स्वाध्याय के विविध रूप!
स्वाध्याय के विविध रूप लेखिका—गणिनी आर्यिका श्री सुपार्श्वमती माताजी, (समाधिस्थ) ‘‘स्वाध्याय: परमं तप:’’ वीतराग सर्वज्ञ हितोपदेशी जिनेन्द्र भगवान् के द्वारा कहे हुए आगम को पढ़ना स्वाध्याय कहलाता है। ‘‘ज्ञानाभावनाऽऽलस्यत्याग: स्वाध्याय:’’ ज्ञानभावना से आलस्य का त्याग करना स्वाध्याय है। ‘स्व’ अर्थात् अपने स्वरूप का अध्ययन करना चिन्तन करना स्वाध्याय कहलाता है। ‘‘सु’ सम्यक् रीत्या आ समन्तात्…