तीर्थंकर प्रभु नेमि का, पावन जन्मस्थान
शौरीपुर जी तीर्थ को, शत-शत करूं प्रणाम ||१||
चालीसा इस भूमि का, जग में हो सुखकार
भक्ति भाव से तुम जजो, शौरीपुर गिरनार ||२||
शौरीपुर जी तीरथ प्यारा, यहाँ का सुन्दर अजब नजारा ||१||
बाइसवें तीर्थंकर स्वामी, नेमिनाथ जगत में नामी ||२||
जिला आगरा है यू. पी. में, यमुना के तट बसा तीर्थ ये ||३||
सिद्धक्षेत्र भी यह कहलाया, कई मुनी निर्वाण को पाया ||४||
कई करोड़ों वर्ष पूर्व में, नेमिनाथ जिनवर थे जन्मे ||५||
कार्तिक सुदि छठ गर्भकल्याणक,महका मात शिवा का आँगन ||६||
समुद्रविजय राजा के महल में , पन्द्रह मास रतन थे बरसे ||७||
इन्द्र सपरिकर स्वर्ग से आया, प्रभु का गर्भकल्याणक मनाया ||८||
श्रावण सुदि छठ जिनवर जन्मे, तब त्रैलोक्य समूचा हरषे ||९||
दो कल्याणक हुए यहाँ पर, दीक्षा ली प्रभु ऊर्जयन्तगिरि ||१०||
बाल ब्रह्मचारी कहलाए, उनके पद हम शीश झुकाएं ||११||
तीन कल्याणक श्री गिरनार , तप अरु ज्ञान मोक्षकल्याणा ||१२||
शौरीपुर में है इक पर्वत, नाम गंधमादन है सुन्दर ||१३||
सुप्रतिष्ठ मुनिराज ध्यानरत ,घोरोपसर्ग परीषह सहकर ||१४||
अविचल ध्यानारूढ अवस्था , केवलज्ञान यहीं पर प्रगटा ||१५||
अन्धकवृष्टि व भोजकवृष्टी , इन्हीं केवली पद दीक्षा ली ||१६||
निष्ठसेन नृप के इक सुत थे, नाम ‘धन्य’ था मुनि दीक्षा ले ||१७||
ध्यानलीन यमुना के तट पर , उधर से निकला नृप शौरीपुर ||१८||
नहिं शिकार जब उसने पाया , मुनि को अपना लक्ष्य बनाया ||१९||
बाणों से मुनि को बींधा था, मुनि को शुक्लध्यान प्रगटा ||२०||
कर्म नाश शिवपद को पाया, इन्द्र ने मोक्ष्कल्याण मनाया ||२१||
अलसत नामा एक मुनी थे, यहीं से शिवपद प्राप्त किए थे ||२२||
प्रभु महावीर काल में यम मुनि ,अन्तःकृत बन गए केवली ||२३||
पुनः यहीं से मोक्ष गए हैं ,ऐसे कई इतिहास भरे हैं ||२४||
दानी कर्ण यहीं पर जन्में , लोकचन्द्र आचार्य यहीं के ||२५||
जैन न्याय का ग्रन्थ अनुपमा, प्रभाचन्द्र आचार्य यहीं के ||२६||
नाम प्रमेयकमलमार्तंड है , अति समृद्ध प्राचीन तीर्थ है ||२७||
अनुश्रुति से सुनने में आया, यहाँ हीरानग मुद्रा पाया ||२८||
कई दिगंबर मूर्ति मिली हैं, भट्टारक गद्दी भी रही है ||२९||
घटना उन्नीसवीं सदी की, उनकी सिद्धि से जनता खुश थी ||३०||
है ये दिगंबर तीर्थ पुराना, लोगों का रहता नित आना ||३१||
मुंडनादि संस्कार कराते, चमत्कार भी कई बताते ||३२||
श्री जिनेन्द्रभूषण भट्टारक, मन्त्र के वेत्ता सिद्ध पुरुष थे ||३३||
उनके चमत्कार की महिमा, अब भी प्रचलित हैं जन-जन मा ||३४||
शौरीपुर जी और बटेश्वर , वर्तमान में अलग दो तीरथ ||३५||
तीर्थ बटेश्वर में जिनमंदिर, कटने लगा था जब यमुना तट ||३६||
भट्टारक जी ने बनवाया, अजितनाथ प्रतिमा पधराया ||३७||
जल्हड़ प्राण प्रतिष्ठा करते , हम सब इस तीरथ को नमते ||३८||
ज्ञानमती माँ यहाँ पधारीं , दिया तीर्थ योजना जो न्यारी ||३९||
जन्मभूमि को मेरा वंदन, शुभ भावांजलि प्रभु को अर्पण ||४०||
जिन जन्मभूमि का चालीसा, जो चालिस दिन तक पढते हैं
श्री नेमिनाथ की पावन भू को, श्रद्धायुत हो जजते हैं
अतिशायी कार्य सफल ‘इंदू’ इच्छित फल सबको मिल जाता
आत्मा परमात्म स्वरूप लहे, निज आत्म तीर्थ को प्रगटाता ||१||