जैनधर्म की २४ तीर्थंकर परम्परा के अष्टम तीर्थंकर श्री चन्द्रप्रभ भगवान् हम सबके आराध्य हैं। वे चन्द्रमा के समान कान्तिवाले होने के कारण ‘चन्द्रप्रभ’ नहीं हैं किन्तु चन्द्रमा की प्रभा को भी हरने वाले हैं क्योंकि चन्द्रकान्ति तो रात्रि में ही प्रकाशित होती है जबकि वे तो अपनी प्रभा से दिन और रात, दोनों को प्रकाशित करने वाले थे। आचार्य श्री गुणभद्र ने श्री चन्द्रप्रभ भगवान् को नमस्कार करते हुए लिखा है कि—