पनिहार जिला ग्वालियर से प्राप्त जैन मूर्तियों का विशाल भंडार
पुरातत्व विभाग गूजरी महल संग्रहालय से प्राप्त जानकारी के आधार पर मैं दिनांक १-१०-९० को ग्राम पनिहार जिला ग्वालियर, जो राजकीय राजमार्ग आगरा-बाम्बे पर ग्वालियर से २० कि.मी. की दूरी पर है, में गया। वहां एक विशालकाय टीले पर खुदाई का काम चल रहा था। वर्णित हो कि इस भाग से एक रेलवे लाइन डाली जा रही थी उसी की खुदाई में जैन तीर्थंकर की मूर्तियां, जिसमें सर्वतो भद्रिका की लगभग चार मूर्तियां, जिसमें सर्वतो भद्रिका की लगभग चार मूर्तियां, जिसमें सर्वतो भद्रिका की लगभग चार मूर्तियां एवं कायोत्सर्ग में जैन तीर्थंकर आदिनाथ एवं नेमिनाथ की कई मूर्तियां दसवीं शताब्दी की प्राप्त हुई, जो निर्मित हैं। संभवतः प्राचीन काल में यहाँ विशाल जैन मन्दिर था जिसके अवशेष प्राप्त हो रहे थे। यह गोपाचल सिद्धक्षेत्र से उत्पन्न हुआ है एवं इस ग्राम में मौर्यकाल से लेकर प्रतिहार काल तक के पुरावशेष गुप्त पड़े हैं। दक्खिन से लगा हुआ ग्राम बराई है जो मध्यकाल में तोमर राजा मानसिंह की रास लीला स्थली है।
आज यह स्मारक म. प्र. शासन द्वारा संरक्षित है जो सुरक्षित तरीके से है। १४—१५वीं शती का यह सबसे प्रसिद्ध खुला रंगमंच था, यहां विशेष समारोह आयोजित किये गये। स्मारक के अन्दर गोलाकार प्लेट फार्म बना हुआ है चारों तरफ ऊँचे—ऊँचे स्तंभ साकार हैं। जहां प्रकाश व्यवस्था रही थी, वहां चारो तरफ दर्शकों के बैठने की भी व्यवस्था है। ज्ञात हो कि तोमर राजा डुंगरेन्द्र सिंह जो स्वयं जैन धर्म को मानते थे और किले के चारों तरफ जैन मूर्तियों को काटकर बनवाये गये थे। इससे सिद्ध होता है पनिहार में भी जैनधर्म का प्रमुख केन्द्र रहा है। पुरातत्व विभाग इस क्षेत्र को सुरक्षित रखने के लिए कटिबद्ध है। पनिहार में ही एक किला है ग्वालियर से पनिहार तक रेलवे लाइन भी पहुंची गई है। जैन परम्पराएँ यहाँ पर पहुँचती हैं। ग्राम में कई नये जैन मन्दिर भी बने हैं। इस प्रकार यह एक ही स्थान जैन सी का भंडार प्राप्त होने से क्षेत्र विशिष्ट स्थान रखता है। निश्चित ही जैन आचार्यों में से किसी आचार्य का यह महत्वपूर्ण स्थान रहा होगा, विशेष तो शोध कार्य से ही ज्ञात हो सकता है।
लाल बहादुर सिंह
संग्रहाध्यक्ष, राष्ट्रीय अभिलेखागार संग्रहालय,
गूजरी महल, ग्वालियर
अर्हत वचन जनवरी १९९३ पेज नं. 5. 5. 5. 6. 6. 7. 8. 9 …10.