शेख फरीद एक गांव से गुजरता था। दो चार शिष्य उसके साथ थे। अचानक बीच बजार में फरीद रूक गया और उसने कहा कि— देखो ! एक बड़ा सवाल उठाया है । बड़ा तत्व का सवाल है और सोच के जवाब देना। एक आदमी गाय को रस्सी से बांधकर ले जा रहा था। फरीद ने पूछा ‘‘यह गाय आदमी से बंधी है कि यह आदमी गाय से बंधा है ?’’ शिष्यों ने कहा ‘‘ इसमें कौन सी बड़ी बात है? यह कौन से तत्व का सवाल है ?’’ आप जैसे आदमी को मजाक करना शोभा नहीं देता। साफ है कि गाय आदमी से बंधी है, क्योंकि बंधन आदमी के हाथ में है, और गाय के गले में है। फरीद ने कहा दूसरा सवाल है अगर हम यह बंधन बीच से तोड़ दें तों गाय आदमी के पीछे जायेगी कि आदमी गाय के पीछे जायेगा ?’’ तब जरा अनुयायी चिंतित हुए। उन्होंने कहा, बात तो सोचने जैसी है मजाक नहीं। क्योंकि बंधन तोड़ दो तो गाय भाग खड़ी होगी और आदमी गाय के पीछे भागेगा। तो फरीद ने कहा, मैं तुम से कहता हूँ कि आदमी के हाथ में बंधन नहीं है, बंधन आदमी के गले में है। ऊपर से दिखाई पड़ता है कि गाय आदमी से बंधी है, भीतर अगर देखोगे तो पता चलेगा, आदमी गाय से बंधा है। तुम बंधना चाहते हो, लेकिन बंधन की जिम्मेदारी भी अपने ऊपर नहीं लेना चाहते हो, वह तुम दूसरे पर डाल देते हो । इससे बंधना सुगम हो जाता है, हम कर भी क्या सकते हैं ? चारों तरफ लोग बांधे हुए हैं, हम जायें तो जायें कहाँ ? करें तो क्या करें ? मुक्ति मिले कैसे ? सारा संसार विराट है और बांधे हुए है।