भारत वर्ष की समस्त दिगम्बर जैन समाज ने सदैव से सम्मेदशिखर, पावापुरी, राजगृही के पास स्थित कुण्डलपुर को भगवान महावीर की जन्मभूमि के रूप में पूजा है। प्रतिवर्ष अनेकानेक श्रद्धालु इस पुण्यभूमि पर आकर यहाँ की रज से स्वयं को पवित्र करते रहे हैं।
भगवान महावीर के २६००वें जन्मकल्याणक महोत्सव के अवसर पर जब पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने इस तीर्थ का विकास करने की भावना संजोयी तब गुरु आज्ञा को शिरोधार्य करके कुण्डलपुर (नालंदा) आने का अवसर बारम्बार प्राप्त हुआ। पूर्व में यहाँ पर मात्र एक छोटा प्राचीन दिगम्बर जैन मंदिर था, जहाँ मात्र दर्शन करने ही यात्री आते थे और जल्दी ही आगे की यात्रा के लिए बढ़ जाते थे।
जन्मभूमि को उसका गौरवमयी अतीत पुन: प्रदान करने के लिए आवश्यक था कि एक भव्य निर्माण यहाँ पर किया जाये। प्राचीन मंदिर के निकट ही प्रयासपूर्वक भूमि क्रय की गई क्योंकि बिहार में छोटी-छोटी जमीनों के टुकड़ों के भी कई हिस्सेदार होते हैं। पुन: पूज्य माताजी एवं संघ के दिसम्बर २००२ में कुण्डलपुर आगमन के पश्चा नवनिर्माण की श्रृंखला प्रारंभ हुई।
मात्र एक माह के अंतराल के बाद ही प्रथम पंचकल्याणक एवं महामस्तकाभिषेक आयोजित करना था, अत: बिहार जैसे राज्य में निर्माण संबंधी सभी आवश्यक व्यवस्थाएँ बनाकर, यथासंभव निर्माणकार्य कराकर काफी भव्यरूप में भारी उपस्थिति के बीच फरवरी २००३ में नवीन तीर्थ का प्रथम पंचकल्याणक निर्विघ्नतापूर्वक सम्पन्न किया गया।
इस प्रारंभिक महोत्सव के पूर्व से ही भारत वर्ष की दिगम्बर जैन समाज से प्राप्त समर्थन हमारे लिए दृढ़ संबल बनने लगा था। लोग यही कहते कि पूज्य माताजी ने समय की आवश्यकता के अनुसार संस्कृति संरक्षण का एक महान कार्य अपने हाथ में लिया है, अत: प्राण-प्रण माताजी के इस उद्देश्य की पूर्ति में मुझे आन्तरिक आनन्द की अनुभूति होने लगी।
अपनी समस्त शक्ति के साथ एवं जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर, अयोध्या, प्रयाग इत्यादि की काम करने वाली टीम को बिहार बुलाकर निर्माणकार्य द्रुतगति से प्रारंभ किया गया। यद्यपि बिहार राज्य की अव्यवस्था कदम-कदम पर आड़े आती थी परन्तु भगवान की जन्मभूमि का कुछ ऐसा पुण्य प्रताप रहा कि सभी विघ्न स्वयं ही दूर होते गये और नंद्यावर्त महल तीर्थ का सुन्दर निर्माण धीरे-धीरे सभी को दृष्टिगोचर होने लगा।
निर्माणकार्य में एक नहीं, हमारे स्टॉफ के कितने ही लोगों ने आधारस्तंभ बनकर जिम्मेदारियाँ संभालीं और निर्माण के कार्य को तीव्रगति प्रदान की। आज सभी लोग आश्चर्य करते हैं कि किस प्रकार इतनी जल्दी इतना आकर्षक तीर्थ बिहार की भूमि पर बनकर तैयार हुआ है। दिल्ली, इलाहाबाद इत्यादि स्थानों से इंजीनियरों को बुलाकर पूज्य माताजी के समक्ष घंटो मीटिंग की जाती, नक्शा फाइनल किया जाता और फिर उसे निर्माण के द्वारा साकार किया जाता।
यद्यपि यह सभी बड़ा श्रमसाध्य कार्य था तथापि भगवान महावीर की जन्मभूमि का सुन्दर विकास हो रहा है, ऐसा सोचकर हृदय में सदैव प्रसन्नता ही रहती थी अत: कार्य कभी कठिन नहीं लगता था। जम्बूद्वीप के निर्माण में हमें वर्षों का समय लगा है परन्तु यहाँ बहुत ही शीघ्रता से सारी व्यवस्थाएं बनाकर निर्माण पूरा किया गया।
पूज्य माताजी ने तीर्थंकर भगवन्तों की जन्मभूमियों के विकास का जो सुन्दर स्वप्न अपने हृदय में संजोया है, उसमें यथासंभव सहयोगी बनने से जहाँ पुण्य का उपार्जन होता है, वहीं गुरु आज्ञा की सम्पूर्ति से हृदय में अपार संतुष्टि भी होती है।
जन्मभूमि कुण्डलपुर को नवीन स्वरूप प्रदान करने में जिन अनेक लोगों ने रात-दिन एक करके मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपना कर्तव्य निभाया है, उन सबके प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करते हुए मैं पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी के चरणों में विनम्र नमन प्रस्तुत करता हूँ, जिनकी प्रेरणाएं जिन संस्कृति के संरक्षण में अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध हुई हैं एवं मुझे भी उनमें सहयोगी बनने का अवसर प्राप्त हुआ है।