कोई धैर्य, वीर्य, उत्साह आदि गुणों से सहित मुनि अपने गुरु के पास सभी श्रुत पढ़कर अन्य आचार्य के पास पढ़ने के लिए यदि जाना चाहता है, तो वह गुरु के पास विनय से अन्यत्र जाने की आज्ञा हेतु बार-बार प्रश्न करता है। अवसर देखकर शिष्य तीन, पाँच अथवा छह बार प्रश्न करता है। दीक्षागुरु, शिक्षागुरु से आज्ञा लेकर अपने साथ एक, दो या तीन मुनि लेकर जाता है क्योंकि एकाकी विहार का आचार्यों ने निषेध किया है। यहाँ मुनियों के आचार का दिङ्मात्र वर्णन किया है, विशेष मूलाचार आदि ग्रंथों से देखना चाहिए।