प्रथमानुयोगमर्थाख्यानं चरितं पुराणमपि पुण्यम्।
बोधिसमाधिनिधानं बोधति बोधः समीचीनः।।१।।
अर्थ–
जो शास्त्र परमार्थ के विषयभूत धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष पुरुषार्थ का कथन करने वाला है, एक पुरुष के आश्रित कथा को, त्रेसठ शलाका पुरुषों के चरित्र को तथा पुण्य के आस्रव करने वाली कथाओं को कहता है और बोधि-रत्नत्रय, समाधि-ध्यान का निधान-कोष है, ऐसे प्रथमानुयोगरूप शास्त्रों को सम्यग्ज्ञान जानता है अर्थात् जिसमें चार पुरुषार्थ और महापुरुषों के चरित्र का वर्णन हो, वह प्रथमानुयोग है। इसके पढ़ने से पुण्यास्रव-रत्नत्रय की प्राप्ति और समाधि की सिद्धि होती है।