राजस्थान प्रदेश के भीलवाड़ा के निकट उपरमाल परगने के निकट श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र बिजौलिया अवस्थित है। यहाँ पहुँचने के लिए तीन मार्ग हैं-
(१) कोटा से बूँदी होते हुए यह स्थान ८५ किमी. तथा बूंदी रोड से १० किमी. है, पक्की सड़क है। मोटर सुगमता से पहुँच सकती है। यह मार्ग सबसे सुगम है।
(२) भीलवाड़ा से माण्डलगढ़ होते हुए यह क्षेत्र लगभग ८५ किमी. है। माण्डलगढ़ से क्षेत्र ३७ किमी. है।
(३)नीमच वैण्ट से सिंगौली होकर लगभग १०० किमी. है किन्तु सिंगौली से लगभग २२ किमी. कच्चा मार्ग है। ऊँट या घोड़े द्वारा यहाँ पहुँच सकते हैं। बिजौलिया, उदयपुर से पूर्व में २२४ किमी. और कोटा से पश्चिम में ८५ किमी. है और चित्तौड़ से उत्तर-पूर्व में ११२ किमी. दूर है। बिजौलिया ग्राम प्राचीन है। ग्राम के चारों ओर चहारदीवारी बनी हुई है। चहारदीवारी से दक्षिण-पूर्व में १ मील दूर यह क्षेत्र है। यह प्रदेश अपनी समृद्धि के कारण आक्रान्ताओं का आकर्षण-केन्द्र रहा है। इसीलिए सुरक्षा की दृष्टि से इस नगर के चारों ओर बहुत ऊँचा परकोटा बनाया गया। इसमें दो ही द्वार हैं। इस परकोटे के कारण यह नगर सदियों से सुरक्षित रहा है। इस परकोटे में प्राचीन मंदिरों की सामग्री काम में लायी गयी है। यहाँ यह िंकवदन्ती प्रचलित है कि पहले बिजौलिया में १०८ विशाल मंदिर थे। धर्मान्ध मूर्तिभंजकों ने इन मंदिरों को तोड़ दिया। उन टूटे हुए मंदिरों के पाषाण आदि से ही यह परकोटा बनाया गया है। अब भी प्राचीन मंदिरों के भग्नावशेष यहाँ चारों ओर बिखरे पड़े हैं। नगर के दक्षिण-पूर्व में दिगम्बर जैन पार्श्वनाथ क्षेत्र है। यह क्षेत्र सुदृढ़ परकोटे से घिरा हुआ है। इसके चारों कोनों पर दुहरी गुम्बददार चार देवरियाँ या छोटे मंदिर बने हुए हैं तथा मध्य में एक मंदिर बना हुआ है। यही पार्श्वनाथ मंदिर कहलाता है। परकोटे का मुख पश्चिम की ओर है तथा मंदिर पूर्वाभिमुख है। यह मंदिर पंचायतन है। मंदिर के चारों कोनों पर चार देवरियां बनी हुई हैं तथा मध्य में मंदिर बना हुआ है। गर्भगृह या जिनगृह ७ फुट २ इंच लम्बा, ७ फुट १ इंच चौड़ा और ६ फुट ७ इंच ऊँचा है। वेदी पर मध्य में ६ फुट ४ इंच ऊँची पाषाण की एक शिखराकृति है। शिखर में एक द्वाराकृति बनी हुई है। इसके रिक्त स्थान पर मूलनायक प्रतिमा विराजमान रही होगी किन्तु इस समय यह स्थान रिक्त है। इसकी मूलनायक प्रतिमा भगवान पार्श्वनाथ की रही होगी, ऐसा विश्वास किया जाता है। यह प्रतिमा आजकल यहाँ नहीं है। शिलालेख में धरणेन्द्र द्वारा स्वप्न में जिस प्रतिमा का संकेत किया गया है तथा लोलार्व श्रेष्ठी ने जिसे निकालकर प्रतिष्ठित किया था, लगता है, वह प्रतिमा शिखराकृति की मूलनायक प्रतिमा से भिन्न थी, क्योंकि शिलालेख में पार्श्वनाथ प्रतिमा का उल्लेख विस्तारपूर्वक किया गया है। उसमें शिखराकृति का कोई उल्लेख नहीं किया। इस प्रकार पार्श्वनाथ की दो प्रतिमाएं होनी चाहिए, किन्तु उनमें से वर्तमान में एक भी प्रतिमा नहीं है। इतना ही नहीं, मूलनायक पार्श्वनाथ के अतिरिक्त वेदी पर अन्य प्रतिमाएँ भी रही होंगी जबकि इस समय शिखराकृति के अतिरिक्त और कोई भी प्राचीन प्रतिमा वहाँ नहीं है। शिखर की द्वाराकृति पर चौबीस तीर्थंकर मूर्तियाँ तथा मध्य में पार्श्वनाथ मूर्ति उत्कीर्ण है। मध्य-मूर्ति के ऊपर छत्रत्रयी तथा गजलक्ष्मी है। छत्रों के ऊपर पद्मावती देवी हाथ जोड़े हुए बैठी हैं। उसके सर्पफण के ऊपर मध्य कोष्ठक में तथा कोण कोष्ठकों में पार्श्वनाथ मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। गजलक्ष्मी के दोनों कोनों पर देवयुगल माला लिये हुए खड़े हैं। कोने की पार्श्वनाथ प्रतिमाओं से नीचे दोनों ओर अलग-अलग कोष्ठकों में सात-सात देवी मूर्तियाँ हैं। दोनों ओर इन्द्र खड़े हैं। इन्द्र दायें हाथ में चमर तथा बाएँ हाथ में बिजौरा फल लिए हुए हैं। इनके अतिरिक्त दोनों ओर चमरेन्द्र खड़े हैं। इनके पाश्र्व में बायीं ओर पद्मावती और धरणेन्द्र तथा दायीं ओर अम्बिका और गोमेद यक्ष खड़े हैं। अम्बिका की गोद में एक बालक है तथा दायीं ओर एक बालक आम्रगुच्छक लिये खड़ा है। गोमेद यक्ष हाथ जोड़े खड़ा है। मुख्य शिखर के ऊपर कोनों पर दो पद्मासन तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं।
वर्तमान स्थिति
क्षेत्र पर सन् २००० में जीर्णोद्धार कार्य हुआ है। वर्तमान में क्षेत्र पर जिन चौबीसी, जिन चौबीसी जिनालय का सिंह द्वार, रेवती कुण्ड का जीर्णोद्धार, पार्श्वनाथ गणधर परमेष्ठी जिनालय, आचार्य परमेष्ठी के चरण चिन्ह, संतशाला आदि के नवनिर्माण हुए हैं तथा अनेक योजनाएँ निर्माणाधीन हैं। २ मानस्तंभ हैं। क्षेत्र पर उपलब्ध सुविधाएँ- क्षेत्र पर ४२ कमरे हैं, जिसमें २० कमरे डीलक्स हैं। भोजनशाला नियमित, सशुल्क है। औषधालय आदि नहीं हैं। व्यवस्था- क्षेत्र की व्यवस्था एक निर्वाचित समिति करती है, जिसका नाम ‘श्री दिगम्बर जैन पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र कमेटी’ है। क्षेत्र का पता इस प्रकार है-मंत्री, श्री दिगम्बर जैन पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र कमेटी, बिजौलिया (भीलवाड़ा) राजस्थान।