(सप्तविभक्ति समन्वित)
श्री
तीर्थेश, उपसर्गजयी महान्।
पार्श्वनाथं नमन्तीह, भक्ता: कष्टप्रहाणये।।१।।
पार्श्वनाथेन सद्भक्ता:, भवन्तीह सहिष्णव:।
पार्श्वनाथाय सद्भक्त्या-ऽनन्तानंता नमोऽस्तु मे।।२।।
पार्श्वनाथाद् क्षमाभावै:, भक्तोऽभूत् कमठो रिपु:।
पार्श्वनाथस्य भक्त्या मे, शक्ति: सर्वंसहा सदा।।३।।
पार्श्वनाथे मतिर्मे स्यात्, यावत् सिद्धिर्न मे भवेत्।
भो: पार्श्वनाथ! मां रक्ष, शरण्य एक एव त्वं।।४।।