एक व्यक्ति हिमालय की तीर्थयात्रा पर गया था। चढ़ाई भारी थी । पसीने से लथपथ उसकी श्वांसे चढ़ गई । उसके सामने कोई दस—बारह साल की एक लड़की अपने छोटे भाई को कंघे लिए बड़े मजे से चढ़ रही थी पसीनों से लथपथ वह थकी सी लग रही थी। वह व्यक्ति उसके पास आया और बड़े ही सहानुभूति पूर्वक बोला—बेटी तू बहुत थक गई होगी। कितना बोझ लेकर चल रही है। मैं तो इस गठरी को उठाकर चलने में बहुत थक गया। वह लड़की क्रोधित होकर बोली। स्वामी जी बोझ आप लिए हुए हो, यह तो मेरा छोटा भाई है बोझ नहीं। हालाकि तराजू पर उसके भाई का वजन स्वामी जी की पोटली से ज्यादा था। परन्तु भाई— प्रेम से उसे कोई बोझ ………. नहीं लगती थी। यदि हम जीवन में शाश्वत सत्य, अविनाशी सुख को प्राप्त करने के मार्ग पर अग्रसर हैं, परमात्मा मिलन के आनंद में लगे हैं तो निश्चय ही इसके लिए मेहनत का मूल्य चुकाना ही पड़ेगा। निरंतर परमात्मा की याद बनी रहे तो उनसे हमारा प्रेमपूर्ण सम्बन्ध जुड़ जाए तो मेहनत, मेहनत जैसी नहीं रह जाती।