१.
सर्वोच्च नारीरत्न यूँ तो कई एक महापुरुषों से भारत का मस्तक ऊंचा|
पर जीवन के हर क्षेत्र में नारी का अद्भुत सहयोग रहा ||
नारी समाज में सर्वश्रेष्ठ आदर्श रूप तेरा अनुपम |
तेरे व्यक्तित्व की दिव्य चमक खिल उठा त्याग का नया चमन ||
२.
ज्ञान की सरिता ज्ञानमती हे ज्ञान की सरिता ज्ञानमती,माँ जैन जगत की दिव्यप्रभा |
चउ शतक ग्रन्थ की रचयित्री,शारद माता सी स्वर्णाभा ||
ज्ञानामृत का निर्झर झरना,अंतर से तेरे बहता है |
उसमें अवगाहन जो कर ले,मानो मुक्तीश्री वरता है ||
३.
निकट मोक्षगामी जिनवाणी की साकार मूर्ति,आगम से गहरा नाता है |
जीवन का हर इक पहलू माँ आगम का रूप दिखाता है ||
हो निकट मोक्षगामी माता,यह चर्या तेरी कहती है |
जिनशासन रक्षा तीर्थसुरक्षा,हेतु सदा रत रहती हैं ||
४.
चतुर्मुखी प्रतिभा की धनी है चतुर्मुखी प्रतिभा तेरी, हर कार्य स्वयं में निराला है |
तेरे इस नाम में वीरसिंधु गुरु ने सब कुछ भर डाला है ||
इस चतुरक्षर के नाम में गुरु ने अमृत स्वयं उड़ेला है |
प्रतिभाओं ने आ-आके स्वयं तुझमें ही डाला डेरा है ||
५.
प्रज्ञा और पुरुषार्थ की जीवंत मूर्ति पुरुषार्थ तुम्हारा इस युग में,हर नवयौवन को चुनौती है |
सुकुमारी कन्याओं को माँ मिल गई ज्ञान की ज्योती है ||
बचपन से ही प्रज्ञा तेरी,हर जन-जन को चौंकाती है |
जब प्रज्ञा गुण को नमन करें मूरत तेरी दिख जाती है ||
६.
दृढ संकल्प की साक्षात् प्रतिमूर्ति जीवन में जो संकल्प किया,दृढता से उस पर अडिग रहीं |
उस दृढता ने इस मानव को,दृढ रहने की शुभ शिक्षा दी ||
गर डिगो कभी मारग से तो,माँ ज्ञानमती का ध्यान करो |
७.
प्राचीन आचार्य परंपरा की संवाहिका बीसवीं सदी के प्रथम सूरि,आचार्य शांतिसागरजी थे |
चारित्रचक्रवर्ती सूरीश्वर,निष्कलंक गुण आगर थे ||
उन गुरुवर की परंपरा है,आज भी कायम इस भू पर |
उस परंपरा को वृद्धिंगत करने में माता तू सर्वप्रथम ||