एक सेठ के पास चांदी के फरमे में एक अलार्म घड़ी थी। इस घड़ी को वह हमेशा एक ही स्थान पर एक ही अल्मारी में रखे रखता था। एक दिन उसका एक नौकर उस कमरे की साफ सफाई कर रहा था। साफ सफाई के दौरान नौकर से घड़ी गिर कर टूट गई। नौकर घबरा गया और काफी दुख में भी पड़ गया। वह चिंता करने लगा कि जब मालिक को पता चलेगा तो वह उसे इसका दंड देगा। इसी उधेड़बुन में रात हो गई । जब सेठ रात को नींद लेने लगा तो नौकर रोजाना की तरह सेठ के पांव दबाने लगा। जैसे—जैसे दबाता जाता उतने ही आंखों से आंसू भी बहाता जाता था । वह अचानक सेठ को इस बात का पता चल गया कि उसका नौकर पैर दबाते दबाते रो भी रहा है। सेठ ने उससे उसके रोने का कारण पूछा। नौकर ने सेठ को उनकी घड़ी टूटने की बात बता दी। यह कहकर नौकर तो सो गया। कितनी प्यारी घड़ी थी। आधी रात के बाद यकायक उसे ध्यान आया कि यह अलार्म घड़ी तो उसे इस साल अपने नौकर को उसकी सेवा से खुश होकर देनी थी। उसके भाग्य में यह नहीं थी। वास्तव में तो नौकर की हानि हुई है।यह सोचकर सेठ भी सो गया। अगली सुबह जब सेठ ने नौकर से कहा, यह अलार्म घड़ी तो मुझे वैसे ही तुम्हीं को देनी थी। अब नौकर फिर से चिंता में पड़ गया और रोने लगा।