आरती गुणभंडारी की-२ जहाँ पुण्यभंडार भरा उन पुण्यभंडारी की।टेक.।।
मन वचन काय योगों से, कर्मों का आश्रव होता।
शुभ-अशुभ उभय भेदों से, सब संसारी में होता।।
आरती गुण भंडारी की।।१।।
इक सौ अड़तालिस कर्मों, में पुण्य प्रकृतियाँ भी हैंं।
शुभ योगों से ही बंधती, निश्चित वे प्रकृतियाँ भी हैं।।
आरती गुण भंडारी की।।२।।
तीर्थंकर कर्म प्रकृति भी, पुण्याश्रव से बंधती है।
तुम भी पुण्याश्रव कर लो, यह जिनवाणी कहती है।।
आरती गुण भंडारी की।।३।।
हीरे मोती के खजाने, भी पुण्य से ही मिलते हैं।
चक्री व इन्द्र के वैभव,नहिं पाप से मिल सकते हैं।
आरती गुण भंडारी की।।४।।
जो पुण्य का फल जिनपद है, हम उसे नमन करते हैं।
‘‘चंदना’’ प्रभू आरति कर, सब पाप शमन करते हैं।।
आरती गुण भंडारी की।।५।।