जैसे किसी निर्धन को एकाएक चिन्तामणि रत्न मिल जाए तो चन्द घण्टों बाद ही उसकी खुशियों को तिरोहित करता हुआ वह पुन: खो जाए तो पाने की खुशी से ज्यादा खोने का दुख होता है वैसे ही पूज्य माताजी द्वारा सन् १९९३ के चातुर्मास की ९९ प्रतिशत स्वीकृति टिकैतनगर की जनता को मिलने पर एक बार तो उन्हें असीम आनन्द हुआ पुन: चातुर्मास के पूर्व अयोध्या के दर्शनार्थ जाने पर तीर्थ की दयनीय स्थिति को देखते हुए जब माताजी ने अयोध्या चातुर्मास की घोषणा कर दी उस समय के टिकैतनगर निवासियों के दुख को लेखनी द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता। खैर, गुरु सम्बोधन से वे धीरे—धीरे कुछ सम्भल गए। अयोध्या तीर्थ पर किसी दिगम्बर जैन साधु—साध्वी का यह प्रथम चातुर्मास था। इस चातुर्मास के मध्य माताजी की तपस्या व अनेक चमत्कार देखने में आए। लगभग १० माह के प्रवास में त्रिकाल चौबीसी मंदिर निर्माण एवं विभिन्न चातुर्मासिक कार्यक्रमों के साथ दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान एवं अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद के संयुक्त तत्त्वाधान में ‘‘भारतीय संस्कृति के आद्य प्रणेता भगवान ऋषभदेव’’ राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित हुई जिसमें शताधिक जैन—जैनेतर विद्वानों ने पधारकर जैनधर्म विषयक ज्ञान प्राप्त किया। विशेषत: सन् १९९२ में पूज्य आर्यिका श्री चंदनामती माताजी द्वारा चारित्र निर्माण संगोष्ठी में आगामी वर्ष को ‘‘चारित्र उत्थान वर्ष’’ के रूप में मनाने की जो घोषणा की गई थी उसके समापन पर पूज्य गणिनी माताजी को ‘‘चारित्रचन्द्रिका’’ की उपाधि प्रदान की गई। इसी चातुर्मास में दरियाबाद की बालिका कु. सारिका संघ में प्रविष्ट हुई। चातुर्मास के पश्चात् — चातुर्मास के पश्चात् फरवरी माह में विशाल स्तर पर हुए ‘‘भगवान ऋषभदेव पंचकल्याणक तथा महामस्तकाभिषेक’’ ने रामजन्मभूमि के नाम से विख्यात अयोध्या ‘‘ऋषभ—जन्मभूमि’’ के नाम से विश्वपटल पर अंकित कर दिया। इस महोत्सव के अन्तर्गत विविध धार्मिक, सांस्कृतिक कार्यक्रम सम्पन्न हुए तथा अनेक नेताओं—पूर्व मुख्यमंत्री उ. प्र. विधायक (अयोध्या), केन्द्रीय उपगृहराज्यमंत्री, तत्कालीन मुख्यमंत्री, जेलमंत्री, ग्रामीण विकास मंत्री, राज्यपाल (उ. प्र. सरकार) ने पधारकर स्वयं को गौरवान्वित अनुभव किया। विशेषत: तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मुलायम सिंह यादव ने उस समय राजकीय उद्यान का नाम ‘‘ऋषभदेव राजकीय उद्यान’’, अवध विश्वविद्यालय में ‘‘भगवान ऋषभदेव जैन चेयर’’ की स्थापना एवं ‘‘ऋषभदेव नेत्र चिकित्सालय’’ की घोषणा के साथ २५ लाख का अनुदान घोषित किया जो मूर्तरूप ले चुवेंâ हैं। २४ फरवरी का दिवस अयोध्या के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गया जब हजारों श्रद्धालुओं द्वारा किया गया प्रथम ऋषभदेव महामस्तकाभिषेक सदियों के लिए अपनी अमिट छाप छोड़ गया और प्रति ५ वर्षों में मस्तकाभिष्पोक की प्रेरणा पूज्य माताजी से प्राप्त हुई। १० माह के प्रवास में तीर्थ का आमूल चूल विकास होकर, टोकों का जीर्णोद्धार, यात्री आवास—भोजन हेतु ज्ञानमती निलय, देशभूषण निलय, राजा श्रेयांस भोजनालय आदि का निर्माण होकर तीर्थ एक बार पुन: अपने वास्तविक स्वरूप में आया तब से निर्वाचित वहां के पदाधिकारी विगत कई वर्षों से क्षेत्र की निरन्तर उन्नति कर रहे हैं।
सन्तों के बारे में कवियों ने कहा है कि—
ते गुरु मेरे उर बसहुं, जे भवजलधि जहाज।
आप तिरें पर तारहीं, ऐसे श्री ऋषिराज।।
आत्मकल्याण एवं परकल्याण में रत साधु—साध्वियों के प्रवचन एवं सानिध्य से न जाने कितने हृदय परिवर्तित हो जाते हैं इसी क्रम में विहार के मध्य अनेक हृदय परिवर्तित होकर मांसाहारी से शाकाहारी एवं व्यसनी से निव्र्यसनी होते देखे गए। इस सप्तम चातुर्मास में जम्बूद्वीप में चातुर्मासिक कार्यक्रम गुरुपूर्णिमा, वीरशासन जयन्ती, रक्षाबन्धन पर्व आदि विविध कार्यक्रम व इन्द्रध्वज मण्डल विधान (दशलक्षण पर्व में) सम्पन्न हुए वहीं विशेष रूप में पूज्य पूज्य चंदनामती माताजी का छठा दीक्षादिवस, जम्बूद्वीप पंचवर्षीय महोत्सव एवं मस्तकाभिषेक, ऊं मंदिर, वासुपूज्य मंदिर एवं शांतिनाथ मन्दिर में वेदी प्रतिष्ठा, शरदपूर्णिमा महोत्सव में ‘‘गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती साहित्य संगोष्ठी’’ युवा परिषद अधिवेशन, पत्रकार सम्मेलन, णमोकार महामंत्र बैंक का उद्घाटन, ६२ विद्वानों का सम्मान आदि विविध आयोजन भी हुए। पूज्य आर्यिका श्री चंदनामती माताजी की प्रेरणा से संस्थान द्वारा ‘‘गणिनी ज्ञानमती पुरस्कार’’ प्रारम्भ हुआ जो प्रथमत: डॉ. अनुपम जैन इन्दौर को उनके सामाजिक एवं धार्मिक कार्यकलापों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने हेतु दिया गया। चातुर्मास के पश्चात् — पर्वत से नदियों के निकलने की अनादि परम्परा है किन्तु नदी कभी पर्वत को जन्म देती हो ऐसा सुनने, पढ़ने या देखने में नहीं आया इसी अदृष्टपूर्व इतिहास का परिचय उस समय हुआ जब विगत दो वर्षों से मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र ट्रस्ट कमेटी एवं पूज्य आर्यिकारत्न श्री श्रेयांसमती माताजी के अतीव आग्रह को देखते हुए माताजी ने २५ नवम्बर को प्रात:काल बिना किसी विचार विमर्श के २७ नवम्बर के विहार की घोषणा कर दी जिसे सुनकर संघस्थ सभी आश्चर्यचकित हो उठे किन्तु गुरु आज्ञा समझकर तैयारी में जुट गए। उ. प्र., हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश तथा महाराष्ट्र इन ६ प्रदेशों की १६२० किमी. की मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र की यह पर्वतीय यात्रा छहखण्ड विजय के समान करते हुए २७ स्थानों पर नूतन योजनाएं भेंट स्वरूप दीं। इसी मध्य इन्दौर (म. प्र.) में पूज्य माताजी की प्रेरणा से अखिल भारतीय दिगम्बर जैन महिला संगठन की स्थापना हुई। तथा मार्ग में सुसनेर की एक कन्या कु. प्रीति जैन का संघ में प्रवेश हुआ जो ब्रह्मचारिणी के रूप में संघ में धर्माराधना करती हुई मोक्षमार्ग में अग्रसर है। मांगीतुंगी क्षेत्र पर पहुँचने से पूर्व ही अनेक चमत्कार रूप विघ्न बाधाएं स्वत: ही दूर हो गर्इं और तीर्थ के स्वरूप को बदलते हुए ५५ वर्षों बाद पंचकल्याणक की शुभ घड़ी आई तथा पूज्य मुनि श्री रयणसागर महाराज, गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी तथा आर्यिका श्री श्रेयांसमती माताजी इन त्रय संघ के सानिध्य में चिरप्रतीक्षित पंचकल्याणक एवं भगवान मुनिसुव्रतनाथ महामस्तकाभिषेक सानन्द सम्पन्न हुआ। साथ ही सहस्रकूट मंदिर की १००८ प्रतिमाओं को विराजित करने हेतु कमल मंदिर का शिलान्यास कर चातुर्मास की घोषणा मांगीतुंगी हेतु करके माताजी ने आस—पास के नगरों में विहार कर ज्ञानामृत वर्षा की।
इस चातुर्मास में वर्षा और यात्रियों की झड़ी लगने के साथ ही चातुर्मासिक एवं निर्माणात्मक कार्यक्रमों की भी झड़ी लग गई। हस्तिनापुर से प्रारम्भ हुई जैनशासन के सर्वोच्च सिद्धान्त ग्रंथ षट्खण्डागम की टीका का लेखन कार्य भी अनवरत चलता रहा, धार्मिक अनुष्ठान भी हुए, नवनिर्मित कमल मंदिर में वेदी प्रतिष्ठा होकर कमलपांखुड़ी पर १००८ प्रतिमाएं विराजमान की गर्इं। पूज्य माताजी के सिद्धक्षेत्र पर हुए इस प्रथम चातुर्मास में सदियों से रुके कार्य अति अल्प समय में सम्पन्न हो गए। श्री जयचंद जी कासलीवाल—आमदार ने सरकार के सहयोग से पर्वत पर बिजली पहुँच गई, पुन: अन्य कार्यकर्ताओं के सहयोग से धर्मशाला से पहाड़ तक पहुँचने हेतु पक्की सड़क, पुल आदि का निर्माण भी हो गया है। मांगीतुंगी का यह चातुर्मास विश्व के इतिहास में अमर हो गया क्योंकि चातुर्मास समापन से एक माह पूर्व पर्वतराज पर स्थित सुध—बुध की गुफा में ध्यान करते हुए पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी को पर्वत के मध्य पूर्वाभिमुख चट्टान में विशालकाय १०८ फुट उत्तुंग खड्गासन भगवान ऋषभदेव प्रतिमा निर्माण के भाव जागृत हुए जिसे सर्वप्रथम उन्होंने निकट बैठी पूज्य आर्यिका श्री चंदनामती माताजी को बताया, पुन: सभी को ज्ञात होने पर हर्ष की लहर दौड़ गई। शरदपूर्णिमा महोत्सव के अवसर पर मूर्ति निर्माण की घोषणा होते ही, दान—दातारों ने दानराशि देना प्रारम्भ कर दिया। परम पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की पावन प्रेरणा एवं आशीर्वाद से पूज्य चंदनामती माताजी के मार्गदर्शन एवं पूज्य क्षुल्लक श्री मोतीसागर महाराज के निर्देशन में शीघ्र ही यह कार्य मूर्त रूप लेने लगा। इस मूर्ति निर्माण कमेटी के अध्यक्ष पद का भार कर्मयोगी ब्र. श्री रवीन्द्र कुमार जी एवं महामंत्री पद का भार डॉ. पन्नालाल पापड़ीवाल के कन्धों पर डाला गया। विगत १७—१८ वर्षों से अनवरत वह कार्य प्रगति पर है और मात्र २ वर्ष की अल्प अवधि में जिनसंस्कृति की प्राचीनता का दिग्दर्शन कराने वाली वह ऐतिहासिक, विश्व का आश्चर्य जिनप्रतिमा प्रगट होकर सभी को दिगम्बरत्व की महिमा का परिज्ञान कराएगी। चातुर्मास के पश्चात् — दिगम्बर जैन साधु ज्ञान, दर्शन, चारित्र की प्रतिमूर्ति होते हैं अत: भव्यजनों को उपदेश, ज्ञानदान के साथ रत्नत्रय की सतत प्रेरणा प्रदान करते हैं। मांगीतुंगी से गुजरात होते हुए माताजी ने दिल्ली की ओर विहार किया। अब तक पूज्य चंदनामती माताजी के गुरु सानिध्य में आठ चातुर्मास निराबाध रूप में गुरु आज्ञा से प्रत्येक कार्य को समयानुकूल सम्पन्न करते हुए पूर्ण हो चुके थे और पूज्य माताजी के साथ ही तीर्थोद्धार हेतु निरन्तर कदम से कदम बढ़ रहे थे। पावागढ़ सिद्धक्षेत्र होते हुए माताजी का आगमन अहमदाबाद में हुआ जहाँ शहर के मेयर, पूर्व मुख्यमंत्री एवं तत्कालीन मुख्यमंत्री गुजरात सरकार ने क्रम—क्रम से पधारकर माताजी का आशीर्वाद प्राप्त किया तथा भक्तों ने कल्पद्रुम विधान का आयोजन कर भक्ति गंगा में अवगाहन किया। यही वह नगरी है जहां १० वर्ष पूर्व सन् १९८६ में पूज्य चंदनामती माताजी ब्रह्मचारिणी अवस्था में आकर अपने ओजस्वी प्रवचन से गुजरात वासियों को मंत्रमुग्ध करते हुए धर्म का ऐसा शंखनाद कर गई थीं जिसकी स्मृति आज तक वहां के लोगों के दिल में बसी है अब उन्हें माताजी के रूप में पाकर वहाँ की जनता विशेष आल्हादित थी। ईडर आदि स्थानों से निकलकर राजस्थान में पद विहार के मध्य संघ का उदयपुर में अभिनन्दनसागर महाराज संघ से वात्सल्यपूर्ण मिलन हुआ। पूज्य गणिनी माताजी की दीक्षा स्थली माधोराजपुरा में संघ के मंगल पदार्पण से वहां की जैन—अजैन जनता ने खुशियां मनाते हुए ‘‘गणिनी ज्ञानमती दीक्षा स्थली’’का शिलान्यास कर स्वयं को धन्य माना पुन: हरियाणा प्रांत में होते हुए संघ का लालकिला मैदान दिल्ली में विशाल शोभायात्रा पूर्वक शुभागमन हुआ जहां स्वयं दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री साहबसिंह वर्मा माताजी के स्वागतार्थ अनेक विधायकों सहित पधारे। इस विहार के मध्य भी अनेक स्थानों पर माताजी द्वारा नूतन योजनाएं प्रदान की गई। राजधानी दिल्ली में ‘‘अखिल भारतीय दिगम्बर जैन महिला संगठन’’ की स्थापना हुई तथा श्री अनिल जैन—कागजी (प्रीतविहार—दिल्ली) ने अपनी कोठी के प्रांगण में भव्य कमल मंदिर बनाकर पूज्य माताजी के सानिध्य में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा सम्पन्न की।
पूज्य मातजी का यह चातुर्मास दिल्ली के ऐतिहासिक एवं प्राचीन लाल मंदिर जी में हुआ, माताजी ने पूरी दिल्ल भ्रमण हेतु खुली रखी। मांगीतुंगी से दिल्ली विहार के मध्य ही जिनधर्म की प्रभावना के भाव से माताजी ने राजधानी दिल्ली में अत्यन्त वृहत् स्तर पर कल्पद्रुम विधान की रूपरेखा रखी थी जिसे क्रियान्वित करते हुए चातुर्मासिक विभिन्न कार्यक्रमों के साथ ही २४ तीर्थंकरों के २४ समवसरण के भव्य मण्डल बनाकर यह विशाल आयोजन किया गया जिसमें ३००० स्त्री—पुरुषों ने भाग लिया, लाखों लोगों ने प्रतिदिन उसके दर्शन किए और जिसने भी उसे देखा,चाहे वह नेता हों या समाज के शीर्षस्थ महानुभाव सभी ने मुक्त वंâठ से उसकी प्रशंसा की। इस समारोह में भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा, दिल्ल प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री साहबसिंह वर्मा, म. प्र. के मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिहं आदि ने पधारकर समवसरण के दर्शन किए तथा जैन समाज द्वारा पूज्य गणिनी माताजी को ‘‘गणिनीप्रमुख’’ की उपाधि प्रदान की गई। १ करोड़ मंत्रों के जाप्य और पूर्णाहुति हवन के पश्चात् विशाल शोभायात्रा ने पूरे देश की जैन समाज पर अमिट छाप छोड़ी। ‘‘गुरुभक्त्या भवेद! मुक्ति, क्षुद्रं किं वा न साधयेत्’’—‘‘यह उक्ति सर्वथा सत्य है कि गुरुभक्ति से बड़े—बड़े कार्य स्वयमेव सम्पन्न हो जाते हैं और अकाट्य गुरुभक्ति मुक्ति तक प्राप्त करा देती है उसी क्रम में अपने शिष्यों की निश्छल गुरुभक्ति और अद्भुत प्रज्ञा शक्ति को देखते हुए ५ नवम्बर १९९७ को दिल्ली से हस्तिनापुर विहार के पूर्व आयोजित सभा में माताजी ने ब्र. रवीन्द्र कुमार जी एवं सभी कर्मठ कार्यकर्ताओं को आशीर्वाद देते हुए अपनी सुशिष्या पूज्य आर्यिका श्री चंदनामती माताजी को ‘‘प्रज्ञाश्रमणी’’ एवं क्षुल्लक मोतीसागर महाराज को ‘‘धर्म दिवाकर’’ की उपाधि प्रदान की। चातुर्मास के पश्चात् — राजधानी दिल्ली से विहार कर पूज्य माताजी के हस्तिनापुर पदार्पण कर अनेक धर्मप्रभावनात्मक कार्य सम्पन्न कराए। माताजी द्वारा लिखित सिद्धान्तचिन्तामणि टीका के दो भागों की सम्पूर्णता पर पालकी जुलूस निकाला गया पुन: ऊं मंदिर में पंचपरमेष्ठी की प्रतिमाएं विराजमान करवाकर माताजी ने पुन: संघ सहित जैनधर्म की प्राचीनता एवं भगवान ऋषभदेव के सिद्धान्तों के प्रचार—प्रसार हेतु राजधानी दिल्ली में पुन: पदार्पण किया जहाँ माताजी की प्रेरणा से सांसद श्री वी. धनन्जय जैन के कर कमलों से ऋषभजयंती के दिन ‘‘समवसरण श्री विहार रथ’’ एवं ‘‘ऐरावत हाथी रथ’’ का उद्घाटन हुआ जो दिल्ली की विभिन्न कालोनियों में घूमा। चैत्र शुक्ला त्रयोदशी भगवान महावीर जयंती के पावन दिन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी ने भारत भ्रमण हेतु इसका प्रवर्तन किया जो सम्पूर्ण भारत में ३ वर्षों तक अपने उद्देश्य की पूर्णता करते हुए भ्रमण करता रहा। इसी प्रवास में ही नजफगढ़—दिल्ली में माताजी की प्रेरणा एवं संघ सानिध्य में ‘‘भरतक्षेत्र रचना’’ निर्माण का शिलान्यास हुआ।
इस चातुर्मास में पारम्परिक उत्सव आदि के साथ विशेष रूप में अक्टूबर माह में ‘‘भगवान ऋषभदेव राष्ट्रीय कुलपति सम्मेलन’’ का अभूतपूर्व आयोजन हुआ। जैनधर्म की प्राचीनता का परिज्ञान कराने हेतु आयोजित इस सम्मेलन में कई २० वर्तमान कुलपति, कई पूर्व कुलपति तथा १११ प्रोपेक़सर विद्वान सम्मिलित हुए। सम्मेलन के मध्य विभिन्न विश्वविद्यालयों के माननीय कुलपतियों को तथा जैन विद्या के सर्वोच्च मनीषियों को एक साथ बैठकर भगवान ऋषभदेव की शिक्षाओं के सन्दर्भ में विचार विमर्श करने का अवसर प्राप्त हुआ। सम्मेलन में अनेक महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए गए और कुलपतियों द्वारा समवेत स्वर में जारी किए गए ‘‘जम्बूद्वीप घोषणा पत्र—१९९८’’ के रूप में उनकी अनुशंसाएं यह प्रगट कर रही थीं कि इससे श्रमण परम्परा के वस्तुनिष्ठ सत्यों के उद्भासन में अमूल्य योगदान मिलेगा। इसके साथ ही पूज्य चंदनामती माताजी का दशवां आर्यिका दीक्षा दिवस एवं शरदपूर्णिमा महोत्सव भी मनाया गया। चातुर्मास के पश्चात् — चातुर्मास के पश्चात् माताजी ने संघ सहित मेरठ, हापुड़ में मंगल विहार कर महती धर्मप्रभावना की जिसमें कमलानगर—मेरठ में २४ तीर्थंकर एवं २० तीर्थंकर प्रतिमाओं की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई। त्रिलोक शोध संस्थान एवं चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्त्वावधान में संगोष्ठी तथा शास्त्रीनगर में ‘‘ऋषभदेव श्रावक संस्कार शिविर’’ आदि हुए। पुन: जम्बूद्वीप में पधारकर अक्षय तृतीया आदि विविध पर्वो को सम्पन्न कर ‘‘भगवान ऋषभदेव अन्तर्राष्ट्रीय निर्वाण महोत्सव’’ के आयोजन हेतु माताजी का पुन: विहार राजधानी दिल्ली की ओर हुआ।
इस चातुर्मास में विविध कार्यक्रमों के साथ ही समय—समय पर इन्द्रध्वज, सिद्धचक्र आदि अनेक विधान सम्पन्न हुए तथा विशेष रूप में भगवान ऋषभदेव अन्तर्राष्ट्रीय निर्वाणोत्सव के कार्यालय का उद्घाटन करते हुए समय—समय पर भगवान ऋषभदेव सम्बन्धी अनेक कार्यक्रम आयोजित हुए। दशलक्षण महापर्व के अन्तर्गत पूज्य बड़ी माताजी द्वारा ऋषभदेव दशावतार पर मंगल प्रवचन एवं रात्रि में पूज्य चंदनामती माताजी द्वारा लिखित ऋषभदेव दशावतार के नाटक हुए। इस वर्ष शरदपूर्णिमा महोत्सव भी श्री वी. धनन्जय कुार (केन्द्रीय वित्तमंत्री—भारत सरकार) एवं अनेक शासन—प्रशासन अधिकारियों की उपस्थिति में भगवान ऋषभदेव सम्बन्धी अनेक कार्यक्रमों के साथ मनाई गई। साथ ही कारगिल युद्ध में देश की रक्षा करते हुए शहीद हुए सैनिकों की आत्मा की शान्ति हेतु महिला संगठन दिल्ली प्रदेश द्वारा अनुष्ठान भी किया गया। इस चातुर्मास के मध्य नजीबाबाद (जिला बिजनौर—उ. प्र.) की कु. दीपा जैन संघ में आर्इं और उनका नाम बाल ब्र. कु. माधुरी शास्त्री (वर्तमान में आर्यिका चंदनामती माताजी) की प्रेरणा से पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी से आजनम ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण किया था और वर्तमान में ये आर्यिका स्वर्णमती माताजी के रूप में संघ में रहकर रत्नत्रय आराधना कर रही हैं। चातुर्मास के पश्चात् — चातुर्मास के पश्चात् विशेष कार्यक्रमों की शृंखला में धर्मपुरा (चांदनी चौक) स्थित सतघरा दिगम्बर जैन मन्दिर में लघु पंचकल्याणक सम्पन्न हुई। नई सहस्राब्दि सन् २००० के प्रथम दिन लालकिला मैदान—दिल्ली में चारों सम्प्रदाय के साधु और विशाल जनसमुदाय के मध्य आयोजित ‘‘अहिंसा महाकुम्भ’’ में दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित आदि अनेक नेताओं की उपस्थिति में पूज्य गणिनीप्रमुख माताजी एवं पूज्य चंदनामती माताजी ने ‘‘अहिंसा धर्म एवं भगवान ऋषभदेव’’ पर अपना मार्मिक उद्बोधन प्रदान किया पुनश्च जैनधर्म की सार्वभौमिकता एवं प्रासंगिकता पर वर्तमान इतिहास में लगे प्रश्नचिह्न का समुचित समाधान करता हुआ ‘‘भगवान ऋषभदेव अन्तर्राष्ट्रीय निर्वाण महामहोत्सव’’ का उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री माननीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा ४ फरवरी से १० फरवरी २००० तक दिल्ली के लाल किला मैदान में सम्पन्न हुआ जो नूतन इतिहास के निर्माण की कहानी को प्रारम्भ कर गया। ‘‘न भूतो न भविष्यति’’ की सूक्ति को चरितार्थ करते हुए इस महोत्सव में वैक़लाशपर्वत की भव्य प्रतिकृति में ७२ रत्नप्रतिमाएँ विराजमान कर १००८ निर्वाणलाडू चढ़ाए गए। साथ ही वृहत् युवा सम्मेलन, ऋषभदेव सर्वधर्मसभा, महिला संगठन अधिवेशन, सांस्कृतिक सन्ध्या आदि अनेकानेक कार्यक्रमों के साथ मुख्य आकर्षण का केन्द्र भगवान ऋषभदेव एवं अहिंसा सम्बन्धी ४० झाकियां, चित्र एवं पुस्तक प्रदर्शनी आदि थे। इस निर्वाणोत्सव की धूम भारत के अतिरिक्त विदेशों में भी मची। २ मार्च को राजा बाजार के प्रांगण में ‘‘भगवान ऋषभदेव कीर्तिस्तम्भ’’ का शिलान्यास कराकर माताजी ने हस्तिनापुर की ओर मंगल विहार किया जहां भव्य स्तर पर ‘‘तृतीय जम्बूद्वीप पंचवर्षीय महोत्सव’’ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा ‘‘तीन मूर्ति मंदिर पर शिखर कलशारोहण’’ तेरहद्वीप रचना के सम्मुख ‘‘ऋषभदेव कीर्ति स्तम्भ’’ का शिलान्यास आदि कार्यक्रम हुए। इसी निर्वाणोत्सव के अन्तर्गत ११ जून २००० को जम्बूद्वीप में ‘‘जैनधर्म की प्राचीनता’’ विषय पर आयोजित इहितासकार सम्मेलन में Nण्ERऊ डायरेक्टर व प्रतिनिधि सहित इतिहासज्ञों, पुरातत्त्वविदों व विद्वानों ने भाग लिया जो आशातीत सफलता के साथ सम्पन्न हुआ।
आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी ने प्रवचनसार में कहा है कि वीतरागता की प्रतिमूर्ति जैन साधु—साध्वी धर्म की प्रभावना के कार्यों में सदैव अग्रसर रहें उसी शृंखला में पूज्य माताजी ने एक बार पुन: जैनधर्म के सर्वोदयी सिद्धान्तों के प्रचार—प्रसार हेतु राजधानी दिल्ली की ओर पदार्पण कर प्रीतविहार में चातुर्मास स्थापना की। कहते हैं कि भक्त की असीम भक्ति हर असम्भव कार्य सम्भव हो जाते हैं। प्रीतविहार के ही एक धर्मश्रेष्ठी श्री अनिल कागजी ने अपनी अनन्य गुरुभक्ति का परिचय देते हुए अपनी पूरी कोठी खाली कर दी जहां माताजी का चार माह प्रवास रहा। माताजी की प्रेरणा से चातुर्मासिक सभी कार्यक्रमों के साथ—साथ दिल्ली की विभिन्न कालोनियों में ऋषभदेव संगोष्ठियों (१००८) का आयोजन भी होता रहा। अन्तर्राष्ट्रीय निर्वाण महोत्सव के अन्तर्गत ही प्रीतविहार जैन समाज में माताजी की प्रेरणा से विशाल मैदान में ‘‘कैलाश पर्वत बनाकर एक सप्ताह तक ‘‘कैलाश मानसरोवर यात्रा’’ का भव्य कार्यक्रम किया। माननीय मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित द्वारा उद्घाटित इस कार्यक्रम में हजारों श्रद्धालुओं ने प्रतिदिन ७२ जिनबिम्बों के दर्शन किए तथा माताजी के ४८ वें चातुर्मास की स्मृति में एक साथ ४८ भक्तामर मण्डल विधान किए। न्यूयार्वक़ (अमेरिका) में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आयोजित ‘‘विश्वशांति शिखर सम्मेलन’’ में पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी के लिए आमन्त्रण पत्र प्राप्त होने पर दिगम्बर जैन साधु की पदविहार सीमा और चर्या के दृष्टिगत मृदुभाषी कर्मयोगी श्री रवीन्द्र भाई जी ने गुुरुआज्ञा से वहां जाकर भारत की दिगम्बर जैन समाज की प्रतिनिधित्व करते हुए अपने अनुभूत विचार प्रस्तुत किए। बीसवीं सदी के इस ऐतिहासिक चातुर्मास के पश्चात् माताजी ने संघ सहित भगवान ऋषभदेव दीक्षा स्थली प्रयाग के विकास हेतु मंगल विहार किया। चातुर्मास के पश्चात् — विहार के मध्य अनेक नगरों में धर्मप्रभावना करते हुए ५३ दिवसीय पदयात्रा के पश्चात् उस तीर्थ पर पूज्य माताजी के चरण पड़ते ही मात्र २ माह की अल्पावधि में परिसर में निर्मित ५१ फुट ऊँचे कैलाशपर्वत की सुन्दर प्रतिकृति पर १४ फुट उत्तुंग पदमासन लालवर्णी श्री ऋषभदेव प्रतिमा विराजमान हो गई। पर्वत के दाहिनी ओर दीक्षाकल्याणक के प्रतीक में ‘‘दीक्षाकल्याणक तपोवन’’ तथा बार्इं ओर ज्ञानकल्याणक की प्रतीक भारत भ्रमण के पश्चात् आई ‘‘समवसरण रचना’’ को विराजित किया गया। श्री ऋषभदेव पंचकल्याणक एवं महाकुभ मस्तकाभिषेक के विराट आयोजन के मध्य अन्तर्राष्ट्रीय निर्वाणोत्सव का समापन एवं भगवान महावीर २६०० वें जन्मकल्याणक महोत्सव के शुभारम्भ की घोषणा हुई। एक स्वर्णिम इतिहास का सूत्रपात करते हुए मातजी ने संघ सहित विश्वप्रसिद्ध १२ वर्षीय महाकुम्भ मेले में प्रथम बार जैनधर्म का प्रतिनिधित्व किया। पुन: माताजी के ही सानिध्य में प्रयासवासियों ने भगवान महावीर २६०० जन्मजंयती का भव्य आयोजन कर २६०० मंत्रों से समन्वित चमत्कारिक नूतन ‘‘विश्वशांति महावीर विधान’’ करके भव्य शोभायात्रा निकाली साथ ही भगवान पद्मप्रभु जन्मभूमि कौशाम्बी—प्रभाषगिरि में ऐतिहासिक पंचकल्याणक प्रतिष्ठा करवाकर तपस्थली तीर्थ को उसका वास्तविक स्वरूप प्रदान करते हुए राजधानी दिल्ली की ओर विहार किया।
अशोक विहार में इस चातुर्मास में आगमानुसार चूँकि पूरी दिल्ली भ्रमण के लिए खुली थी अतएव अन्य चातुर्मासिक कार्यक्रमों के साथ विशेष उपलब्धि के रूप में ‘‘भगवान महावीर २६०० वें जन्मकल्याणक महोत्सव’’ वर्ष के अन्तर्गत दिल्ली के ऐतिहासिक फिरोजशाह कोटला मैदान में ‘‘विश्वशांति महावीर विधान’’ का विराट आयोजन हुआ जिसमें २६ मण्डलों पर चढ़ने वाले २६००—२६०० रत्नों को देखने हेतु लोगों की लगी होड़ थी। शरदपूर्णिमा महोत्सव में इसी विधान के मध्य पूज्य माताजी को महाराष्ट्र प्रान्त के भक्तों ने ‘राष्ट्रगौरव’ अवध प्रांत ने ‘धर्ममूर्ति’ और दिल्ली के प्रतिनिधियों ने ‘‘विश्वविभूति’’ की उपाधि प्रदान की। पुन: माताजी की प्रेरणा से राजा बाजार के अग्रवाल दिगम्बर जैन मन्दिर में पावापुरी जलमन्दिर की स्थाई रचना बनाकर दीपावली के दिन २६०० निर्वाण लाडू चढ़ाए गए तथा १८ नवम्बर को विजय चौक से इण्डिया गेट तक आयोजित ‘‘मौन यात्रा एवं सर्व धर्म सम्मेलन’’ में दिगम्बर जैन समाज की ओर से गुरुआज्ञा से पूज्य चंदनामती माताजी ने अहिंसा और शांति का सन्देश दिया। चातुर्मास के पश्चात् — भगवान महावीर के दीक्षाकल्याणक को विलक्षण रूप में सम्पन्न करते हुए तालकटोरा इन्डौर स्टेडियम में चारों सम्प्रदायों की सन्निधि में हुए ‘‘जय—तप महाकुंभ’’ एवं फिक्की ऑडिटोरियम में युवा परिषद के रजत जयंती समारोह में अपना सानिध्य देकर पूज्य माताजी ने पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी के बारम्बार किए जा रहे नम्र निवेदन को स्वीकार कर इस २६०० वें जन्मकल्याणक महोत्सव को चिरस्थाई बनाने हेतु दिल्ली के इण्डिया गेट से २० फरवरी २००२ को मंगल विहार कर दिया। इस ऐतिहासिक निर्णय से सारे दिगम्बर जैन समाज में हर्ष छा गया। इधर पूज्य माताजी का संघ द्रुतगति से आगे बढ़ रहा था—उधर उनकी प्रेरणा से तीर्थ विकास शृंखला भी जारी थी जिसमें समय—समय पर १०८ फुट उत्तुंग मूर्ति निर्माण हेतु मांगीतुंगी में शिलापूजन महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर में महावीर कीर्तिस्तम्भ शिलान्यास, दिल्ली प्रदेश महिला संगठन द्वारा राष्ट्रीय प्रतिभाशाली महिला एवं माता त्रिशला सम्मान समारोह आदि कार्यक्रम चल रहे थे। विहार के फिरोजाबादवासियों ने विशेष उत्साह एवं भव्यतापूर्वक संघ सानिध्य में महावीर जयन्ती मनाते हुए माताजी को ‘युगनायिका’ की उपाधि प्रदान की।
पद विहार करने वाले साधु के लिए एक बार किसी तीर्थ से निकलने के बाद पुन: आना कोई निश्चित नहीं होता है पर यह एक सुखद संयोग ही था कि विहार के मध्य एक बार पुन: माताजी के चरण उस तीर्थ पर पड़े और वहीं उनका चातुर्मास हो गया जहां तीन चौबीसी भगवन्तों की प्रतिष्ठापना एवं भव्य कैलाशपर्वत के उद्घाटन के साथ ही ‘महावीर प्रवचन हाल’ का शिलान्यास एवं चातुर्मासिक विविध कार्यक्रम हुए। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में ‘धर्म एवं संस्कृति’ विषय पर संगोष्ठी, अनेक विद्या मंदिरों में भगवान महावीर विषयक उपदेशों के साथ दीक्षास्थली पर इतिहासकारों का सम्मेलन, स्वर्णिम शरदपूर्णिमा महोत्सव एवं कुण्डलपुर राष्ट्रीय महासम्मेलन आदि उपलब्धिपूर्ण कार्यक्रम भी हुए। चातुर्मास के पश्चात् — कुण्डलपुर के ऐतिहासिक विहार के मध्य भगवान पाश्र्वनाथ, सुपाश्र्वनाथ की जन्मभूमि वारासणी, श्री सुदर्शन स्वामी की निर्वाणभूमि गुलजारबाग—पटना आदि तीर्थों के दर्शन एवं अनेक नगरों में धर्म का अलख जगाते हुए १३०० किमी. की पदयात्रा कर पचास वर्षों के इतिहास में माताजी ने संघ सहित महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर में पदार्पण किया जहां उनके सानिध्य में ही भगवान महावीर मंदिर का शिलान्यास होकर अल्प अवधि में ही मन्दिर का स्वरूप सामने आ गया और देखते ही देखते अवगाहना प्रमाण श्वेतवर्णी भगवान महावीर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं महामस्तकाभिषेक से यह भूमि विश्व के मानस पटल पर छा गई। विहार के राज्यपाल श्री विनोद पाण्डेय के कर—कमलों से भारतभ्रमण हेतु ‘‘भगवान महावीर ज्योति रथ’’ का उद्घाटन करवाकर माताजी ने सम्मेदशिखर वन्दना की पवित्र भावना लेकर संघ सहित मंगल विहार कर १२ मार्च को सम्मेदशिखर में प्रवेश किया। पर्वतराज की कई वन्दना करने के साथ ही माताजी के सानिध्य में ‘‘श्रावक सम्मेलन’’ एवं ‘‘ऋषभदेव मन्दिर का शिलान्यास’’ हुआ। जन्मभूमि कुण्डलपुर में पुनश्च पदार्पण के साथ भगवान महावीर की जन्मभूमि में महावीर जयंती मनाने का पुनर्सूत्रपात हुआ तथा ३० मई २००३ को भारत के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति डॉ. ए. पवी. जे. अब्दुल कलाम ने निर्वाणभूमि पावापुरी के दर्शनार्थ पधारकर माताजी का आर्शीवाद प्राप्त किया।
एक ऐतिहासिक कड़ी के रूप में महावीर जन्मभूमि में सैंकड़ों वर्षों के इतिहास में किसी जैन साधु का यह प्रथम चातुर्मास था। इस स्वर्णिम वर्षायोग में ‘‘श्री नवग्रह शांति जिनमंदिर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा’’, भगवान महावीर देशनास्थली राजगृही में त्रिदिवसीय आयोजनपूर्वक विपुलाचल पर समवसरण की प्रतीक चतुर्मुखी प्रतिमाओं का महामस्तकाभिषेक, कुण्डलपुर दिगम्बर जैन समिति एवं पर्यटन विभाग—विहार सरकार के संयुक्त तत्त्वाधान में ‘‘कुण्डलपुर महोत्सव’’, महाराष्ट्र प्रान्तीय गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी भक्तमण्डल द्वारा प्रथम बार दशलक्षण पर्व में कल्पद्रुम विधान, शरदपूर्णिमा महोत्सव में २४ तीर्थंकरों की १६ जन्मभूमियों के विकास एवं सरंक्षण हेतु ‘‘भारतवर्षीय तीर्थंकर जन्मभूमि विकास समिति’’ का गठन एवं निर्वाण भूमि पावापुरी में त्रिदिवसीय निर्वाणोत्सव आदि महत्त्वपूर्ण आयोजन हुए। विशेषतया इस वर्षायोग में पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी एवं पूज्य चंदनामती माताजी द्वारा भगवान महावी विषयक अनेक साहित्यिक कृतियों की रचना हुई। चातुर्मास के पश्चात् — अगर योग्य शिष्य प्राप्त हो जावें तो गुरु के स्वप्नों को साकार होने में समय नहीं लगता है यह माताजी का पुण्यविशेष ही है कि उन्हें रत्नत्रयत्रिवेणी रूप पूज्य आर्यिका श्री चंदनामती माताजी, पीठाधीश क्षुल्लक श्री मोतीसागर महाराज जी एवं कर्मयोगी ब्र. श्री रवीन्द्र कुमार जी जैसे शिष्य प्राप्त हुए जिन्होंने गुरुभक्ति का परिचय देते हुए माताजी के हर स्वप्नों को क्रमश: साकार किया। चातुर्मास के पश्चात् पाश्र्वनाथ जयंती पर पूज्य माताजी की प्रेरणा से ‘‘भगवान पाश्र्वनाथ तृतीय सहस्राब्दि महोत्सव’’ हेतु ‘‘पाश्र्वनाथ महोत्सव संकल्प ज्योति प्रज्वलन’’ एवं पावापुरी में सवा ग्यारह फुट खड्गासन प्रतिमा विराजमान कर ‘‘भगवान महावीर जिनबिम्ब पंचकल्याणक’’ मुनिसुव्रतनाथ जन्मभूमि राजगृही में कमलाकार जिनमंदिर में १२ फुट उत्तुंग श्यामवर्णी ‘‘भगवान मुनिसुव्रतनाथ जिनबिम्ब पंचकल्याणक’’ कुण्डलपुर—नंद्यावर्त महल परिसर में कलशारोहण, विहार शरीफ—राजगृही मुख्यमार्ग को कुण्डलपुर से जोड़ने वाले दीपनगर कुण्डलपुर मार्ग पर ‘‘भगवान महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर द्वार’’ का शिलान्यास तथा नंद्यावर्त में विराजित भगवान शांतिनाथ पचंकल्याणक प्रतिष्ठा’’ अनेकानेक ऐतिहासिक महत्त्वपूर्ण आयोजन हुए।
वर्ष २००४ का यह द्वितीय चातुर्मास भी अद्वितीय बन गया जब तीर्थ के अपने पूर्ण वास्तविक स्वरूप में आने पर श्रद्धालु भक्तों का तांता लग गया। भगवान महावीर के शासन देव—देवी का चमत्कार कहें या पूज्य माताजी का तपस्या का चमत्कार, कि आज उधर की यात्रा करने वाला प्रत्येक यात्री कुण्डलपुर में ही रुकने की इच्छा करता है। इस चातुर्मास में पारम्परिक कार्यक्रमों के साथ दशलक्षण पर्व में ‘‘विश्वशांति महावीर विधान’’ ‘‘कुण्डलपुर महोत्सव’’ ‘‘शरदपूर्णिमा महोत्सव’’ ‘‘भगवान महावीर ज्योति रथ’’ का समापन, पावापुरी जल मन्दिर में निर्वाणोत्सव आदि विशेष कार्यक्रम भी हुए। चातुर्मास की विशेष उपलब्धि रूप ‘‘कुण्डलपुर अभिनन्दन ग्रंथ’’ का विमोचन हुआ जो भगवान महावीर विषयक भ्रान्तियों के निराकरण एवं शोधार्थियों हेतु मील का पत्थर साबित हुआ। इस चातुर्मास में पूज्य माताजी के संघ में १५ वर्षों से साधनारत क्षुल्लिका श्री श्रद्धामती माताजी की समाधि दशलक्षण पर्व के मध्य हो गई। चातुर्मास के पश्चात् — मात्र २२ माह की अल्प अवधि में तीर्थ का भव्य नवविकास करवाकर शासन—प्रशासन एवं जैन समाज को आश्चर्यचकित करते हुए पूज्य माताजी ने संघ सहित ‘भगवान पाश्र्वनाथ तृतीय सहस्राब्दि महोत्सव’’ मनाने हेतु वाराणसी तीर्थ की ओर मंगल विहार कर दिया। इस विहार के मध्य जन—जन में नवचेतना का संचार करते हुए राजगृही में नूतन मन्दिर पर कलशारोहण, विपुलाचल पर्वत की तलहटी में नवनिर्मित मानस्तम्भ में चतुर्मुखी प्रतिमा विराजमान, नवोदय विद्यालय—राजगृही में भगवान महावीर प्रतिमा का अनावरण, गुणवांजी ने श्री गौतमगणधर प्रतिमा विराजमान कर कलशारोहण आदि आयोजनों के साथ संघ का प्रवेश वाराणसी नगरी में हुआ जहां भगवान पाश्र्वनाथ जयंती के पावन दिवस विशाल जनसमूह एवं अनेक नेताओं की उपस्थिति में महोत्सव का उद्घाटन कर भव्य, विशाल २ किमी. लम्बी शोभायात्रा निकाली गई। इस अभूतपूर्व शोभायात्रा के पश्चात् धर्मसभा में अनेक कार्यक्रमों के साथ पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी के अथक परिश्रम से तैयार जैनागम के १५ हजार शब्दों की हिन्दी—अंग्रेजी व्याख्या से युक्त ‘‘भगवान महावी हिन्दी—अंग्रेजी जैन शब्दकोश’’ का विमोचन, भगवान पाश्र्वनाथ भजन वैक़सेट का विमोचन एवं भगवान पाश्र्वनाथ के नवखण्ड महल का अनावरण हुआ पुनश्च ११ वें तीर्थंकर भगवान श्रेयांसनाथ की जन्मभूमि सिंहपुरी में ११ फुट पद्मासन भगवान श्रेयांसनाथ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा, माताजी द्वय की जन्मभूमि टिकैतनगर में चमत्कारिक भगवान महावीर मन्दिर की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं मुख्यमंत्री श्री मुलायम सिंह यादव द्वारा ‘‘पाश्र्वनाथ वर्ष’’ का शुभारम्भ, शाश्वत तीर्थ अयोध्या में द्वितीय महाकुम्भ मस्तकाभिषेक, टिकैतनगर में नूतन महावीर मंदिर पर कलशारोहण आदि विशिष्ट आयोजन सम्पन्न हुए। विशेषत: जन्मभूमि टिकैतनगर की जनता ने माताजी के इस विराट व्यक्तित्व को नमन करते हुए ‘‘भारतभूषण’’ की उपाधि से अलंकृत किया।
चातुर्मासिक विभिन्न कार्यक्रमों के साथ विदेशी शोधार्थियों ने भी इस वर्ष से जम्बूद्वीप में पधारकर जैन साधु चर्या को समझने का प्रयास किया। दशलक्षण पर्व में त्रैलोक्य मण्डल विधान के साथ सिद्धचक्र विधान, पाश्र्वनाथ निर्वाणोत्सव, रक्षाबन्धन, पूज्य चंदनामती माताजी का सत्रहवां दीक्षा दिवस, शरदपूर्णिमा महोत्सव, दीपावली पर्व आदि विभिन्न कार्यक्रम समय—समय हुए विशेषत: ‘‘जम्बूद्वीप महामहोत्सव—२००५ एवं महामस्तकाभिषेक, ‘‘गणिनी ज्ञानमती संस्कृत एवं अध्यात्म साहित्य संगोष्ठी’’ तेरहद्वीप रचना शिलान्यास, ‘‘काकन्दी तीर्थोद्धार एवं सम्मेदशिखर वर्ष’’ मनाने की घोषणा आदि चातुर्मास की विशेष उपलब्धि रूप रहे। चातुर्मास के पश्चात् — पूज्य माताजी की पावन प्रेरणा एवं आशीर्वाद से ‘‘भगवान पुष्पदन्तनाथ जन्मभूमि काकन्दी में मंदिर शिलान्यास, सम्मेद शिखर में भगवान ऋषभदेव जिनबिम्ब पंचकल्याणक, दिल्ली के शाह आडिटोरियम में युवा परिषद के २९ वें स्थापना दिवस पर ‘‘भगवान नेमिनाथ निर्वाणभूमि गिरनार सुरक्षा दिवस एवं जनजागरण अभियान’’ विषयक राष्ट्रीय युवा सम्मेलन, कुण्डलपुर महोत्सव आदि विविध आयोजन के माध्यम से लोगों ने जैनधर्म के व्यापक स्वरूप को समझा, वस्तुत: ऐसे महान सन्तों के कारण ही यह पृथ्वी रत्नगर्भा कही जाती है। जम्बूद्वीप हस्तिनापुर में ही पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी जैसी सर्वप्राचीन दीक्षित साध्वी के आर्यिका दीक्षा के पचास वर्षों की सम्पूर्ति पर ‘‘आर्यिका दीक्षा स्वर्ण जयंती’’ का अद्भुत आयोजन बीसवीं सदी में प्रारम्भ प्रथम बार हुआ जिसमें ४५ शीर्ष संस्थानों ने माताजी को प्रशस्ति पत्र भेंट किया, ‘‘गणिनी ज्ञानमती गौरव ग्रंन्थ’’ का प्रकाशन हुआ और महोत्सव सम्प्रेरिका पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी ने इस वर्ष को ‘स्वर्ण जयंती महोत्सव वर्ष’’ के रूप में घोषित किया। उत्तर भारत में प्रथम बार १२ मठों के भट्टारकों का सम्मेलन हुआ और माताजी को ‘ज्ञानचन्द्रिका’’ एवं ‘ऐतिहासिक आर्यिका’’ की उपाधि से विभूषित किया गया।
इस चातुर्मास में अन्य पारम्परिक कार्यक्रमों के साथ दशलक्षण पर्व में ‘‘जम्बूद्वीप महामण्डल विधान’’ एवं अक्टूबर माह में ‘‘शरदपूर्णिमा महोत्सव’’ का आयोजन महावीर निर्वाणोत्सव आदि विविध कार्यक्रम हुए। महापुराण में आचार्य श्री जिनसेन स्वामी कहते हैं— ‘‘पुण्ये प्रसेपुषि नृणां किमिवास्त्यलङ्घ्यम्’’ अर्थात् पुण्य के प्रसाद से मनुष्यों को सब कुछ प्राप्त हो जाता है। शायद यही कारण रहाकि जिन गुरुओं के समीप्य के लिए भारत की जनता तरसती है उस महान गुरु के सानिध्य का सौभाग्य पश्चिमी उत्तर प्रदेश को सबसे अधिक प्राप्त हो रहा है। चातुर्मास के पश्चात् — आचार्य श्री जिनसेन स्वामी का कथन है कि— ‘‘तदेव ननु पाण्डित्यं यत्संसारात् समुद्धरेत्’’ अर्थात् पाण्डित्य वही है जो संसार का उद्धार कर दे, उसी विद्वता के फलस्वरूप ही माताजी द्वारा किए गए कार्य इतिहास बन जाते हैं। पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी की प्रेरणा से पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की दीक्षास्थली माधोराजपुरा (राज.) में ‘‘गणिनी ज्ञानमती दीक्षातीर्थ’’ निर्वाण हेतु शिलापूजन हुआ। अच्छित्र में पाश्र्वनाथ सहस्राब्दि महोत्सव का संकल्प दीप, जम्बूद्वीप में भगवान पाश्र्वनाथ जन्मजंयती पर ‘‘सर्वार्थसिद्धि’ महल की प्रतिकृति का उद्घाटन ध्यान साधना एवं ज्ञानज्योति प्रशिक्षण शिविर’’ तेरहद्वीप जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव मस्तकाभिषेक एवं कलशारोहण पूज्य गणिनी माताजी की प्रेरणा से सम्पन्न हुए। पूज्य गणिनी माताजी ने अपने ५२ वें आर्यिका दीक्षा दिवस पर सिद्धान्त के सर्वोच्च ग्रंथ षट्खण्डागम की सोलहों पुस्तकों की संस्कृत टीका ३१०० पृष्ठों में लिखकर परिपूर्ण की उस दिवस की महत्ता प्रदर्शित करने हेतु पूज्य चंदनामती माताजी की प्रेरणा से वह दिवस तब से ‘‘श्रुतज्ञान दिवस’’ के रूप में भी मनाया जाता है।
चातुर्मासिक विभिन्न कार्यक्रमों की अनवरत चली शृंखला में दशलक्षण पर्व में ‘‘तेरहद्वीप मण्डल विधान’’, पूज्य चंदनामती माताजी का उन्नीसवां दीक्षा दिवस शरदपूर्णिमा महोत्सव आदि आयोजन हुए। विशेष रूप से इस चातुर्मास में दिल्ली प्रीतविहार के कमल मंदिर का दशाब्दि समारोह पूज्य माताजी के आशीर्वाद से मनाया गया। चातुर्मास के पश्चात् — भगवान पाश्र्वनाथ के केवलज्ञान कल्याणक से पवित्र अच्छित्र की पावन धरा पर चातुर्मास के अन्तन्तर पूज्य माताजी का संघ सहित आगमन हुआ जहां तिखाल वाले बाबा भगवान पाश्र्वनाथ का सहस्राब्दि मस्तकाभिषेक महोत्सव एवं भगवान पाश्र्वनाथ के २८८४ वें जन्मकल्याणक पर तृतीय सहस्राब्दि महोत्सव का समापन हुआ तथा पूज्य चंदनामती माताजी के अथक परिश्रम से तैयार ‘‘भगवान पाश्र्वनाथ तृतीय सहस्राद्धि ग्रंथ’’ को पूज्य बड़ी माताजी के गुरुचरणों में समर्पित किया। वहां से संघ का मंगल विहार होकर अमीनगर सराय में मानस्तम्भ वेदी शुद्धि एवं जिनबिम्ब स्थापना समारोह सम्पन्न कराकर माताजी ने हस्तिनापुर में पुन: पदार्पण किया जहां नवग्रह शांति जिनबिम्ब पंचकल्याणक ‘बुन्देलखण्ड तीर्थ विकास सम्मेलन आदि कार्यक्रम हुए। इस तृतीय सहस्राब्दि महोत्सव के अन्तर्गत स्थान—स्थान पर १००८ विधान सम्पन्न हुए। पूज्य माताजी की प्रेरणा से डालीगंज—लखनऊ में भगवान शांतिनाथ जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं कुण्डलपुर में ‘‘कुण्डलपुर महोत्सव’’ का भव्य आयोजन भी हुआ। विशेषरूप से परम पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी के जन्म के ५० वर्षों की सम्पूर्ति पर ज्येष्ठ कृत अमावस्या को उनकी ५१ वीं जन्मजयंती धूमधाम से मनाई गई और २२ जून को भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी के अध्यक्षीय चुनाव में माताजी के सानिध्य में जैन समाज द्वारा श्री आर. के. जैन को कमेटी का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया। पूज्य उपाध्याय श्री उदारसागर महाराज जी का जम्बूद्वीप में पदार्पण हुआ।
जम्बूद्वीप—हस्तिनापुर में हुए इस चातुर्मास में विभिन्न पारम्परिक कार्यक्रमों के साथ चातुर्मास की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि रूप पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी का राष्ट्रीय स्तर पर हीरक जयंती महोत्सव का आयोजन हुआ। दिल्ली की मुख्यमंत्री श्री शीला दीक्षित द्वारा उद्घाटित इस महोत्सव में अनेक सम्मेलन, पुरस्कार समर्पण, हीरक जयंती एक्सप्रेस का उद्घाटन एवं अनेक संस्थाओं द्वारा पूज्य माताजी को प्रशस्ति पत्र समर्पित किए गए। साथ् ही जन्मभूमि विकास सम्मेलन भी हुआ। इस भव्य कार्यक्रम के पश्चात् यह चातुर्मास भी इतिहास का एक स्वर्णिम पृष्ठ बन गया जब भगवान पाश्र्वनाथ के २८८५ वें जन्मकल्याणक महोत्सव एवं विश्वशांति अहिंसा सम्मेलन का उद्घाटन जम्बूद्वीप की पावन धारा पर भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति महामहिम श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटील ने किया, उन्होंने पूज्य माताजी का आशीर्वाद लेने के साथ—साथ जम्बूद्वीप के दर्शन कर वहां वृक्षारोपण भी किया और यह महोत्सव विविध कार्यक्रमों के माध्यम से जम्बूद्वीप स्थल और भारत के कोने—कोने में एक वर्ष तक मनाया गया। चातुर्मास के पश्चात् — चातुर्मास के अनन्तर जम्बूद्वीप में ऋषभदेव निर्वाणोत्सव, अक्षय तृतीया, श्री शान्तिनाथ जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा, अयोध्या में ऋषभजयंती कुण्डलपुर में कुण्डलपुर महोत्सव आदि विविध कार्यक्रम हुए। माननीय राष्ट्रपति महोदया द्वारा उद्घाटित इस अहिंसा वर्ष में पूज्य माताजी की प्रेरणा से अनेक स्थानों पर धार्मिक अनुष्ठान एवं विश्वशांति संगोष्ठी हुई जिसका पूर्ण विवरण राष्ट्रपति भवन भी भेजा गया।
प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी अनेक विधि—विधान एवं चातुर्मासिक कार्यक्रम सम्पन्न हुए विशेषकर पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी का इक्कीसवां दीक्षा दिवस, श्रुतपंचमी पर्व, विद्वत प्रशिक्षण शिविर, दशलक्षण पर्व में विश्वशांति महावीर विधान, शरदपूर्णिमा, महोत्सव एवं दीपावली पर्व भी मनाए गए। इस चातुर्मास की उपलब्धि रूप प्रथमत: संस्थान, शोभित यूनिवर्सिटी मेरठ एवं इण्डियन काउन्सिल ऑफ गांधियन स्टडीज—दिल्ली के संयुक्त तत्त्वाधान में विश्वशांति हेतु ‘‘कान्क्लेव ऑफ हिंसामुक्त भारत आन्दोलन’’ संगोष्ठी सम्पन्न हुई। पुन: माताजी के आशीर्वाद से श्री जे. के. जैन (पूर्व सांसद) दिल्ली का अभिनन्दन समारोह भारत सरकार के वित्तमंत्री श्री प्रणव मुखर्जी के मुख्य आतिथ्य में भव्यतापूर्वक हुआ और भगवान शांतिनाथ, कुंथुनाथ एवं अरहनाथ की जन्मभूमि हस्तिनापुर में विराजित होने वाली ३१—३१ फुट उत्तुंग विशालकाय प्रतिमाओं का वेदी शिलान्यास समारोह हुआ। चातुर्मास के पश्चात् — चातुर्मास के पश्चात् पूज्य प्रज्ञाश्रमण मुनि श्री अमितसागर महाराज जी का मंगल पदार्पण एवं ढाई मास का प्रवास जम्बूद्वीप—हस्तिनापुर में रहा जहां उन्होंने अनेक महत्त्वपूर्ण तत्त्वचर्चाएं कीं। फरवरी २०१० इन संघ द्वय के सानिध्य में तीर्थंकर त्रय की जन्मभूमि में इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठ रूप तीर्थंकर त्रय की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा राष्ट्रीय स्तर पर लाखों श्रद्धालु भक्तों की उपस्थिति में हुई तथा जम्बूद्वीप का रजत जयंती उत्सव भी मनाया गया। इतिहास में प्रथम बार तीनों चक्रवर्तियों की दिग्विजय यात्रा निकाली गई जो अभूतपूर्व थी। इसी मध्य पूज्य माताजी की संघस्थ शिष्याओं ब्र. कु. आस्था, कु. चन्द्रिका की आर्यिका दीक्षा, ब्र. कमलाजी की क्षुल्लिका दीक्षा तथा मुनि श्री अमितसागर महाराज जी के संघस्थ क्षुल्लक श्री अघ्र्यसागर जी की मुनिदीक्षा एवं ब्र. नमन की क्षुल्लक दीक्षा सम्पन्न हुई। पुनश्च तीर्थंकर त्रय का महामस्तकाभिषेक एवं हेलीकाप्टर से पुष्पवृष्टि का भव्यतम नयनाभिराम दृश्य अवर्णनीय ही है, पाँचों दिन का सीधा प्रसारण आस्था चैनल पर हुआ। आगे भगवान पुष्पदन्दनाथ जन्मभूमि काकन्दी में भव्य पंचकल्याणक प्रतिष्ठा, कुण्डलपुर में कुण्डलपुर महोत्सव एवं जम्बूद्वीप में ज्ञानज्योति विद्वत् प्रशिक्षण शिविर, अक्षय तृतीया आदि अनेक कार्यक्रम भी हुए। भगवान शान्तिनाथ के जन्मकल्याणक पर यह वर्ष ‘‘प्रथमाचार्य श्री शांतिसागर वर्ष’’ के रूप में उद्घाटित हुआ।
जम्बूद्वीप स्थल पर आयोजित इस बाइसवें चातुर्मास में चातुर्मासिक विभिन्न कार्यक्रमों के साथ त्रैलोक्य मण्डल विधान इन्द्रध्वज विधान, तीस चौबीसी विधान आदि अनुष्ठान भी हुए। वस्तुत: गुरु की महिमा का गुणानुवाद करने से गुरु की महिमा वृद्धिगंत न होकर अपनी ही महिमा बढ़ती है उसी गुरु गुणानुवाद के क्रम में प्रथमाचार्य श्री शांतिसागर वर्ष के अन्तर्गत उनके जीवन से सम्बन्धित अनेकानेक कार्यक्रम समय—समय पर आयोजित हुए। विशेषत: भगवान शांतिनाथ कुंथुनाथ अरनाथ जिनमंदिर, चौबीस तीर्थंकर जिनमंदिर, णमोकार मंत्र भवन एवं आसाम भवन के शिलान्यास, आचार्य शांतिसागर स्मृति सम्मेलन, विश्व में प्रथम बार जम्बूद्वी हस्तिनापुर में निर्मित तीन लोक रचना का उद्घाटन (केन्द्रीय मंत्री श्री प्रदीप जैन—आदित्य द्वारा) एवं त्रिलोक शोध संस्थान व शोभित यूनिवर्सिटी मेरठ के संयुक्त तत्त्वावधान में ‘‘भारतीय सभ्यता’’ पर इण्टरनेशनल सेमिनार प्रमुख उपलब्धि रूप में रहे। चातुर्मास के पश्चात् — इस चातुर्मास के पश्चात् पूज्य माताजी की प्रेरणा, पूज्य चंदनामती माताजी के निर्देशन एवं पूज्य क्षुल्लक श्री मोतीसागर महाराज जी व कर्मयोगी ब्र. रवीन्द्र कुमार जी के निर्देशन में अनेक पंचकल्याणक एवं वेदी शुद्धि के कार्यक्रम हुए जिसमें गणिनीप्रमुख ज्ञानमती दीक्षा तीर्थ माधोराजपुरा में सुन्दर पर्वत पर भगवान पाश्र्वनाथ की १५ फुट खड्गासन मनोज्ञ प्रतिमा एवं २४ तीर्थंकरों की पद्मासन प्रतिमाओं की पंचकल्याणक, शाश्वत जन्मभूमि अयोध्या में भगवान ऋषभदेव की वास्तविक जन्मभूमि ऋषभदेव टोंक स्थल पर भव्य जिनमंदिर बनाकर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा, सम्मेदशिखर की १०८ वन्दना करने वाले भक्तों का सम्मान तथा धारूहेड़ा में भगवान शान्तिनाथ वेदी प्रतिष्ठा व शिखर कलशारोहण प्रमुख हैं। ६ जनवरी २०११ को माताजी के संघ में विराजमान पूज्य आर्यिका श्री सन्तोषमती माताजी एवं क्षुल्लिका श्री सम्यक्त्वमती माताजी के समाधि हो जाने पर दुखद वातावरण में श्रद्धाजंलि सभा रखी गई।
विविध कार्यक्रमों के साथ ही चातुर्मास की उपलब्धि रूप विश्व हिन्दू परिषद का एक दिवसीय शिविर रहा जिसमें ५०० शिविरार्थियों ने पधारकर भारतीय संस्कृति के विकास की बात सुनी। इस वर्ष से पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी के अथक प्रयास से ‘‘जम्बूद्वीप ऑनलाइन सर्टिफिकेट कोर्स फॉर जैन स्टडीज का शुभारम्भ हुआ जिसमें अनेक प्रतिभागियों ने परीक्षा देकर सम्मानपत्र प्राप्त किया। शरदपूर्णिमा महोत्सव पर पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा षट्खण्डागम ग्रंथ पर रचित सिद्धान्तचिन्तामणि टीका’’ की सोलहों पुस्तकों का लोकार्पण हुआ तथा चन्द्रप्रभु मन्दिर का शिलान्यास भी हुआ। गुरुभक्ति के क्रम में पूज्य माताजी ने यह वर्ष ‘‘प्रथम पट्टाचार्य श्री वीरसागर वर्ष’’ घोषित किया जिसके अन्तर्गत एक वर्ष तक आचार्य श्री वीरसागर महाराज के जीवन से सम्बन्धित अनेक कार्यक्रम आयोजित हुए तथा संस्थान की ओर से ‘‘जम्बूद्वीप बाल प्रतिभा पुरस्कार’ भी घोषित कर प्रदान किया गया। चातुर्मास के पश्चात् — इस चातुर्मास के पश्चात् १० नवम्बर को अत्यन्त ही दुखद क्षण आया जब पूज्य आर्यिका श्री रत्नमती अवदान समारोह के मध्य पूज्य माताजी के सुयोग्य शिष्य, जम्बूद्वीप रचना के आधार स्तम्भ एवं प्रथम पीठाधीश स्वस्ति श्री क्षुल्लक मोतीसागर जी महाराज का मुनि अवस्था पूर्वक समाधिमरण हो गया। इस अपूर्णनीय क्षति को विधि का विधान समझकर सभी ने धैर्य धारण किया क्योंकि ‘‘होनी तो होकर रहती है नहिं होनहार कोई टाल सवेंक़’’। अपनी गुरु पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी से अन्तिम सम्बोधन सुनते हुए सल्लेखनापूर्वक उन्होंने वीरमरण किया। पुन: पीठाधीश पद की रिक्तता को देखते हुए पूज्य क्षुल्लकजी के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर पूज्य माताजी के प्रत्येक स्वप्न को साकार करने वाले जम्बूद्वीप रचना के द्वितीय आधार स्तम्भ कर्मयोगी ब्र. श्री रवीन्द्र जी को पूज्य माताजी ने २० नवम्बर को आगमानुसार दसवीं प्रतिमा एवं लाल वस्त्र प्रदान कर जम्बूद्वीप के द्वितीय पीठाधीश पद पर प्रतिष्ठित किया जिसका भारत की जैन समाज ने समय—समय पर भव्य स्वागत किया तथा अनेक धार्मिक कार्यक्रम भी जैसे—वेणूर में मस्तकाभिषेक, णमोकार धाम में वेदी प्रतिष्ठा एवं मस्तकाभिषेक, महावीर जी में पंचबालयती मंदिर पंचकल्याणक सम्पन्न किए। पुन: उपाध्याय श्री निर्भयसागर महाराज जी का जम्बूद्वीप में मंगल पदार्पण हुआ। गुरुभक्ति से महावन में भी बड़ा भारी नगर हो सकता है और उसमें कल्पलता के समान अभीष्ट फल भी प्राप्त हो सकते हैं। यह उक्ति चरितार्थ हुई मुरादाबाद के एक साधारण से कालेज का संचालन करने वाले भाई श्री सुरेश जी पर, जिनकी असीम भक्ति के फलस्वरूप जब—जब उस कालेज में माताजी के चरण पड़े उसकी उन्नति होती ही गई और देखते ही देखते तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय के नाम से पूरे भारत में प्रसिद्धि को प्राप्त हो गया। पूज्य माताजी की ‘प्रेरणा प्राप्त कर उन्होंने वहाँ सुन्दर जिनालय का निर्माण कराया जिसकी वेदी प्रतिष्ठा हेतु पूज्य माताजी का संघ सहित विहार मुरादाबाद हुआ जहां उनके सानिध्य में वेदी प्रतिष्ठा एवं महावीर जयंती का भव्य आयोजन हुआ तथा बैशाख कृ. दूज को पूज्य माताजी के ५७ वें आर्यिका दीक्षा दिवस पर आयोजित विश्वविद्यालय के प्रथम दीक्षान्त समारोह में पूज्य गणिनीप्रमुख माताजी को डी. लिट् एवं पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी को पीएच. डी. की मानद उपाधि से अलंकृत किया गया। पुन: संघ के जम्बूद्वीप पदार्पण पर आयोजित ज्ञानज्योति विद्वत, प्रशिक्षण शिविर के मध्य दक्षिण भारत जैन सभा, वीर सेना दल तथा वीर महिला मण्डलकी ओर से पूज्य माताजी को ‘‘आचार्य शान्तिसागर परम्परा शिरोमणि’’ की उपाधि प्रदान की गई। आषाढ़ शुक्ला दशमी को पूज्य माताजी की संघस्थ शिष्या ब्र. कु. स्वाति की आर्यिका दीक्षा एवं ब्र. उमाजी की क्षुल्लिका दीक्षा सम्पन्न हुई।
विभिन्न चातुर्मासिक कार्यक्रमों के साथ पूज्य आर्यिका श्री अभयतमी माताजी का ४९वां क्षुल्लिका दीक्षा दिवस, भगवान महावीर लघु पंचकल्याणक, इण्टरनेशनल समर स्वूâल फॉर स्टडीज, इन्द्रध्वज विधान, पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी का २४वां दीक्षादिवस, रक्षाबन्धन पर्व आदि विविध कार्यक्रम भी हुए। ९ अगस्त २०१२ पर एक बार फिर ऐसा दुखद एवं असहनीय क्षण आया जब ६९ वर्षीय जीवनकाल में ४८ वर्षों तक साधुचर्या का निरतिचार पालन करने वाली आचार्य श्री धर्मसागर महाराज से दीक्षित पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की गृहस्थावस्था की छोटी बहन एवं शिष्या पूज्य आर्यिका श्री अभयमती माताजी का सायं ५ : १५ पर समताभाव पूर्वक समाधिमरण हो गया। उस समय पूज्य गणिनी माताजी एवं पूज्य चंदनामती माताजी द्वारा की गई उनकी वैय्यावृत्ति अनुकरणीय एवं वन्दनीय है। दशलक्षण पर्व में इन्द्रध्वज विधान एवं शरदपूर्णिमा महोत्सव में गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी की जन्मजयंती पर विन्यांजलि सभा, अनेक विभूतियों का सम्मान तथा इण्टरनेट पर इन्साइक्लोपीडिया निर्माण कार्यालय का उद्घाटन हुआ जिसका कार्य पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी के मार्गदर्शन में द्रुतगति से चल रहा है। इस वर्ष से संस्थान द्वारा श्रीप्रकाशचंद जैन स्मृति पुरस्कार भी घोषित किया गया। महोत्सव में उ. प्र. के समाज कल्याणमंत्री श्री अवधेश प्रसादजी एवं कृषि राज्यमंत्री श्री राजा राजीव कुमार सिंह ने पधारकर अपनी विनयांजलि समर्पित की तथा पूज्य माताजी के ६१ वें त्याग दिवस को मनाते हुए गुरु गुणानुवाद हेतु पूज्य चंदनामती माताजी द्वारा यह वर्ष ‘‘चारित्र वधर्घनोत्सव वर्ष’’ के रूप में घोषित किया गया। चातुर्मास के पश्चात् — इस चातुर्मास के पश्चात् पूज्य गणिनीप्रमुख माताजी का स्वास्थ्य अत्यधिक खराब होने से स्थान—स्थान पर उनके स्वास्थ्य लाभ हेतु अनेक अनुष्ठान सम्पन्न हुए तथा कार्तिक की आष्टान्हिका में मांगीतुंगी में निर्मित हो रही १०८ फुट खड्गासन ऋषभदेव प्रतिमा हेतु इन्द्रध्वज विधान किया गया। इस वर्ष पूज्य माताजी की प्रेरणा से स्वस्ति श्री पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति स्वामी के निर्देशन एवं सानिध्य में अनेक पंचकल्याणक आदि अनुष्ठान हुए जिनमें मुख्य हैं—जरवल रोड (बहराइच) में भगवान पाश्र्वनाथ जिनबिम्ब प्रतिष्ठा, प्रयाग में द्वादशवर्षीय महाकुम्भ मस्तकाभिषेक, वीरा गार्डेन्स—अलवर (राज.) में वेदी प्रतिष्ठा, अयोध्या में ऋषभजयंती, कुण्डलपुर में कुण्डलपुर महोत्सव, ज्ञानतीर्थ दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र शिर्डी (महा.) में भगवान पाश्र्वनाथ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं मस्तकाभिषेक, शाश्वत तीर्थ अयोध्या में भगवान अनन्तनाथ टोंक पर विशाल मंदिर बनाकर भगवान अनन्तनाथ जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं महामस्तकाभिषेक तथा भगवान आदिनाथ पंचकल्याणक में (लघु) अयोध्या में विराजमान होने वाले भरत—बाहुबली स्वामी की ३—३ फुट उत्तुंग प्रतिमा प्रतिष्ठित हुर्इं। चारित्र वर्धनोत्सव वर्ष के अन्तर्गत आयोजित अनेक कार्यक्रमों के साथ ही पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की क्षुल्लिका दीक्षा की षष्ठीपूर्ति मनाई गई तथा पूज्य माताजी ने चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर महाराज जी के तृतीय पट्टाचार्य आचार्य श्री धर्मसागर महाराज जी की १०० वीं जन्मजयंती को मनाते हुए आचार्य धर्मसागर जन्म शताब्दी महोत्सव वर्ष का शुभारम्भ किया।
जम्बूद्वीप – हस्तिनापुर में सन् २०१३ का यह चातुर्मास एक ऐतिहासिक कड़ी के रूप में सदैव स्मरण किया जाएगा क्योंकि इस चातुर्मास में ११ वर्ष की लघुवय में ब्रह्मचर्य व्रत लेकर १८ वर्ष तक गुरु की निश्छल सेवा कर १३ अगस्त श्रावण शुक्ला ग्यारस को गुरु के ही करकमलों से इसी पवित्र धरा पर आर्यिका दीक्षा प्राप्त करने वाली प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी ने ख्याति, लाभ, पूजा से दूर रहते हुए गुरु की प्रत्येक आज्ञा को चन्द्रगुप्त के समान शिरोधार्य करते हुए गुरुचरणों में ही रजत जयंती वर्ष में प्रवेश किया है। इस चातुर्मास में आषाढ़ की आष्टान्हिका में इन्द्रध्वज मण्डल विधान उल्लासपूर्ण वातावरण में सम्पन्न हुआ पुनः गुरुपूर्णिमा, वीरशासन जयन्ती, पार्श्वनाथ निर्वाणोत्सव आदि कार्यक्रम समय-समय पर हुए १७ अगस्त २०१३, श्रावण शु. ग्यारस को पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी का २५वां रजत दीक्षा जयंती महोत्सव भारत की सम्पूर्ण जैन समाज एवं अनेक विद्वत्वर्ग की उपस्थिति में पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के सानिध्य में भव्य रूप से मनाया गया,जिसके साक्षी हम और आप सभी रहे हैं। इस अवसर पर उनके अगणित गुणों को स्मरण करते हुए अनेक विद्वानों के सम्पादकत्व में रजत दीक्षा अभिवन्दना ग्रन्थ का भी प्रकाशन हुआ । इस प्रकार यहां मैंने पूज्य माताजी के गुरुचरणों में सम्पन्न हुए सन् १९८९ से २०१३ तक के चातुर्मास और दीक्षित जीवन का अति संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया है। वास्तव में इसे चंद पन्नों में वर्णित करना अत्यन्त दुरूह कार्य है , क्योंकि पूज्य चंदनामती माताजी की दीक्षा के पश्चात् जितने कार्यक्रमों की झड़ी लगी शायद उतने कार्यक्रम पूर्व में कभी नहीं हुए थे। चातुर्मास में वर्णित इन सभी कार्यक्रमों में चाहे वह महोत्सव हों, सेमिनार हों, संगोष्ठी हों, विधि-विधान हो, साहित्यिक अवदान हो, पदविहार हो, तीर्थ विकास हो, मंदिर-मूर्ति निर्माण हों, गुरु वैय्यावृत्ति का प्रसंग हो, किसी की दीक्षा या समाधि के क्षण हों, पंचकल्याणक हों, संघ संचालन हो अथवा कोई भी धर्मप्रभावना के कार्य हों प्रत्येक कार्य को मूल से चूल तक उच्चता के शिखर पर पहुँचाने में उन्होंने अपना अतुलनीय योगदान दिया है और सदैव अपनी लघुता प्रर्दिशत करते हुए गुरु को ही उसका श्रेय प्रदान किया है। बचपन से लेकर पचपन तक सदैव उनका वत्सलता गुण अनुकरणीय है। वर्तमान में देखा जाता है कि गुरु से दीक्षा लेने के पश्चात् थोड़ी सी योग्यता आने पर शिष्य गुरु से अलग अपने व्यक्तित्व निर्माण हेतु अग्रसर हो जाते हैं , परन्तु योग्यता के होते हुए भी गुरुचरणों में जीवन के प्रत्येक क्षण को समर्पित कर हर क्षण लघुता की भावना आज प्रत्येक शिष्य के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण और उच्च आदर्श है, शायद यही कारण है कि उन्हें पूज्य माताजी की प्रथम एवं सर्वोत्तम आर्यिका शिष्या होने का गौरव प्राप्त है। गुरु आज्ञा से ही इन २५ वर्षों में उन्होंने शताधिक सारभूत एवं उच्चकोटि के ग्रन्थों का लेखन किया है। बन्धुओं ! ध्येय की सिद्धि सदा एकाग्रता, साहस और समर्पण के साथ कठोर श्रम की प्रतिक्रिया है। आज सम्पूर्ण भारत में इस बात की प्रसिद्धि है कि पूज्य माताजी जिस कार्य को हाथ में लेती हैं वह पूर्ण होती ही होती है, वास्तव में उनके प्रत्येक कार्य की सम्पूर्ति में रत्नत्रय त्रिवेणीरूप पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी, पूज्य क्षुल्लक श्री मोतीसागर महाराज एवं स्वस्ति श्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी ही रहे हैं। ये तीनों ही माताजी के सुदृढ़ प्रकाशस्तम्भ रहे हैं, जिनके लिए गुरुभक्ति ही जीवन का ध्येय है। वस्तुतः ऐसे बहुआयामी व्यक्तित्व के गुणों का वर्णन सागर की गहराई और पर्वत की ऊँचाई को मापने सदृश कठिन कार्य है। पूज्य चंदनामती माताजी द्वारा किए गए जीवनोपयोगी उपदेशामृत, उनका सामाजिक एवं साहित्यिक अवदान, युवा पीढ़ी को धर्म की ओर उन्मुख करने का सतत प्रयास इत्यादि गुणों के कारण यह धरा सदैव उनके चरणारविन्द का प्रक्षालन कर उनकी गौरवगाथा गाती रहेगी। सन्त काव्य परम्परा में राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त, अपने हित-मित-प्रिय वचनामृत से जनकल्याण में निरत, साधना की उच्चतम सीढ़ियों पर सतत आरोहणरत, महानतम गुणों की धारक, रत्नत्रय से युक्त पूज्य माताजी का वरदहस्त मुक्तिप्राप्ति तक सदैव मुझ पर बना रहे अैर पूज्य माताजी स्वस्थ एवं दीर्घायु रहकर अपने दीक्षित जीवन की स्वर्ण जयन्ती, पुनः हीरक जयन्ती में प्रवेश करें यही उनके रजतदीक्षा जयंती के पावन अवसर पर वीरप्रभू से मंगल कामना है ।