एक सम्राट था। उसका परिवार बड़ा विराट था। विराट इस मायने में था कि उसके सौ पुत्र थे। सम्राट बूढ़ा हो गया पहले के जमाने में बुढ़ापा देखकर लोगों को चिंता हो जाती थी परलोक की। वह सोचने लगता था कि बुढ़ापे का अर्थ है मौत का पैगाम। जन्म के बाद बचपन आता है। लेकिन बुढ़ापे के बाद कुछ आता नहीं है बुढ़ापे के बाद तो जाता ही जाता है सम्राट चिंतित था कि मेरे बाल सफेद हो गये इसका अर्थ है कि मुझे चलना है, अब मेरा दुनिया में रहने का ज्यादा समय नहीं है। सम्राट ने सोचा कि मेरी शवयात्रा हो, उससे पहले शिवयात्रा पर निकलने का समय आ चुका है। मौत आये उससे पहले मोक्ष की तरफ मुझे बढ़ जाना चाहिये और कंकर से इस जीवन को तीर्थकर का रूप दे देना चाहिये क्योंकि मेरी जिन्दगी की फसल पक चुकी है। संसार को झंझटों से हाथ जोड़ के अपनी इच्छाओं से पीछा छुड़ाकर अब प्रभु भजन में अपनी जिन्दगी लगानी चाहिए। जब सूर्य उगता है तो पशु—पक्षी और जानवर अपने घोसलों से, अपने बिलों से और अपनी गुफाओं से बाहर निकलते हैं और सांझ होते—होते सूरज के डूबते—डूबते सब अपने—अपने घरों में वापिस लौट आते हैं। लेकिन अनादि से अपने घर से निकला हुआ इंसान अनंत सांझ डूबने के बाद भी आज तक अपने घर नहीं लौट पाया। सम्राट ने सोचा अब मेरे लौटने का समय हो गया।
सम्राट को चिन्ता हो गई कि मैं तो अपने घर लौट जाऊँगा पर मेरे जाने के बाद इस राज्य का क्या होगा। डूबता हुआ सूर्य भी लोगों को संदेश देकर जाता है कि मेरे जाने से पहले एक छोटा सा दिया जलाना ताकि वह छोटा सा दिया रात भर अंधेरों से लड़कर मेरे अभाव को महसूस न होने दे। सम्राट ने सोचा कि मेरी जिन्दगी का सूर्य डूबे इससे पहले इस साम्राज्य में छोटा सा चिराग रोशन कर देना चाहिये। जिससे आने वाली पीढ़ी अंधेरों में न रह सके। सम्राट के सौ पुत्र थे किसे राज्य पहले दूँ। वह सोच में पड़ गया। पहले की परम्परा थी कि सम्राट का उत्तरदायी उसका बड़ा पुत्र हुआ करता था भले ही उसमें एक योग्य शासक के गुण हों या न हों और उसका परिणाम यह होता था कि सदियों वह मुल्क उस अयोग्य शासक के अत्याचार और यातनाओं को सहन करता था। सम्राट ने इस परम्परा का विरोध किया उसने कहा कि जरूरी नहीं कि बड़ा बेटा ही सिंहासन पर बैठे अपितु योग्य बेटा सिंहासन पर बैठना चाहिये, यह क्रांतिकारी कदम सम्राट ने बड़ी धैर्यता और समझ से उठाया। उस सम्राट को एक युक्ति सूझी अपने सौ पुत्रों को भोजन के लिए अपने महल में आमंत्रित किया। सब राजकुमार बड़े प्रसन्न हुए कि आज पिता के महल में भोजन करना है आनंद और उत्साह के साथ झूमते हुए सब पुत्र राजमहल में पहुँचे ,बड़ा ही स्वादिष्ट छप्पन प्रकार का व्यंजन महलों में बना हुआ था। भोजन की खुशबू चारों ओर फ़ैल रही थी। राजकुमारों के आगे भोजन की थालियाँ आती हैं सारे राजकुमार एक लाईन से बैठकर भोजन करते हैं। जैसे ही सौ पुत्रों ने भोजन करने के लिये पहला ग्रास तोड़ा सम्राट ने सैनिकों को इशारा किया, पलक झपकते ही हजारों शिकारी कुत्ते राजकुमारों पर झपट पड़े, जिनकी दाढ़े बड़ी विकराल, नाखून बड़े—बड़े, शेर की तरह खूखार, जो क्षण भर में आदमी को चीर फाड़ डालें ऐसे कुत्ते राजकुमारों पर आक्रमण करने लगे, कुत्तों को देखकर सारे राजकुमार थाली छोड़कर भागने लगे। बचाओ—बचाओ कहकर चिल्लाने लगे और राजमहल से बाहर निकल आये। उन्होंने भोजन वहीं छोड़ा। ‘जान बचे तो लाखों पाये’ की युक्ति को अपनाते हुए भाग खड़े हुये। मौत सामने खड़ी हो तो कौन है जो भोजन कर सके। मौत भोजन क्या, पूरा संसार छुड़ा लेती है पर जो मौत का डटकर मुकाबला करते हैं मौत उन्हें छोड़ देती है। सायं को सम्राट ने अपने सौ पुत्रों को दरबार में बुलाया और पूछा आप सबने भोजन कर लिया सारे भाईयों ने मिलकर खाया, बड़ा आनन्द आया होगा। राजकुमारों ने कहा पिताजी आप भी अच्छा मजाक कर लेते हैं आप कह रहे हैं कि बड़े आनन्द से भोजन किया होगा वहाँ तो प्राणों के लाले पड़ गये मौत सामने खड़ी थी और हम वहाँ भोजन करते। सम्राट ने पूछा क्या हुआ।
राजकुमारों ने कहा पिताजी! आज आपने भोजन पर बुलाकर हमारा अपमान किया, हमारी बेइज्जती की। यदि हमें मालूम होता तो हम कभी आपका आमंत्रण स्वीकार नहीं करते। हम भोजन का पहला ग्रास तोड़ ही रहे थे कि सैनिकों ने हमारे ऊपर बड़े खूँखार और शिकारी कुत्ते छोड़ दिये इससे जयादा और हमारा अपमान क्या हो सकता है। जब बेटा अपने पिता के प्रेम को अपमान समझने लगे पिता की आज्ञा को, पिता की बातों को अपनी बेइज्जती समझने लगे तो समझना कलयुग आ गया है। वरना इस देश में ऐसे बेटे हुए हैं जो अपने पिता के वचन के खातिर चौदह वर्ष जंगलों में बिता देते हैं। अपने पिता के सम्मान के खातिर राणा प्रताप के बच्चे जंगलों में घास की रोटी खाकर के अज्ञातवास गुजार देते हैं। सम्राट ने कहा मैं बहुत दु:खी हूँ कि मेरे सौ पुत्रों में एक भी ऐसा पुत्र न निकला जिसे मैं अपनी जिन्दगी के कारोबार सौंपकर चला जाऊँ एक भी ऐसा पुत्र नहीं है जो मेरे नाम को रोशन कर सके। सम्राट की आँखों में आँसू भर आये और सौ राजकुमारों से कहा जाओ अपने—अपने महलों में वापिस जाओ। सारे राजकुमार सिर झुकाकर जाने लगे लेकिन सबसे छोटा राजकुमार पिता के पास गया और पिता के आँसू पोंछकर कहने लगा पिताजी ! निराश न हो आपके सौ बेटों में मैं ही एक ऐसा बेटा हूँ जिसने आज भर पेट भोजन किया है।
जितने आनन्द और उत्साह से आज मैंने खाया है ऐसा आनन्द मुझे आज तक नहीं मिला। पिता ने पूछा बेटे ! तूने इतने कुत्तों के बीच भरपेट भोजन कैसे किया। उस बेटे ने कहा पिताजी! बात बहुत छोटी है लेकिन बहुत बड़ी भी है, जैसे ही मेरे ऊपर सौ कुत्ते झपटे, और मैंने थाली में से पहला टुकड़ा उठाया और एक—एक करके एक जगह कुत्तों को मैं टुकड़े डालता रहा कुत्ते भोजन करते रहे और मैं अपना भोजन करता रहा। जो दूसरों को खिलाता है वो कभी भूखा नहीं रहता और जो दूसरों को सताता है वह कभी सुखी नहीं रह सकता।‘जो दुसरों को खिलाता है वो खिलखिलाता है। जो दूसरों को सताता है वो आँसू बहाता है।।’उस छोटे बेटे का नाम था श्रेणिक जो मगध की राजगद्दी पर बैठा। भगवान भी अपने सिंहासन पर अपने भक्तों को बिठाना चाहते हैं। मंदिर में बैठकर यदि भगवान का ध्यान करते हो तो एक बार पड़ोस में बैठे पीड़ित और दु:खी पड़ो सी का भी ध्यान कर लिया करो जो खून के आँसू बहा रहा है। यदि तुम उसके आँसू नहीं पोंछ पाये तो तुम्हारी आँखों में परमात्मा का रूप कभी नहीं आ सकता। परमात्मा को थाली भरकर के द्रव्य चढ़ाओ तो आधी थाली किसी भूखे के घर भी भेज दिया करो। माथे का चंदन लगाओ तो किसी के घावों पर मल्हम भी लगा दिया करो। कलश भरकर प्रभु का न्हवन करो तो एक गिलास पानी किसी प्यासे को भी पिला दिया करो। भगवान की आरती उतारा करो, तो किसी अंधेरी झोपड़ी में दीपक भी जला दिया करो। भगवान का कीर्तन करो तो किसी रोते को हंसा दिया करो, तो समझना तुम प्रभु के राज्य के उत्तरदायी हो। बुढ़ापे के बाद इसी मानव धर्म को साथ लेकर जाना है।