(उद्घाटन सभा में पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी का मंगल प्रवचनांश)
‘भव्यात्माओं! ‘‘जिस प्रकार भगवान पार्श्वनाथ के जन्म के समय वाराणसी की यह धरती स्वर्गों से पधारे इन्द्रों एवं वाराणसीवासियों द्वारा मनाए गए महान जन्मोत्सव से धन्य हुई थी, आज पुन: २८८० वर्ष के पश्चात् एक बार वही खुशी एवं उत्साह की लहर यहाँ दृष्टिगत हो रही है। काशी नरेश अश्वसेन के काल में तीर्थंकर पार्श्वनाथ के जन्म के समय यहाँ १५ महीने तक जो रत्नों की वर्षा हुई थी उसे महाराज अश्वसेन ने समस्त प्रजाजनों को वितरित करके सभी को सुखी एवं समृद्ध कर दिया था।
ठीक ही है, तीर्थंकर भगवन्तों की जन्मभूमियों का माहात्म्य एवं पवित्रता अद्भुत ही रहती है। आज ८वें तीर्थंकर भगवान चन्द्रप्रभ का भी जन्म एवं दीक्षाकल्याणक है और उन्हीं की जन्मभूमि-चन्द्रपुरी के निकट ही हम लोग उनके साथ-साथ उनकी परम्परा के २३वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ का जन्मकल्याणक महोत्सव मना रहे हैं। तीर्थंकर भगवन्तों के कल्याणकों को मनाना हम सभी संसारी प्राणियों के लिए भव-समुद्र से पार होने के लिए महान अवलम्बन है।
इस अवसर पर उपस्थित शासन के प्रतिनिधियों हेतु मेरा यही कहना है कि धर्मनीति व राजनीति का बहुत बड़ा सम्बन्ध है यदि राजनीति से धर्मनीति निकल गई तो सर्वत्र अनीति-अनाचार का शासन होगा एवं सामाजिक संतुलन का पूरी तरह अभाव हो जायेगा। देश की बागडोर को संभालने वाले देश की संस्कृति को बचाने में तत्पर एवं सक्षम होंगे तभी समाज में शांति एवं सुभिक्ष की कल्पना की जा सकती है क्योंकि धर्मनीति ही ऐसी है
जो सर्वोदयी शाश्वत सिद्धान्तों का मार्ग दिखाकर न्यायोचित शासन एवं राजनीति को स्थापित कर सकती है। धार्मिक आयोजनों में नेताओं द्वारा भाग लेने से उन्हें भी निर्व्यसनी, शाकाहारी एवं पवित्र जीवन जीने की शिक्षा प्राप्त होती है जिससे समाज में फेले आतंक, अन्याय, अत्याचार को दूर करने हेतु उनकी दृष्टि सुदृढ़ होती है।
देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, प्रदेश मुख्यमंत्री सहित अन्य सभी शासन-प्रशासन में निरत महानुभावों एवं देश की रक्षा करने वाले सैनिक वर्ग के लिए भी मेरा बहुत-बहुत मंगल आशीर्वाद है कि वे भी अपने जीवन में महापुरुषों के बताए मार्ग का अनुसरण करने का प्रयास करें।
तीर्थों के संरक्षण का कार्य
आज भारतवर्षीय तीर्थक्षेत्र कमेटी के नवनिर्वाचित अध्यक्ष श्रीयुत एन.के. सेठी यहाँ पधारे हैं, उनसे मुझे यही कहना है कि तीर्थक्षेत्र कमेटी के ऊपर भारतवर्ष की सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज ने दिगम्बर जैन तीर्थों के संरक्षण का जो दायित्व सौंपा है वह अपूर्व है। तीर्थों के संरक्षण का कार्य होने से यह संस्था अन्य सभी संस्थाओं में विशेष है और इसके ऊपर बहुत ही बड़ा दायित्व है क्योंकि अपने तीर्थों के संरक्षण में ही अपनी शाश्वत संस्कृति का संरक्षण निहित है
परन्तु एक बात आप से यह भी कहना है कि तीर्थक्षेत्र कमेटी को तीर्थों को बदलने का कोई अधिकार नहीं है, उसको संरक्षण-संवर्धन का अधिकार तो अवश्य दिया गया है परन्तु तीर्थों के परिवर्तन का नहीं और यदि कभी ऐसे प्रसंग आते भी हैं तो पूरे दिगम्बर जैन समाज के प्रतिनिधियों की मीटिंग बुलाकर और समस्त साधुवर्ग से आशीर्वाद प्राप्त करके ही ऐसा होना चाहिए, मात्र अपने आधार पर किसी भी तीर्थ को बदलना तीर्थक्षेत्र कमेटी के लिए कथमपि उचित नहीं है।
भगवान ऋषभदेव जन्मभूमि-अयोध्या में चैत्र कृष्णा नवमी, ३ अप्रैल २००५ को भगवान ऋषभदेव महामस्तकाभिषेक सम्पन्न होना है, उस समय मेरा भी संघ सहित वहाँ प्रवास रहेगा। मेरी प्रेरणा है कि तीर्थक्षेत्र कमेटी इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन में पूर्ण सहयोग करे एवं उसी समय वहाँ पर तीर्थक्षेत्र कमेटी का अधिवेशन भी सम्पन्न किया जाये।
मेरा तो मानना है कि साधुओं की आज्ञा पालन करने का संकल्प लेने से तीर्थक्षेत्र कमेटी द्वारा तीर्थों के संरक्षण-संवर्धन के कार्य में चतुर्मुखी प्रगति होगी। तीर्थों को हमें अपनी महान धरोहर एवं महान निधि समझना है। ये तीर्थ ही हमारे सर्वस्व हैं, ये ही हमारे जीवन हैं क्योंकि इन्हीं पर हमारी संस्कृति अवलम्बित है और उसी संस्कृति से हमें इस पंचम काल में भी मोक्ष का मार्ग प्राप्त हो रहा है।
आपको यह सूचना देते हुए मुझे अत्यन्त हर्ष है कि आज पार्श्वनाथ जयंती के पावन दिन ही प्रात:काल भगवान श्रेयांसनाथ की जन्मभूमि-सिंहपुरी (सारनाथ) में भगवान की ११ फुट उत्तुंग विशाल पद्मासन प्रतिमा विराजमान हुई हैं, ये भगवान श्रेयांसनाथ एवं उनकी जन्मभूमि हम सभी के लिए श्रेयवर्धक सिद्ध हो, यही मंगल कामना है।
एक वर्ष तक मनाए जाने वाले भगवान पार्श्वनाथ जन्मकल्याणक तृतीय सहस्राब्दि महोत्सव का उद्घाटन करने में मूलरूप से यही उद्देश्य है कि उनके जीवन से प्रेरणा प्राप्त करके व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में सहिष्णुता, क्षमा, प्रसन्नता के विकास के साथ-साथ वैर-विरोध-प्रतिशोध की भावनाओं का समापन हो सके, ताकि सम्पूर्ण राष्ट्र एवं विश्व में चहुँओर शांति का वातावरण हो,
आपस की कटुताएं दूर हों और जिनभगवंतों के नाम-स्मरण से जन्मों-जन्मों के संचित पाप नष्ट होकर सभी के कार्य सिद्ध हों। सम्पूर्ण विश्व में भगवान पार्श्वनाथ का नाम गुंजायमान हो, सम्पूर्ण भारत पार्श्वनाथमयी बने एवं समस्त विश्व में ‘अहिंसापरमोधर्म:’ का नारा व्याप्त हो, यही मंगल भावना है।’’