(१३०) महाकवि धनञ्जय — द्विसंधान महाकाव्य के अंतिम पद्य की व्याख्या में टीकाकार ने इनके पिता का नाम वसुदेव माता का नाम श्रीदेवी और गुरू का नाम दशरथ सूचित किया है। गृहस्थ धर्म और गृहस्थोचित षट्कर्मों का पालन करता था। इनके विषापहार स्तोत्र के सम्बन्ध में कहा जाता है कि कवि के पुत्र को सर्प ने डँस लिया था अत: सर्पविष को दूर करने के लिए इस स्तोत्र की रचना की गई है। समय के बारे में मतभेद है। फिर भी आपका समय १० वीं शती के पूर्व होना चाहिए। विषापहार स्तोत्र, धनञ्जयनिघण्टु या नाममाला, द्विसंघानमहाकाव्य आपकी रचनाएं है।