हे वंदनीय! पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माता! जिनेश्वर के धर्म को सारे देश में फैलाने वाली! आपकी निर्विकार, विशुद्ध सेवा से हम सब ज्ञानरूपी चक्षु को पाने में भाग्यशाली हुए। धर्मचिंतन में हमारे हृदय पिघलकर सम्यक्ज्ञान को प्राप्त हुए।
इस जम्बूद्वीप के आकार का देशवासियों को प्रत्यक्ष ज्ञान कराने हेतु सुन्दर ढंग से इमारत को बनाकर जैन भूगोल का ज्ञान कराया। आर्यिका दीक्षा लेकर पचास साल होकर स्वर्णजयंती महोत्सव को निरख रही हैं। आपने थोड़ा भी विराम लिए बिना विधान ग्रंथ एवं तत्वग्रंंथों की रचना की है। आपके जैसी दीर्घकीर्ति वाली दूसरी कोई भी माता नहीं है। !
दुनिया के जनों को छह प्रकार के कर्म को सर्वप्रथम सिखाने वाले आदिनाथ भगवान के जन्म महोत्सव को पूरे भारतवर्ष में मनवाया। संसारी जीवों को संसार चक्र से निकलने हेतु अपने धर्मोपदेशरूपी बारिश बरसाकर सच्चे रास्ते दिखाने वाली सम्यक्गुणों युक्त हे माता! तुम्हारे पवित्र चरणों को स्पर्श कर हम नमन करते हैं।