलता रहता है इसलिए इसे घर से निकाल दो। पिताजी ने कहा-ठीक है एक बार मिलकर सब लोग यात्रा कर लें। फिर जैसा होगा, देख लेंगे। सभी लोग सकुशल यात्रा को निकले। यात्रा होने के बाद पिताजी ने अपने चारों पुत्रों को २०-२० रुपये देकर कहा-जाओ इससे कमाकर लाओ। भाग्य से चौथा पुत्र जुआरी जुआ में जीतने से सबसे अधिक कमाकर लाया और तीनों पुत्र वैसे ही लौटे। अब पिता के कहने से चारों भाई एक में रहते थे। एक दिन जुआरी जुआ में सब धन सम्पत्ति हार गया, जिससे उसने राजा के यहाँ खूब सारी चोरी कर डाली। राजा ने मृत्युदंड देने की नौकर को आज्ञा दी। अब उस जुआरी ने चारों रानी के चरणों में पड़कर मेरी रक्षा करो, ऐसी प्रार्थना की। तीन रानी ने तो उसे खूब संपत्ति दी लेकिन चौथी रानी ने पूछा-तुम्हें क्या चाहिए? जब उसने कहा- मुझे कुछ नहीं चाहिए, मुझे मृत्यु दंड से बचा दो। जब रानी ने कहा कि आप आजीवन जुआ खेलने का त्याग कर दो, तभी मृत्युदंड से बच सकते हो अन्यथा नहीं। तब उसने हमेशा के लिए जुआ खेलना त्याग कर दिया और चोरी आदि सभी पापों का भी त्याग दिया। इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि जुआ खेलना महापाप है। कभी भूलकर भी किसी को जुआ नहीं खेलना चाहिए।