आचार्य, उपाध्याय और साधुपरमेष्ठी का लक्षण
आचार्य, उपाध्याय और साधुपरमेष्ठी का लक्षण आचार्य-जो दर्शनाचार, ज्ञानाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचार इन पांच आचारों का स्वयं आचरण करते हैं और अन्यों को कराते हैं तथा छत्तीस गुणों से रहित होते हैं, वे आचार्य परमेष्ठी कहलाते हैं। छत्तीस गुणों के नाम-बारह तप, दशधर्म, पाँच आचार, छह आवश्यक क्रियाएँ, मनोगुप्ति, वचनगुप्ति तथा कायगुप्ति ऐसे ये…