’’मैं तीन लोक के समस्त जीवों के हितकर, सर्वज्ञ, धर्मोपदेशदाता श्री वद्र्धमान महावीर स्वामी का वंदन करता हूँ। भगवान महावीर भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड में वर्तमान चौबीसी के अंतर्गत अंतिम चौबीसवें तीर्थंकर हैं जिनका जन्म कुण्डलपुर में राजा सिद्धार्थ के सात मंजिल वाले नंद्यावर्त राज महल में हुआ था। उनकी माता का नाम त्रिशला था जो लिच्छिवि गणराज्य के प्रमुख राजा चेटक की पुत्री थी।
त्रिशला माता द्वारा देखे गये सोलह स्वप्न — (१) ऐरावत हाथी, (२) बैल, (३) सिंह, (४) हाथी के द्वारा कलशों से अभिषिक्त लक्ष्मी, (५) दो पुष्प मालायें, (६) चांदनी युक्त चंद्रमा, (७) उदित होता हुआ सूर्य, (८) सरोवर में क्रीड़ा करती युगल मछलियाँ, (९) दो स्वर्ण कलश, (१०) कमल युक्त सरोवर, (११) लहरयुक्त समुद्र, (१२) रत्न—जड़ित देव विमान, (१३) नागेन्द्रभवन, (१४) प्रकाशमान रत्नराशि, (१५) सिंहासन, (१६) निर्धूम अग्नि ।
स्वप्न का फल— राजा सिद्धार्थ जो कि अवधिज्ञानी थे ज्योतिष विद्या में निष्णात थे उन्होंने स्वप्न का फल बाते हुए कहा था— ‘‘रानी ! तुम्हारे गर्भ में एक महान् आत्मा अवतरित हुई है जो जन्म लेकर आत्म कल्याण करते हुए विश्व एवं प्राणीमात्र का महान कल्याण करेगी।’’
भगवान महावीर जन्म समय— भगवान महावीर का जन्म सिद्धार्थी संवत्सर में चैत्र शुक्ला १३ को, सोमवार के दिन अर्थात् २७ मार्च ईसा पूर्व ५९८ को हुआ था।
बालक वर्धमान के मित्रों के नाम —(१) काकधर, (२) पक्षधर, (३) चलधर।
राजकुमार वर्धमान के आभूषण—राजकुमार वर्धमान निम्नांकित १६ प्रकार के आभूषणों को धारण करते थे— (१) शेखर, (२) पट्टहार, (३) पदक, (४) ग्रेवेयक, (५) आलंबक, (६) केयूर, (७) अंगद, (८) मध्यबंधुर, (९) कटिसूत्र, (१०) मुद्रा, (११) चंचल कुण्डल, (१२) कर्णपुर, (१३) कंकण, (१४) मंजीर, (१५) कटक, (१६) श्रीगंध ।
भगवान महावीर दीक्षा कल्याणक तिथि—२८ वर्ष ७ मास व १२ दिन की आयु में, मगसिर कृष्णा १० सोमवार २९ दिसम्बर ५६९ ईसा पूर्व के दिन ‘‘चन्द्रप्रभा’’ पालकी में सवार होकर ज्ञातृवनखण्ड में जाकर दीक्षा ली।
केवलज्ञान कल्याणक—ऋजुकूला नदी के तट पर वैशाख सुदी १० अर्थात् रविवार २३ अप्रैल ईसा पूर्व ५५७ के दिन महावीर प्रभु को केवल की प्राप्ति हुई थी।
प्रथम दिव्य देशना—केवलज्ञान के ६६ दिन बाद श्रावण वदी एकम रविवार १ जुलाई ईसा पूर्व ५५७ को प्रथम दिव्य देशना हुई यह पर्व वीर शासन जयंती के नाम से जाना जाता है।
मुख्य संदेश—जियो और जीने दो।
प्रमुख सिद्धांत—अहिंसा, अपरिग्रह, अनेकांत।
धर्म प्रचार—महावीर स्वामी ने केवलज्ञान होने के पश्चात् २९ वर्ष ५ माह व २० दिन तक चर्तुिवध संघ सहित देश—विदेश में महान धर्म प्रचार किया।
महावीर प्रभु निर्वाण—भगवान महावीर स्वामी ने पावापुरी के मनोहर उद्यान में ४८ घंटे पूर्व योग निरोध करके र्काितक कृष्णा अमावस्या को मंगलवार १५ अक्टूबर ५२७ ईसा पूर्व ७१ वर्ष ३ माह २५ दिन और १२ घण्टे की अवस्था में निर्वाण पद प्राप्त किया। भगवान महावीर का निर्वाण दिवस दीपावली के रूप में मनाया जाता है। काश्यपगोत्रीय, आदिसूत्र, पद्भयोनिप्रवर, इक्ष्वाकुवंशकेशरी, नाथकुल के मुकुटमणी, लिच्छिवी गणराज्य के प्रदीप, श्रमणधर्म के दर्पण, वीर, महावीर, अतिवीर, सन्मति और वर्धमान नाम से प्रसिद्ध प्रभु महावीर स्वामी के चरणों में बारम्बार नमन करते हुए प्रार्थना हौ— देवाधि देव ! परमेश्वर ! वीतराग ! सर्वज्ञ ! तीर्थंकर ! सिद्ध ! महानुभाव ! त्रैलोक्यनाथ ! जिनपुंगव ! वर्धमान स्वामी गतोस्मि शरणं चरणं द्वयं ते।
संकलन-ऐतिहासिक महापुरुष तीर्थंकर वर्धमान महावीर से