पेट की भूख से ज्यादा पेटी यानि धन की भूख होती है। पेट की भूख भोजन कर लेने से कुछ समय के लिए शांत हो जाती है परन्तु पेटी, रूपयों पैसों से भरी होने पर भी , मन की लालसा हमेशा पेटी के आकार को बड़ा करती जाती है। लालसा के कारण हमें जो मिला है उससे संतुष्ट नहीं हो पाते और जो मिल नहीं पाया है उसे पाने के लिए दिन—रात एक करते रहते हैं।
बिहार प्रांत की राजगृही नगरी में भगवान महावीर के समय एक धर्मात्मा राजा राज्य करता था, जिसका नाम श्रेणिक था। राजा श्रेणिक अपनी प्रजा को बहुत चाहता था। राज्य में हर तरह की सुख शांति थी। लोग अपने घरों में ताला नहीं लगाते थे क्योंकि उस समय लोग चोरी को पाप समझते थे और चोरी करने से डरते थे।
राजा श्रेणिक की महारानी का नाम चेलना था । महारानी बहुत धार्मिक थी तथा जैन धर्म को पालन करने वाली भगवान महावीर स्वामी की भक्त थी। प्रजाजनों के सुख—दुख में सदैव राजा श्रेणिक के साथ रहती थी। राज्य मेंं कोई इतना गरीब नहीं था, जिसे खाने को अनाज न हो। सभी प्रजाजन अपने राजा की आज्ञा को मानते थे तथा ईमानदारी से अपना व्यापार करते हुए धन कमाते थे।
एक रात्रि में महारानी चेलना को नींद नहीं आ रही थी।
चांदनी खिली हुई थी। चाँदनी की शीतलता का आनन्द लेने के लिए वह राजमहल की छत पर पहुँची, उनके साथ उनकी प्रमुख दासी भी थी। महारानी ने देखा कि राजगृही के निकट बहने वाली नदी में बाढ़ आई हुई है। महारानी ने चांदनी के मद्विम — प्रकाश में देखा कि कोई अधेड़ उम्र का व्यक्ति नदी के किनारे खड़ा हुआ है जो नदीं में बहती हुई लकड़ियों को इकट्ठा कर रहा है। रानी का दिल उसकी गरीबी पर विचार कर पिघल गया। महारानी ने अपनी दासी की ओर इशारा करते हुए कहा कि —‘‘ देखो सखी! हमारे राज्य में भी कोई इतना गरीब है जो अपनी आजीविका के लिए रात—रात भर जागकर नदी में बहती लकड़ियों को जमा कर रहा है, ऐसे लोगों को राज्य से अवश्य मदद दी जानी चाहिए।
दासी ने महारानी की हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा— ‘‘स्वामिन! तुम्हारे विचार हमेशा जनता की भलाई के लिए रहते हैं। सुबह होते ही उस व्यक्ति को राज दरबार में बुलवाया जाये और उसकी इच्छा को जानकर राज्य की ओर से उसे भरपूर सहायता दी जावे। महारानी ने कहा—‘‘ ऐसा ही होगा।’’ सुबह होते ही महाराज से उसकी खोज करने के लिए कहूँगी।मैं चाहती हूँ कि कोई असहाय वृद्ध अपनी रोजी रोटी के लिए दु:खी न रहे, उसे राजकोष से हर माह कुछ न कुछ सहायता दी जाया करे।
दोनों के बीच बातों में काफी रात बीत चुकी थी लेकिन वह अधेड़ व्यक्ति अब भी नदी के किनारे लकड़ियाँ जमा कर रहा था।
सुबह हुई। उठते ही महारानी ने राजा श्रेणिक से रात की घटना कह सुनायी। राजा श्रेणिक ने महारानी की बात का पूरा सम्मान किया और कहा कि उस व्यक्ति का पता लगाकर राजदरबार में बुलाया जायेगा। राजा ने अपने कर्मचारियों को उस व्यक्ति को ढूंढकर राजदरबार में लाने के लिए कहा। आखिर वह व्यक्ति खोज लिया गया। वह उसी नगर का मम्मण सेठ था। राज कर्मचारियों द्वारा वह दरबार में लाया गया। राजा श्रेणिक उनकी दीन—हीन सी हालत पर दया दिखाते हुए कहने लगे — हे आर्य! तुम इस अवस्था में भी रात—रात जागकर इतनी मेहनत क्यों करते हों? भय छोड़कर मुझे बताओ कि तुम्हें किस वस्तु की कमी है जिसे पाने के लिए तुम परेशान नजर आ रहे हो।
सेठ ने कहा—अन्नदाता। मेरे पास एक बैल है। मैं उसकी जोड़ी का दूसरा बैल पाना चाहता हूँ मैं मेहनत करके धन इकट्ठा कर रहा हूँ ताकि जीवन की यह अंतिम अभिलाषा भी पूरी कर सकू। राजा श्रेणिक ने कहा—भद्र! इस छोटी सी बात के लिए तुम इतने परेशान हो ? राजा ने तत्काल अपने एक राजा—सदस्य को आदेश दिया कि इस सेठ को इसकी जोड़ी का बैल राज्य की पशुशाला से दे दिया जाये परंतु सेठ ने राजा के बैलों को देखकर कहा कि इनमें तो मेरे बैल जैसा एक भी नहीं है। राजा अचंभे में पड़ गया। उसने राजा को अपना बैल दिखाया जो कि शुद्ध सोने का बना हुआ था और बहुमूल्य हीरे मोतियों से जड़ा हुआ था। राजा के पास भी इतना वैभव न था जो उसे ऐसा बैल दे सके। वह सेठ धन की भूख में ऐसे ही मर गया।