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अयोध्या
नारी-अभिषेक
June 11, 2020
कविताएँ
Indu Jain
नारी-अभिषेक
जो नारी तीर्थंकर प्रभु ; को अगर जनम दे सकती है
वो नारी अभिषेक प्रभु का ; कैसे ना कर सकती है
आज काल की विडंबना से ; नारी के अधिकार गए
अधिकारों के दाता प्रभु भी ; अब तो मोक्ष सिधार गए
जो नारी चंदनबाला बन ; प्रभु को पडघा सकती है
वो नारी अभिषेक प्रभु का ; कैसे ना कर सकती है १
चौके में तो माँ बहने ही ; भोजन शुद्ध बनाती है
यदि अशुद्ध है तो वो कैसे ; काया शुद्ध बताती है
सम्यक्त्वी बन नारिवेद का ; छेदन जो कर सकती है
वो नारी अभिषेक प्रभु का ; कैसे ना कर सकती है
२
व्यसनी पुरुष अभिषेक करे ; जबकि उनकी आदत गंदी
फिर भी शीलवती नारी पर ; कैसे कर दी पाबंदी
सफेद साडी धारण कर जो ; महाव्रती बन सकती है
वो नारी अभिषेक प्रभु का ; कैसे ना कर सकती है ३
खुद अशुद्ध है तो वो कैसे ; वेदी शुद्धि करती है
घटयात्रा में घट लेकर क्यों ; तीर्थों का जल भरती है
जो नारी शची बनकर प्रभु का ; पहला दर्शन करती है
वो नारी अभिषेक प्रभु का ; कैसे ना कर सकती है ४
हर नारियां है अशुद्ध तो ; घटयात्रा में पुरुष चलें
वरना उनको उनका पूरा ; आगमोक्त अधिकार मिले
जो सुवर्ण सौभाग्यवती बन ; विधिविधान कर सकती है
वो नारी अभिषेक प्रभु का ; कैसे ना कर सकती है ५
प्राचीन ग्रंथों का प्रमाण दो ; कोई तो मुझको आकर
जो मुझको झुटलादे उसका ; बन जाऊंगा मैं चाकर
जो माता मरुदेवी त्रिशला ; ऐरादेवी बनती है
वो नारी अभिषेक प्रभु का ; कैसे ना कर सकती है ६
ओ माताओं जग जाओ ; वरना सर्वस्व गंवा दोगी
अभिषेक के जैसे आगे ; दर्शन भी ना पाओगी
‘चंद्रगुप्त’ कहता जो शची बन ; परभव मुक्ति वरती है
वो नारी अभिषेक प्रभु का ; कैसे ना कर सकती है ७
जो नारी तीर्थंकर प्रभु ; को अगर जनम दे सकती है
वो नारी अभिषेक प्रभु का ; कैसे ना कर सकती है
Tags:
Jain Poetries
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