पढ़ी लिखीं हों बेटियाँ, जाने लोकाचार।
दिल जीतें ससुराल का, करें मधुर व्यवहार।।
पढ़ी लिखीं तो क्या हुआ गर न आए गृह काज।
जैसे नकटी को भला क्या शृंगार क्या लाज।।
केवल ले लीं डिग्रियाँ, घर का काम न आए।
ऐसी बहू ससुराल में, कुल का नाम लजाए।।
पढ़ी लिखीं हों बहुत पर लोकाचार से हीन।
ऐसी बहुएें विफल हों, कैसे कहें कुलीन।।
सास—ससुर देवर ननद सबको अपना जान।
तो फिर ये भी सब तुझे, देंगे आदर—मान।।
अच्छी माता है वही, सीख बेटी को देय।
जाकर जो ससुराल में, सबको अपना लेय।।
जो माँ अपनी बेटी को, उल्टी सीख बताय।
ससुराल वाले हों दुखी, पर वो भी सुख ना पाय।।
तन से तो सुंदर दिखें, मन की बहुत कुरूप ।
ऐसी बहुओं से बचें, लखें न केवल रूप।।
जो बहू मधुर व्यवहार से सबका दिल ले जीत।
ऐसी बहू पर सास ससुर और ननद लुटाए प्रीत।।
तन की सुन्दरता लखी, देखे न गुण दोष।
ऐसी बहु जब आए घर बढ़ेगा कल्मष रोष।।
अगर सिखायें बेटी को, घर गृहस्थी के काज।
वैवाहिक जीवन सफल हो, करेगी घर में राज।।
जिनके घर माँ—बाप का होता हो सम्मान।
वहाँ से बेटी लाईये, बहु बना श्रीमान् ।।
बहू अगर गल्ती करे, आए न घर का काम।
समझायें उसे प्यार से, सीखे काम तमाम।।
सास ससुर को दुख दिया घर से दिया निकाल।
ऐसी बहु कुलच्छिनी, सुखी न होय त्रिकाल।।
बहु अगर ससुराल को, ले अपना घर मान।
सास—ससुर, देवर, ननद करें सभी सम्मान।।
सास—ससुर की आँख में, अगर जो आंसू आयें।
पछतायेंगी एक दिन , बहुएं चैन न पायें।।
मात—पिता का फर्ज है, बेटी को दे सीख।
हिल—मिल रहे ससुराल में बांटे सबको प्रीत।।
बहु अगर हो कुलच्छिनी, घर को देगी तोड़।
आए संकट आपदा, लक्ष्मी ले मुख मोड़।।
नैतिक शिक्षा और सब, घर—गृहस्थी के काम।
घर—घर सीखें बेटियाँ, करेंगी ऊँचा नाम।।
पति को तो वश में करें, सास ससुर को दूर।
ऐसी बहु की दुर्दशा, एक दिन होय जरूर।।
त्याग, तपस्या, सेवा और करे मधुर व्यवहार।
ऐसी बहु से घर भरे, खुशियों का भंडार।।
मंदिर जाना व्यर्थ है, व्यर्थ है पूजा—पाठ।
अगर न घर में शांति हो, दिखे न सुख का ठाठ।।
बात करें परलोक की, यहाँ न जाने प्रीत।
नीम बोये और आम चहें, ये है कैसी रीत।।
सास बहु के झगड़े में दोनों दोषी जान।
अपनी गल्ती मान लें तो होवे तुरत निदान।।
माना सास है कम पढ़ी, पर अनुभव का भंडार।
समझदार गुणवती बहु पाये सास का प्यार।।
नारी ही नारी की दुश्मन अगर सास बन जायें ।
बेदर्दी से जला दें बहुएं वे कैसी मातायें।।
शिक्षा के अभियान में, सास को जो हड़काहिं।
बहु ना भूले सास भी अनुभव में कम नाहिं।।
घर—घर में घमासान है, सास—बहु के बीच।
वह घर दुर्लभ है ‘नयन’ वहाँ कलह न कीच।।
तोड़ना तो बड़ा सरल है, घर हो या हो वृक्ष।
वर्षों लग जाते मगर, बनने में कुशल दक्ष।।
एक बहु घर खुशियाँ लाती, एक से हाता बेड़ा गर्क ।
एक बनाती घर को सुन्दर, एक बना देती है नर्क ।।
मर्यादित सरिता रहे, तो ही बहती जाये।
मर्यादा में बहु बेटी हो, घर में खुशियाँ लाये।।
सास बहु में जहाँ प्रेम हो, उस घर खुशियाँ अपरम्पार।
सुख समृद्धि यश धन वैभव, दिखे वहाँ आपस में प्यार।।
लड़के की ऐसी दशा, दो पाटों बीच होय।
इधर है माँ, पत्नि उधर, किसके साथ वो होय।।
शिक्षित हुईं बहु बेटियाँ, खूब किताबी ज्ञान।
लोकाचार घर गृहस्थी से नहिं रहें अनजान।।
आग लगा, लुटें मजा इनसे रहना दूर।
‘नयन’ ऐसे लम्पटियों से ये जग है भरपूर।।
पहले घर संयुक्त थे अब झगड़ा (एकल) परिवार।
प्रेम का सागर था जहाँ, बचा बूंद भर प्यार।।
सास—बहु के द्वन्द्व से घर हो जाता नर्क।
पारस्परिक दोषारोपण से होता बेड़ा गर्क।।
अगर चाह घर खुशियाँ आयें, बढ़े मान सम्मान।
अधिकारों को छोड़ दें कत्र्तव्य पर ध्यान।।
समय के साथ जो न चलें, वे जाते हैं टूट।
हर मोर्चे पर विफल हों, खुशियाँ जातीं रूठ।।
लड़कियों को ही सीख सब, उनको सब उपदेश।
लड़के आवारा फिरें, उन्हें भी दें संदेश।।
प्रेम ग्रन्थ सबसे बड़ा करलो इसका पाठ ।
जिसने इसको पढ़ लिया, उसके ऊँचे ठाठ।।
पति—पत्नि दो चाक हैं, गाड़ी घर परिवार।
दोनों मिलकर खींचते, दोनों करें सम्हार।।
सास रूप में माँ को देखें, बहु रूप में बेटी।
दोनों में संबंध मधुर हों, छोड़ दें दोनों हेठी।।
नारी से परिवार है, उसी से सुख संसार।
फिर भी नारी पर किये, अगणित अत्याचार।।