श्री रेशन्दीगिरि निर्वाण क्षेत्र है। इस क्षेत्र का दूसरा नाम नैनागिरि है। यहाँ पर भगवान पार्श्वनाथ का समवसरण आया था। प्राकृत निर्वाण काण्ड में इस क्षेत्र के बारे में निम्नलिखित उल्लेख आया है।
पारस्थ समावसरेणे सहिया वरसत्त मुणिवरा पंच।
शिस्सिदे गिरिसिहरे णिव्वाण पाया गया णमो तेसि।।९।।
अर्थात् भगवान् पार्श्वनाथ के समवसरण से स्वहित के इच्छुक वरदत्त आदि पांच मुनिराज रेशन्दीगिरि के शिखर से मोक्ष गये, इन्हें नमस्कार है। इन वरदत्त आदि पाँच मुनियों के नाम किसी शास्त्र में नहीं आये हैं। किन्तु इस क्षेत्र के पर्वत स्थित मन्दिर में उन पाँच मुनियों की मुर्तियाँ हैं जिनके नाम वरदत्त, मुनीन्द्रदत्त, इन्द्रदत्त, गुणदत्त, सायरदत्त हैं। इस गाथा से यह भी स्पष्ट है कि ये पाँच मुनि भगवान् पार्श्वनाथ के समवसरण में और उनके मुनि संघ में थे। भगवान पार्श्वनाथ का समवसरण नैनागिरि में लगभग तीन हजार वर्ष पहले आया था। इस क्षेत्र के निकट ही एक सिद्ध शिला है जहाँ से मुनिराज मोक्ष गये थे। वहीं पर ११ वीं, १२ वीं शताब्दी में र्नििमत बड़ी वेदी है। पहाड़ी पर स्थित ३६ जिनालयों में से एक जिनालय का निर्माण सं. ११०९ में हुआ था। लगभग १०० वर्ष पहले बम्हौरी निवासी चौधरी श्यामलाल को स्वप्न में यह मन्दिर दिखाई दिया। खुदाई कराने से इस प्राचीनतम मंदिर की खोज हुई इसके पश्चात् ५२ मंदिरों, धर्मशाला पाठशाला आदि का निर्माण हुआ। भगवान पार्श्वनाथ के समवसरण के नैनागिरि में आने का यहाँ के लाकजीवन एवं संस्कृति पर गहरा प्रभाव पडा है। भगवान पार्श्वनाथ की समवसरण स्थली, नैनागिरि को केन्द्रित करके हम देखते हैं कि इस क्षेत्र का वातावरण धार्मिक बन गया है। यहाँ की मिट्टी में अहिंसा और जैन सिद्धान्तों की महक आने लगी है। नैनागिरि से २०० किलोमीटर क्षेत्र में सिद्धक्षेत्र एवं अतिशय क्षेत्र की संख्या अन्य किसी भी स्थान से अधिक है।
उदाहरण के लिये छतरपुर जिले में ही दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र द्रोणगिरि, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, खजुराहों एवं डेरापहाड़ी, टीकमगढ़ जिले में दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र आहार जी एवं बड़ागाँव, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पपौरा जी, वन्धा जी, जतारा जी, ललितपुर जिले में क्षेत्रपाल जी, देवगढ़, चाँदपुर, जहाजपुर, दुधई, पवाजी, सेरोन जी, सैरौन, वानपुर, पठा, मदनपुर गिरार, कारीटोरन, वालावेहर, सागर जिले में वीना—वारहा, पटनागंज, पटेरया जी, पजनारी, ग्यारसपुर पठा जी, दमोह जिले में कुण्डलपुर, जबलपुर जिले में बहोरीबन्द, पनागर, मढ़िया जी, त्रिपुरी, कोनी जी, भेड़ाघाट, पन्ना जिले में श्रेयांसगिरि एवं अजयगढ़ इसी वृत्त के अन्तर्गत स्थित है। इसके अलावा इस क्षेत्र में निर्मित हजारों जैन मंदिर एवं समय समय पर प्राप्त पुरावशेष इसके प्रमाण है। भगवान के समवसरण के आने का प्रभाव हमें जनमानस में देखने को मिलता है। जैन समाज के अनेक प्रमुख विद्वानों ने इसी क्षेत्र में जन्म लिया है। इस क्षेत्र में जन्में विद्वान आज स्थान—स्थान पर जैनधर्म के प्रचार—प्रसार में लगे हुए हैं। बनारस, जयपुर, मुरैना, आदि दूरस्थ स्थानों पर शिक्षा प्राप्त कर यहाँ के लोग र्धािमक एवं लौकिक शिक्षण या तीर्थक्षेत्र प्रबन्धन में अपना सहयोग दे रहे हैं। इस क्षेत्र में रह रहे अधिकांश लोग शाकाहारी है। जैन बन्धुओं का आचार—विचार, धर्मनिष्ठा, धार्मिक संस्कार अन्य स्थानों पर रह रही समाजों के लिये प्रेरणास्पद है। यह क्षेत्र आधुनिक विकास के साथ आ रही दोषपूर्ण जीवन पद्धति से बहुत दूर है।
नैनागिरि स्थान इतना पवित्र व अतिशय पूर्ण हो गया है कि लगभग १०० वर्ष पहले ही नैनागिरि की खोज होने पर भी यहाँ ५३ जैन मंदिरों का निर्माण हो चुका है। जिसमें से एक मंदिर तालाब के मध्य स्थित है एवं तालाब के एक सिरे पर स्थित पार्श्वनाथ समवसरण मंदिर अत्यन्त कलात्मक एवं बुन्देलखण्ड क्षेत्र में एकमात्र है। नैनागिरि की जनसंख्या अत्यन्त कम होने पर भी इस संभाग की एक मात्र संस्था ‘‘पारस निर्मित केन्द्र’’ एवं व्यक्तिगत स्तर पर स्थापित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय यहां की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यहाँ की पवित्र भूमि में डॉ. दरबारीलाल कोठिया ने जन्म लिया है जो जैन समाज के शीर्षस्थ विद्वान हैं। यहीं जन्में श्री सुरेश जैन आई. ए. एस. कुशल प्रशासक एवं समाजसेवी हैं। यहाँ से ८ किलोमीटर दूर निवार में जन्में स्व. पं. परमानंद शास्त्री इस शताब्दी के उत्कृष्ट विद्वानों में से एक थे जिन्होंने प्रचार—प्रसार से दूर रहकर जिनवाणी की सेवा की। समवसरण स्थल से १३ किलोमीटर दूर बम्हौरी में समाधिस्थ मुनि आदिसागरजी ने इस शताब्दी के प्रारम्भ में पर्याप्त धर्म प्रभावना की है। डॉ. भागचन्द्र जैन, ‘‘भागेन्दु’’ सचिव म. प्र. संस्कृत अकादमी, भोपाल, डॉ. उदयचन्द्र जैन, मोहनलाल सुखाड़िया वि. वि. उदयपुर एवं प्रो. विनयकुमार जैन इसी क्षेत्र में जन्मी विभूतियाँ हैं। इस प्रकार हम देखते हैं भगवान पार्श्वनाथ के समवसरण का यहाँ की संस्कृति एवं समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। इस क्षेत्र के विकास के असीम संभावनायें शेष हैं।